राममय भारत को आकार देने के संकल्पों का गणतंत्र

गणतंत्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है, इसी दिन 26 जनवरी, 1950 को हमारी संसद ने भारतीय संविधान को पास किया। इस दिन भारत ने खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। भारतीय संविधान के अग्रिम पृष्ठ पर प्रभु श्रीराम विराजित है, लेकिन पूर्व सरकारों ने श्रीराम के गणतांत्रिक गौरव को न अपनाने के कारण चौहत्तर वर्षों में हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाड़ियों में फँसा रहा। लेकिन इस वर्ष प्रभु श्रीराम के मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा हो जाने से इस राष्ट्रीय पर्व का महत्व बहुगुणित हो गया है और हमें अब वास्तविक रूप में संप्रभुता का अहसास होने लगा है। भारतीय इतिहास का यह नया प्रस्थान बिंदु है जहां से भारत राममय होने की ओर अग्रसर हो रहा है। भारतीय मानस, मनीषा और जनजीवन के पांच सौ वर्ष पुराने संघर्ष-गाथा का अन्तिम अध्याय लिखते हुए अब भारत रामराज्य के वास्तविक स्वरूप में प्रवेश कर रहा है, जहां सुख सम्पदा बड़ी मात्रा में होगी, प्रेम और खुशी का वातावरण होगा, आदर्श राज्य की कल्पना आकार लेगी।

अयोध्या में लिखा गया नया इतिहास एवं अमिट आलेख आने वाले हजारों वर्षों के लिये एक सन्देश है, एक उर्वर धरातल है, स्वयं के द्वारा दुनिया कोे प्रेरणा देने का अवसर है। दुनिया में आदर्श शासन प्रणाली में राम राज्य ही शांति, सह-जीवन, सह-अस्तित्व एवं वसुधैव कुटुम्बकम के मंत्र को आकार देने का मार्ग है। वर्तमान दुनिया को इसी राम राज्य की आवश्यकता है। श्रीराम मंदिर का निर्माण इस लिहाज से भारत ही नहीं सम्पूर्ण दुनिया में नवीन आदर्श जीवन मूल्यों एवं लोकतांत्रिक आदर्शों की स्थापना का शुभ अवसर है।

गणतंत्र कोरा राष्ट्रीयता का ही नहीं, आस्था एवं संकल्पों का पर्व है, इस पर्व का जश्न सामने हैं, राजपथ पर निकलने वाली झांकियों में श्रीराम की प्रभावी एवं प्रेरक प्रस्तुति होगी। जिसमें प्रभु श्रीराम के आदर्शों को अपनाते हुए कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी झलकेगी तो अब तक कुछ न कर पाने की बेचैनी भी दिखाई देगी। जहां हमारी जागती आंखो से देखे गये स्वप्नों को आकार देने का विश्वास है तो जीवन मूल्यों को सुरक्षित करने एवं नया भारत निर्मित करने की तीव्र तैयारी है। अब हमारी स्व-चेतना, राष्ट्रीयता एवं स्व-पहचान का अहसास होने लगा है। जिसमें आकार लेते वैयक्तिक, सामुदायिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक अर्थ की सुनहरी छटाएं हैं। अब बहुत कुछ बदलने जा रहा है।

पांच सौ साल पहले जब बाबर की बर्बर सेनाओं ने रामलला के मन्दिर को ध्वस्त करने का अभियान छेड़ा था, वो एवं उसके बाद की शासन-व्यवस्थाओं ने श्रीराम को धुंधलाने के षडयंत्र किये, जब उनके आकाओं ने क्या सोचा होगा? वे इस राष्ट्र की आस्थाओं को नष्ट कर देना चाहते थे, भारत की समृद्ध विरासत एवं संस्कृति को जमींदोज कर देना चाहते थे, बहुत नकारात्मक एवं कुटिल सोच थी उनकी कि आस्था-विहीन मनुष्य आसानी से गुलाम बन जाते हैं। यह बड़ा सच है कि हमारा राष्ट्र पराधीन हुआ, लेकिन हमारी आस्थाएं मरी नहीं थी, हमारा विश्वास काल-कवलित नहीं हुआ। आज के परिदृश्यों को देखते हुए कहा जा सकता है कि एक मायने में आक्रांता गलत साबित हुए, राष्ट्र-विरोधी एवं हिन्दू-विरोधी ताकते पस्त हुई। अयोध्या में लिखे गये स्वर्णिम इतिहास से यह साबित किया गया है कि भारतीयों की आस्था, संघर्ष और विश्वास परम्परा को एक नया मुकाम दे दिया गया है। एक नये गणतंत्र का अभ्युदय हुआ है।

राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस हमारी उन सफलताओं की ओर इशारा करता है जो इतनी लंबी अवधि के दौरान अब जी-तोड़ प्रयासों के फलस्वरूप मिली है। यह पर्व इस वर्ष अधिक उमंग एवं उत्साह से इसलिये भरा है कि श्रीराम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा की अनूठी कहानी का यह साक्ष्यी बन रहा है, जहां आठ हजार लोगों की जो जनशक्ति उपस्थित थी, उसमें 140 करोड़ भारतीयों की मनीषा, जिजीविषा, धार्मिकता, रचनात्मकता, सृजनात्मकता, उद्यमशीलता की गवाह थी। हर क्षेत्र में नया इतिहास निर्मित करने वाली प्रतिभाएं एवं हस्तियां यहां मौजूद थी, जो प्रभु श्रीराम से शक्ति लेकर नया भारत को निर्मित करने के लिये तत्पर हुई है। यह मन्दिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल को ध्वस्त करने को लेकर शुरु हुए संघर्ष का अंत नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये कुछ नया करने, अद्भुत रचने, राष्ट्र-गौरव को निर्मित करने एवं अपनी आस्थाओं को बलशाली बनाने का पैगाम है।

श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन जहां त्याग की मूर्ति है, वहीं ऋषि मुनियों और जनसाधारण की रक्षा का संकल्प भी है। श्रीराम ने कष्टों और बाधाओं में भी उच्च जीवन मूल्यों को प्रतिस्थापित किया। उन्होंने जहां आदर्श-शासन व्यवस्था का सूत्रपात किया, वहीं आदर्श मानव चरित्र एवं जीवन को आकार दिया, यहीं जीवन मूल्य भारतीय जीवन शैली में आज भी व्याप्त है। तुलसीदासजी ने श्रीराम को एक आदर्श शासक पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जिनमें करुणा, दया, क्षमा, सत्य, न्याय, साहस, सदाचार, धैर्य और नेतृत्व जैसे गुण समाहित है। वे एक आदर्श पुत्र, भाई, पति, राजा और मित्र हैं। 26 जनवरी भारतीय संविधान के लागू होने का दिवस है, तो 22 जनवरी महामानव, त्यागमूर्ति, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा का अवसर।

भारतीय संविधान के भाग तीन पर जहां हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लेख है, भगवान श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मणजी का चित्र हैं, जो भारतीय जनमानस को इन आदर्श धर्म-राष्ट्रनायक के अनुरूप स्वयं को निर्मित करने की प्रेरणा देता है। हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, आस्थावादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह सही है और इसके लिए सर्वप्रथम जिस इच्छा-शक्ति की आवश्यकता है, वह हमारी शासन-व्यवस्था एवं शासन नायकों में सर्वात्मना नजर आनी चाहिए और ऐसा होने लगा है तो यह सुखद अहसास है।

एक संकल्प लाखों संकल्पों का उजाला बांट सकता है यदि दृढ़-संकल्प लेने का साहसिक प्रयत्न कोई शुरु करे। अंधेरों, अवरोधों एवं अक्षमताओं से संघर्ष करने की एक सार्थक मुहिम हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में शुरू हुई थी। उनके दूसरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल में सुखद एवं उपलब्धिभरी प्रतिध्वनियां सुनाई दे रही है, चांद एवं सूर्य पर विजय पताका फहरा देने के बाद धरती को स्वर्ग बनाने की मुहीम चल रही है, उसकी सार्थक ध्वनि है श्रीराम मन्दिर। जो भारत के लिये एक शुभ एवं श्रेयस्कर घटना है।

राष्ट्रीय जीवन में विकास की नयी गाथाएं लिखते हुए भारत को दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनाने की ओर अग्रसर भारत अब विश्व-गुरु भी बनने की ओर गतिशील है। गत वर्ष 9 एवं 10 सितम्बर को जी-20 देशों महासम्मेलन भारत में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस जिम्मेदारी को संभालने का अर्थ था भारत को सशक्त करने के साथ-साथ दुनिया को एक नया चिन्तन, नया आर्थिक धरातल, शांति एवं सह-जीवन की संभावनाओं को बल देना। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा घोषित नई शिक्षा नीति की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता धीरे-धीरे सामने आने लगी है एवं उसके उद्देश्यों की परते खुलने लगी है।

अयोध्या से पहले काशी में विश्वनाथ धाम का जो विकास हुआ है, उसे हमने देखा। मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में जता दिया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली सरकार अपने फैसलों से कैसे देश की दशा-दिशा बदल सकती है। कैसे राष्ट्र की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए पडौसी देशों को चेता सकती है, कैसे स्व-संस्कृति एवं मूल्यों को बल दिया जा सकता है। गणतंत्र दिवस समारोह मनाते हुए भारत में धर्मस्थलों और तीर्थों के विकास की किसी भी पहल की भी प्रशंसा होनी ही चाहिए। भारत के गणतंत्र में और भी चार-चांद लग रहे हैं, जैसे काशी हो या अयोध्या या ऐसे ही धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रांति के परिदृश्य- ये अजूबे एवं चौंकाने वाले लगते हैं। अयोध्या से नरेन्द्र मोदी ने जो संदेश दिया है, उसे केवल चुनावी नफा-नुकसान के नजरिये से नहीं देखना चाहिए, बल्कि एक सशक्त होते राष्ट्र के नजरिये से देखा जाना चाहिए। उनका यह कहना खास मायने रखता है कि सदियों की गुलामी के चलते भारत को जिस हीनभावना से भर दिया गया था, आज का भारत उससे बाहर निकल रहा है। यह स्थिति इस वर्ष का गणतंत्र दिवस समारोह मनाते हुए विशेष रूप से गौरवान्वित करेंगी।

भारत के संवैधानिक एवं संप्रभुता सम्पन्न राष्ट्र बनने की 74वीं वर्षगांठ मनाते हुए हम अब वास्तविक भारतीयता का स्वाद चखने लगे हैं, आतंकवाद, जातिवाद, क्षेत्रीयवाद, अलगाववाद की कालिमा धूल गयी है, धर्म, भाषा, वर्ग, वर्ण और दलीय स्वार्थों के राजनीतिक विवादों पर भी नियंत्रण हो रहा है। इन नवनिर्माण के पदचिन्हों को स्थापित करते हुए हम प्रधानमंत्री के मुख से नये भारत-सशक्त भारत को आकार लेने के संकल्पों की बात सुनते हैं। गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाते हुए यही कामना है कि पुरुषार्थ के हाथों भाग्य बदलने का गहरा आत्मविश्वास सुरक्षा पाये। एक के लिए सब, सबके लिए एक की विकास गंगा प्रवहमान हो।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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