संभलिये- देश में महामारी का रूप ले रहा है डायबिटीज

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Part two:

अब सवाल है कि हम और आप इस महामारी से कैसे अपना बचाव कर सकते हैं। बचाव बेहद आसान है, मगर भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग इसे अपना नहीं सकते। इससे बचने के लिए हमें सबसे पहले अपने खान पान पर ध्यान देना है। जीवन शैली को पूर्व के अनुरूप ढालना है जैसे हमारी पिछली पीढिय़ां एक अनुशासित जीवन शैली अपनाती थी। हम संतुलित भोजन लें। रात में ज्यादा देर तक नहीं जगें। अधिक तनाव न पालें। अपने खाने में हरी सब्जियों, फल, साबुत अनाज को शामिल करें। जिस मौसम की जो भी फल-सब्जियां हैं उन्हें उन्हीं मौसम में खाएं। वाहन का अधिक उपयोग से बचते हुए निश्चित अवधि तक पैदल चलें।

आप अपनी पिछली पीढ़ी के खानपान और जीवन शैली को देखें। दरअसल हुआ यह है कि हम और आप या वर्तमान पीढ़ी नकल के चक्कर में बर्बाद हो गई। आपको याद होगा कि हमारी पुरानी पीढ़ी इस गर्मी के मौसम में अनिवार्य रूप से आम पना का सेवन करती थी। पेय के रूप में सत्तू बेहद लोकप्रिय था। लोगों में पैदल चलने की आदत थी। हर मौसम के अनुरूप हमारा खानपान था। गर्मियों में हर घर में अलसी खाने का चलन था। कहने का आशय है कि हमारे स्वास्थ्य का राज दादी-नानी के नुस्खे में शामिल था और दादी-नानी के नुस्खे में सबसे अधिक खानपान का अनुशासन ही शामिल होता था। हमारी पिछली पीढिय़ों ने पित्जा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक्स का नाम भी नहीं सुना था। अब देर रात तक जगना, पित्जा और कोल्ड ड्रिंक पार्टी करना ही हमारी जीवन शैली है।

जाहिर तौर पर यह बीमारी पश्चिमी जीवन शैली पोषित और प्रसारित बीमारी है। हमने अपनी पुरानी जीवनशैली को नकल के चक्कर में बेकार मान लिया। नकल की होड़ में फास्ट फूड के दीवाने हो गए। मोटा अनाज खाना भूल गए। देसी पेय को भूल कर कोल्ड ड्रिंक्स के जाल में फंस गए। थोड़ा धन आते ही अपने जीवन को विलासिता में डुबा दिया। ऐसी विलासिता में जहां हर काम मशीन करे। पैदल चलने की प्रवृत्ति खो दी। सीधे शब्दों में कहें तो पैदल चलने को अपने अपमान से जोड़ दिया। शरीर को जितनी थकावट या श्रम की जरूरत होती है, उसे उतना करने ही नहीं दिया। शरीर को बेवजह का आराम देने के साथ ही ऐसा भोजन उपलब्ध कराया जिसके नकारात्मक परिणाम आने ही थे। अब लैसेंट की रिपोर्ट हमें डरा रही है। वैसे वक्त अभी भी नहीं बदला है। हम और आप पुरानी जीवन शैली अपना कर इस महामारी को दूर से ही नमस्ते कर सकते हैं।

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