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सोच हर दिन की नई ले पल रही है ज़िंदगी,बस कभी हँस कर कभी रो ढल रही है ज़िंदगी। ————–काट कर यूँ मत रुलाना तुम ज़रा-सा भी इसे,प्यार की उम्मीद पर ही चल रही है जिंदगी । –‐———–इश्क से ही सम्भले, तो चैन मिल भी पाएगा,बैर से कड़वी दवा-सी खल रही है ज़िंदगी। —–‐‐—–बेवजह ही जीतने की होड़ में हम लड़ रहे,लड़-झगड़ कर बस बिगड़ती, गल रही है ज़िंदगी। ————–आज आओ सब मिलें सोचें ज़रा समझें ज़रा,लौ लिए दिल में ‘मिलन’ की जल रही है ज़िंदगी।