रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध से परि-आकाशगंगा माध्यम और अंतर-आकाशगंगा माध्यम के संबंधों पर नई दृष्टि
आकाशगंगाओं के निर्माण, विकास और विघटन को समझने के लिए उनके चारों ओर फैले अदृश्य द्रव्यमान का अध्ययन आधुनिक खगोल भौतिकी का एक केंद्रीय विषय रहा है। हाल ही में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान, रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण शोध ने इस दिशा में प्रचलित अवधारणाओं को चुनौती दी है। यह अध्ययन संकेत देता है कि आकाशगंगाओं के चारों ओर मौजूद प्रभामंडल यानी हेलो के द्रव्यमान को मापने के मौजूदा तरीकों में बुनियादी संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।
यह शोध दर्शाता है कि अंतर-आकाशगंगा माध्यम में मौजूद पदार्थ, आकाशगंगा के चारों ओर फैले विसरित गैसीय आवरण के मापन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। अब तक जिन प्रेक्षणों के आधार पर परि-आकाशगंगा माध्यम का द्रव्यमान अनुमानित किया जाता था, उनमें अंतर-आकाशगंगा माध्यम के योगदान को प्रायः नजरअंदाज किया गया है। नए निष्कर्ष बताते हैं कि यह उपेक्षा द्रव्यमान के अधिक अनुमान का कारण बन सकती है।

आकाशगंगा के परे फैला अदृश्य संसार
जब हम किसी आकाशगंगा की कल्पना करते हैं, तो आमतौर पर चमकते तारे, धूल भरी सर्पिल भुजाएं और रंगीन निहारिकाएं हमारे मन में आती हैं। किंतु यह दृश्य केवल आकाशगंगा का आंतरिक और सबसे प्रत्यक्ष भाग है। इसके बाहरी किनारों से कहीं आगे एक विशाल, धुंधला और लगभग अदृश्य प्रभामंडल फैला होता है, जो आकाशगंगा के दृश्य आकार से दस से बीस गुना अधिक दूरी तक विस्तृत हो सकता है।
यही प्रभामंडल आकाशगंगा के अधिकांश द्रव्यमान को समेटे हुए होता है। इसमें गैस के साथ-साथ डार्क मैटर भी शामिल होता है, जिसे अक्सर ब्रह्मांड को एक साथ बांधने वाला अदृश्य गोंद कहा जाता है। इस प्रभामंडल के गैसीय घटक को परि-आकाशगंगा माध्यम कहा जाता है, जबकि इसके बाहर फैले व्यापक क्षेत्र को अंतर-आकाशगंगा माध्यम के नाम से जाना जाता है।
ब्रह्मांडीय जाल और गैस का प्रवाह
आकाशगंगाएं ब्रह्मांड में अलग-थलग नहीं हैं। वे ब्रह्मांडीय जाल नामक विशाल तंतुमय संरचना से जुड़ी हुई हैं, जो पूरे ब्रह्मांड में पदार्थ के वितरण को नियंत्रित करती है। परि-आकाशगंगा माध्यम इस जाल और आकाशगंगा के बीच सेतु का कार्य करता है। इसके माध्यम से गैस आकाशगंगा में प्रवेश करती है और कभी-कभी शक्तिशाली बहिर्प्रवाहों के रूप में बाहर भी जाती है।
इसी कारण, परि-आकाशगंगा माध्यम में गैस की मात्रा और संरचना का सटीक मापन आकाशगंगाओं के विकास को समझने के लिए अत्यंत आवश्यक है। खगोलविद आमतौर पर अत्यधिक आयनित ऑक्सीजन की उपस्थिति को मापकर इस गैसीय द्रव्यमान का अनुमान लगाते हैं, क्योंकि यह तत्व ब्रह्मांड में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और दूरस्थ अवलोकनों में अपेक्षाकृत आसानी से पहचाना जा सकता है।

अवलोकन की सीमा और अंतर्निहित समस्या
परि-आकाशगंगा माध्यम का अध्ययन करने के लिए खगोलविद दूर स्थित अत्यंत चमकीले स्रोतों, जैसे क्वासरों, से आने वाले प्रकाश का उपयोग करते हैं। जब यह प्रकाश किसी अग्रभूमि आकाशगंगा के चारों ओर मौजूद गैस से होकर गुजरता है, तो कुछ विशिष्ट तरंग दैर्ध्य अवशोषित हो जाते हैं। इन अवशोषण रेखाओं के विश्लेषण से गैस में मौजूद तत्वों की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है।
हालांकि, इस पद्धति में एक मूलभूत समस्या निहित है। मापा गया संकेत दृष्टि रेखा के अनुदिश कुल एकीकृत मान होता है। चूंकि परि-आकाशगंगा माध्यम और अंतर-आकाशगंगा माध्यम दोनों ही उसी दृष्टि रेखा के समानांतर स्थित होते हैं, इसलिए अवलोकनों में इन दोनों के योगदान को अलग-अलग पहचानना संभव नहीं हो पाता। अब तक अधिकांश मॉडल यह मानते रहे हैं कि देखी गई पूरी आयनित ऑक्सीजन परि-आकाशगंगा माध्यम से ही आती है।
रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट का नया दृष्टिकोण
आरआरआई के खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी विभाग के वैज्ञानिक डॉ. कार्तिक सरकार के नेतृत्व में किए गए इस नए अध्ययन ने इसी धारणा को चुनौती दी है। द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित इस शोध में गणितीय मॉडलों के माध्यम से परि-आकाशगंगा माध्यम और अंतर-आकाशगंगा माध्यम के बीच गैस के आदान-प्रदान का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।
डॉ. सरकार के अनुसार, परि-आकाशगंगा माध्यम से जुड़ी गैस का एक बड़ा भाग वास्तव में अंतर-आकाशगंगा माध्यम से आ सकता है। इसे समझाने के लिए उन्होंने एक सरल सादृश्य प्रस्तुत किया। जैसे किसी सड़क पर जादूगर के चारों ओर भीड़ इकट्ठा होती है, वैसे ही आकाशगंगा के गुरुत्वाकर्षण के कारण उसके आसपास गैस जमा होती है। लेकिन एक सीमा के बाद, गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम हो जाता है और उसके बाहर का क्षेत्र अंतर-आकाशगंगा माध्यम कहलाता है।

आयनित ऑक्सीजन का वास्तविक स्रोत
शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि प्रेक्षणों में दिखने वाली आयनित ऑक्सीजन का केवल एक हिस्सा ही वास्तव में परि-आकाशगंगा माध्यम से संबंधित होता है। शेष योगदान उसके चारों ओर मौजूद अंतर-आकाशगंगा माध्यम की एक परत से आता है। यह संदूषण परि-आकाशगंगा माध्यम के द्रव्यमान को वास्तविकता से अधिक दिखा सकता है।
अध्ययन के अनुसार, हमारी आकाशगंगा जैसी उच्च द्रव्यमान वाली आकाशगंगाओं में परि-आकाशगंगा माध्यम आयनित ऑक्सीजन का लगभग 50 प्रतिशत योगदान दे सकता है, जबकि शेष 50 प्रतिशत अंतर-आकाशगंगा माध्यम से आता है। कम द्रव्यमान वाली आकाशगंगाओं के मामले में यह योगदान और भी कम, लगभग 30 प्रतिशत तक हो सकता है।
कम द्रव्यमान वाली आकाशगंगाओं की पहेली
शोधकर्ताओं को इस विसंगति का पहला संकेत तब मिला जब उन्होंने पाया कि मौजूदा मॉडल कम द्रव्यमान वाली आकाशगंगाओं के प्रेक्षणों से मेल नहीं खा रहे थे। नए सिद्धांत के अनुसार, अंतर-आकाशगंगा माध्यम का प्रभाव इन आकाशगंगाओं में अपेक्षाकृत अधिक होता है, जिससे पहले देखी गई विसंगतियों की व्याख्या संभव हो पाती है।
यह निष्कर्ष सभी द्रव्यमानों की आकाशगंगाओं पर लागू होता है और परि-आकाशगंगा माध्यम के अध्ययन में एक नए दृष्टिकोण की मांग करता है।
भविष्य की दिशा
रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक अब इस प्रारंभिक मॉडल को और अधिक यथार्थवादी तथा व्यापक बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इस प्रयास में वे इज़राइल के यरुशलम स्थित हिब्रू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ सहयोग कर रहे हैं। नए मॉडल में अधिक मापदंडों को शामिल किया जाएगा, ताकि अंतर-आकाशगंगा माध्यम के प्रभाव को और सटीक रूप से मापा जा सके। डॉ. कार्तिक सरकार के शब्दों में, अब यह स्पष्ट हो चुका है कि मापन में एक विसंगति मौजूद है। अगला लक्ष्य इस विसंगति को सटीक रूप से परिभाषित करना और भविष्य के अवलोकनों के लिए अधिक विश्वसनीय व्याख्या प्रस्तुत करना है।