कविता है तो हम हैं, कविता के बिना ज़िंदगी अधूरी: बालस्वरूप राही

आज का बच्चा किताब के साथ-साथ मोबाइल और कम्प्यूटर की दुनिया में भी जीता है

बाल साहित्य के क्षेत्र में बालस्वरूप राही एक ऐसा नाम है, जिसने अपनी सादगी, संवेदनशीलता और काव्य-संपन्नता से बच्चों के मन में विशेष स्थान बनाया है। उनकी रचनाएँ न केवल बालमन को आनंदित करती हैं, बल्कि उनमें जीवन-मूल्यों, संस्कारों और ज्ञान के प्रति सम्मान की झलक भी मिलती है। डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक “हम छोड़ेंगे नहीं किताब” बालस्वरूप राही की रचित बाल कविताओं का संग्रह है, जो आधुनिक युग के बच्चों को साहित्य से जोड़ने का सशक्त प्रयास है।

लेखक स्वयं अपने जीवन की भूमिका में बताते हैं कि वे सात भाइयों में सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार में सब उन्हें “बालो” कहकर पुकारते थे। यही “बालो” बाद में पूरे देश के बच्चों के प्रिय कवि “बालस्वरूप राही” बन गए। उनकी बाल कविताओं की जड़ें बचपन के अनुभवों, घर-परिवार के स्नेह और खेल-खिलौनों की दुनिया में गहराई से जुड़ी हैं। राही जी की भाषा में बालमन की चंचलता है, तो भावों में जीवन के प्रति गहरी संवेदना। लेखक बताते हैं कि बचपन में उन्हें उर्दू शायरी से परिचय अपने बड़े भाई के माध्यम से मिला। उर्दू के शेर सुन-सुनकर उनमें भी तुकबंदी का बीज अंकुरित हुआ। इसके साथ ही अंग्रेज़ी की नर्सरी राइम्स और हिन्दी की पारंपरिक शिशु कविताओं ने उनके मन में कवित्व का प्रेम जगाया। वे स्वयं स्वीकार करते हैं कि “धीरे-धीरे बाल कविताएँ कहने की लत पड़ गई।” यही लत उनके साहित्यिक जीवन का आधार बनी।

इस संग्रह की कविताएँ सरल, गेय और बाल-मन के बेहद निकट हैं। अनुक्रमणिका में दर्ज कविताओं के शीर्षक—जैसे “सचिन आ गया,” “कार,” “बस में बस्ता,” “पीज़ा,” “कम्प्यूटर,” “आइसक्रीम,” और “मोबाइल”—स्पष्ट करते हैं कि कवि ने आधुनिक समय की वस्तुओं और बच्चों की दिनचर्या को कविता के रूप में पिरोया है। राही जी जानते हैं कि आज का बच्चा किताब के साथ-साथ मोबाइल और कम्प्यूटर की दुनिया में भी जीता है, परंतु वे यह भी दृढ़ता से कहते हैं—“पर हमने तय किया जनाब! हम छोड़ेंगे नहीं किताब!” यह पंक्ति केवल कविता का अंश नहीं, बल्कि एक सशक्त संदेश है—ज्ञान का स्रोत आज भी पुस्तक ही है।

कविताओं की विशेषता यह है कि उनमें शिक्षा और मनोरंजन का अद्भुत संतुलन है। “हम छोड़ेंगे नहीं किताब” में कवि केवल पाठ्य-पुस्तक के महत्त्व की बात नहीं करते, बल्कि ज्ञान को सर्वोच्च स्थान देते हुए कहते हैं—

“सबसे ऊँचा होता ज्ञान,
उससे नीची हर दुकान।”

यह भाव कविता को केवल बच्चों तक सीमित नहीं रखता, बल्कि हर उम्र के पाठक के लिए प्रेरणादायी बनाता है। राही जी का कहना है कि कम्प्यूटर भले ही बच्चों के दिमाग़ पर छाया हुआ हो, पर कविता कभी नेस्तनाबूद नहीं हो सकती। वे मानते हैं कि “कविता है तो हम हैं, कविता के बिना ज़िंदगी अधूरी है।” यह विचार उनके भीतर बसे “बच्चे” की अभिव्यक्ति है—वह बच्चा जो उम्र के बढ़ने के बावजूद आज भी उनके भीतर जीवित है और उन्हें कलम छोड़ने नहीं देता।

बालस्वरूप राही
बालस्वरूप राही

बालस्वरूप राही की कविताओं की भाषा सरल, मधुर और लयात्मक है। वे कठिन शब्दों या दार्शनिकता के बोझ से पाठक को नहीं थकाते। उनका लक्ष्य है कि बच्चे कविता को पढ़ें, गुनगुनाएँ और उसके अर्थ को अपने अनुभवों में महसूस करें। इस दृष्टि से उनका यह संग्रह अत्यंत सफल है।

राही जी का साहित्यिक जीवन भी उतना ही प्रेरक है जितनी उनकी कविताएँ। दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन से लेकर ‘सरिता’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ और ‘प्रोब इंडिया’ जैसी पत्रिकाओं में संपादन कार्य तक, उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में योगदान दिया। भारतीय ज्ञानपीठ में सचिव और हिन्दी भवन में महाप्रबंधक के रूप में उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास के लिए उल्लेखनीय कार्य किया।

उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में “मेरा रूप तुम्हारा दर्पण,” “जो नितांत मेरी हैं,” “राग विराग,” “दादी अम्मा मुझे बताओ,” “हम जब होंगे बड़े,” और “सुनो डाकिये भाई” जैसी रचनाएँ शामिल हैं। बाल साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें प्रकाशवीर शास्त्री पुरस्कार, एनसीईआरटी का राष्ट्रीय पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, अक्षरम् सम्मान, उद्भव सम्मान और साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार जैसे अनेक गौरव प्राप्त हुए।

यह संग्रह न केवल कवि की बाल-भावनाओं का उत्सव है, बल्कि आधुनिक पीढ़ी को ज्ञान के पारंपरिक स्रोतों की ओर लौटने का आग्रह भी है। आज के डिजिटल युग में जब बच्चे मोबाइल और स्क्रीन की दुनिया में उलझे हैं, तब राही जी की यह पंक्ति—“हम छोड़ेंगे नहीं किताब”—एक दृढ़ घोषणा बन जाती है।

हम छोड़ेंगे नहीं किताब
हम छोड़ेंगे नहीं किताब

कुल मिलाकर, यह कृति मनोरंजन और शिक्षण, भाव और विचार, परंपरा और आधुनिकता का सुन्दर संगम है। इसमें कवि का विश्वास, बालमन की निश्छलता और साहित्य के प्रति समर्पण झलकता है। “हम छोड़ेंगे नहीं किताब” केवल कविताओं का संग्रह नहीं, बल्कि बालस्वरूप राही के जीवन-दर्शन का सार है—एक ऐसा विश्वास कि किताबें हमेशा हमारी संस्कृति, ज्ञान और कल्पना की सबसे सशक्त साथी रहेंगी। यह पुस्तक हर उस पाठक के लिए आवश्यक है जो बाल साहित्य के माध्यम से जीवन की सरलता और सौन्दर्य को फिर से महसूस करना चाहता है।

पुस्तक : हम छोड़ेंगे नहीं किताब

लेखक: बालस्वरूप राही

प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स

समीक्षक: उमेश कुमार सिंह

उमेश कुमार सिंह
उमेश कुमार सिंह
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »