शांति घोष और सुनीति चौधरी : क्रांति की प्रेरक एवं निर्भय मशाल

वह 14 दिसम्बर, 1931 की एक सामान्य सुबह थी। प्रकृति ने शीत ऋतु की चादर ओढ़ रखी थी। मार्ग किनारे लगे पेड़ मानो वृक्षासन की मुद्रा में मौन साधे साधनारत थे। सड़कों पर बिछी काली डामर पर पड़ी ओस में साईकिल और मोटर गाडियां अपने पगचिह्न अंकित करते जा रहे थे। सूरज भी रजाई से निकल नीले गगन में चहलकदमी करने लगा था। क्रांति के उद्घोष वंदेमातरम् की जन्मभूमि बंगाल के एक जिला मुख्यालय कोमिला (अब बांग्लादेश में है) ने ठंडी रात की गहरी नींद से जाग चूल्हे पर अभी चाय की केतली रख नाश्ता बनाना शुरू ही किया था। रसोईघरों‌ से मसालों की ताजी खुशबू झरोखों से निकल माहौल में बिखर रही थी। स्कूल जाने वाले बच्चों का कलरव घरों की खिड़कियों से छनकर वातावरण में नाच रहा था।

दुकानों में रोजमर्रा का सामान करीने से सहेजा जाने लगा था। सड़कों से गुजरते इक्का-तांगों की टक-टक और घोड़ों की हिनहिनाहट की संगति से उपजी मधुर ध्वनि परिवेश में संगीत घोल रही थी। किंतु ठंड से जकड़े शहर के हृदय में जिला मजिस्ट्रेट चार्ल्स जेफ्री बॉकलैंड स्टीवंस का भारतीय क्रांतिकारियों एवं जनता के विरुद्ध किए जा रहे अमानवीय एवं दमनात्मक व्यवहार के विरुद्ध आक्रोश के अंगारे दहक रहे थे।‌ स्टीवंस को उसका क्रूरता का फल चखाने के लिए क्रांतिकारी दल योजना बना रहे थे। उस ठंडी सुबह में क्रांति की अग्नि की लपटों से स्वयं को बचाए स्टीवंस अपने दफ्तर और अदालत न जाकर दो स्तरीय सुरक्षा घेरे में अपने बंगले से ही सभी व्यवस्थाओं का संचालन कर रहा था। तभी बंगले के फाटक पर एक घोड़ागाड़ी रुकी और 14-15 वर्ष की दो बालिकाएं उतर बंगले की ओर बढ़ीं।

  “ठहरो, वहीं रुक जाओ”,  पहरेदार संतरी जोर से चिल्लाया। लड़कियां ठिठक गईं। संतरी निकट आ गया था। लड़कियों ने बताया कि उनको अपने स्कूल द्वारा आयोजित तैराकी प्रतियोगिता के सम्बन्ध में अनुमति एवं सहयोग हेतु मजिस्ट्रेट साहब से मिलना है और एक कागज में अपने छद्म नाम लिखकर संतरी के हाथ पर रख दिया। संतरी ने बालिकाओं को वहीं गेट पर रोक, नाम की पर्ची आगे बढ़ा दी और उनके बस्तों की सघन तलाशी लेने लगा, पर कुछ न मिला। थोड़ी देर में अंदर से मिलने हेतु बुलावा आ गया। दोनों किशोरियों को एक सिपाही साथ लेकर मजिस्ट्रेट के कमरे के द्वार तक छोड़ आया। लड़कियों ने कमरे में प्रवेश कर उचित अभिवादन कर परिचय दिया,  “मैं शांति घोष, फैजन्नुसा गर्ल्स हाईस्कूल की कक्षा 8वीं की छात्रा और विद्यालय के छात्रा संघ की संस्थापक सचिव हूं। और यह है मेरी सहयोगी सुनीति चौधरी।” स्टीवंस बालिकाओं की प्रखरता, निडरता और बातचीत के सलीके से प्रभावित हो कुर्सी पर बैठने का संकेत कर मिलने का उद्देश्य पूछा।

शांति घोष ने कहा कि विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती कल्याण देवी के निर्देशन में छात्रा संघ द्वारा एक तैराकी प्रतियोगिता आयोजित की गई है। प्रतियोगिता आयोजन हेतु अनुमति और सफलता हेतु आपका सहयोग चाहिए। तब तक सुनीति चौधरी ने मेज पर स्टीवंस के सम्मुख प्रार्थना पत्र रख दिया। उसने प्रार्थना पत्र उठाकर पढ़ा और बोला, “अच्छा आयोजन है, अनुमति मिल जाएगी।‌ पर यह प्रार्थना पत्र अपूर्ण है, इसमें प्रधानाध्यापिका का हस्ताक्षर और मुहर नहीं है। यह पूरा कराकर लाओ।” तब सुनीति चौधरी ने अनुरोध किया कि यह टिप्पणी अंकित कर दें, तो हमें आसानी होगी।

स्टीवंस ने प्रार्थना पत्र पर टीप निर्देश लिखने हेतु पेन निकाल ज्यों ही सिर झुकाया, दोनों बालिकाओं ने स्वचालित पिस्तौलों से उसके सीने पर फायर झोंक दिया। स्टीवंस जल्दी से उठा, लड़खड़ाता अंदर कमरे की ओर भागा। किंतु कमरे के पहले देहरी पर ही औंधे मुंह गिर गया। उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे। इसी बीच गोलियों की आवाज सुनकर  अर्दली और अन्य सिपाही भाग कर अंदर घुसे तथा शांति घोष एवं सुनीति चौधरी को पकड़ लिया। दोनों बालिकाओं के मुखमंडल कार्य की सिद्धि के तेज से दमक रहे थे। गर्व से उठे शीश पर बलिदानी क्रांतिकारी नभ से भाव सुमन बरसा रहे थे। मजिस्ट्रेट स्टीवंस की द्वि-स्तरीय सुरक्षा के बीच दिन दहाड़े दो बालिकाओं द्वारा हत्या किये जाने से अंग्रेजी सत्ता की लंदन तक बड़ी किरकिरी हुई।

शांति घोष और सुनीति चौधरी को 18 जनवरी, 1932 को अदालत में पेश किया गया। उस दिन वे दोनों गर्व से ऐसे चल रही थीं जैसे दो सिंहनी किसी आदमखोर भेड़िए का शिकार कर विजय का उत्सव मना रही हों। अदालत की कार्रवाई तो केवल दिखावा थी। अंग्रेजी सरकार को तो बदला लेना था। किंतु 16 वर्ष से कम उम्र होने के कारण फांसी नहीं दे सकते थे।‌ आखिर 27 जनवरी, 1932 को फैसला कर दोनों को आजीवन कारावास की सजा दे काला पानी भेज दिया गया। जेल जीवन में दोनों के ऊपर बहुत जुल्म एवं अत्याचार किए गए किंतु वे न डरीं, न झुकी बल्कि साहस के साथ मां भारती की अर्चना-आराधना में जुटीं रहीं। आगे महात्मा गांधी और अंग्रेज सरकार के बीच एक समझौते के बाद 1939 में दोनों को रिहा कर दिया गया। जेल से छुटने के बाद शांति घोष ने पुनः पढ़ाई शुरू की, 1942 में विवाह किया और राजनीति में भाग लेकर 1952 से 1967-68 तक पश्चिम बंगाल विधान सभा और परिषद की सदस्य रहीं। वर्ष 1989 में निधन हुआ। सुनीति चौधरी भी सामाजिक जीवन जीते हुए 70 वर्ष की आयु पूर्ण कर 1988 में स्वर्ग सिधार गईं।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास के पृष्ठों पर शांति घोष और सुनीति चौधरी के इस महनीय कार्य को भले ही महत्वपूर्ण जगह न मिली हो, उनके नाम पर संस्थानों का नामकरण न हुआ हो, भले ही उनके योगदान को उपेक्षा की धूल से ढक दिया गया हो, किंतु इससे उनकी भूमिका कमतर नहीं हो जाती। वे दोनों क्रांति का अग्निधर्मी स्वर थीं, प्रेरणा और निर्भयता की मशाल थीं। भारत माता के चरणों में समर्पित ये दोनों पुष्प युगों-युगों तक अपनी सुगंध से स्वतंत्रता का गौरव बोध कराती रहेंगी।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »