केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने आज वर्चुअल रूप में “रीजनल कंसल्टेटिव वर्कशॉप ऑन रीसर्च प्रायोरिटी फॉर प्रोवाइडिंग एक्सेसिवल एंड अफर्डेबल हेल्थकेयर फॉर द नॉर्थ-ईस्टर्न स्टेट ऑफ इंडिया” (भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए सुलभ और किफायती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए अनुसंधान प्राथमिकता पर क्षेत्रीय परामर्शदात्री कार्यशाला) का उद्घाटन किया। इस अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार और मेघालय सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. माज़ेल अम्पारीन लिंगदोह भी उपस्थित थे। कार्यशाला का आयोजन केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान, शिलांग और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, डिब्रूगढ़ द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।
सभा को संबोधित करते हुए डॉ मांडविया ने कहा, “प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना एक स्वस्थ भारत, एक विकसित भारत बनाना है, जिसमें देश के प्रत्येक नागरिक को समय पर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें; स्वास्थ्य सुविधाएं और दवाएं आसानी से सस्ती, सुलभ और उपलब्ध होनी चाहिए और स्वास्थ्य सुविधाएं सभी भौगोलिक क्षेत्रों में मिलनी चाहिए। इनकी संतुलित उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि अमीर-गरीब का भेद किए बिना सभी को समान रूप से स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, सरकार ने नीतियों और विभिन्न योजनाओं पर काम किया है जिसके कारण भारत ने एक स्वास्थ्य मॉडल बनाया है जो ‘सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय’ की भावना को सार्थक करता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता पर डॉ. मांडविया ने कहा, ‘पिछले 10 वर्षों में स्वास्थ्य को सभी प्रकार की कनेक्टिविटी से जोड़कर देश की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया गया है।’ इसमें रोडवेज, रेलवे, आई-वे, वॉटरवे और रोपवे आदि शामिल हैं। देश में पहली बार उत्तर-पूर्व क्षेत्र को भारत के ग्रोथ इंजन के रूप में देखा जाने लगा है। स्वास्थ्य सेवा आज इस पूरे क्षेत्र के लिए सुलभ और उपलब्ध हो गई है। उन्होंने कहा, “पिछले 10 वर्षों में, रिम्स (रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज), आरआईपीएएनएस (रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल एंड नर्सिंग साइंसेज), एनईआईजीआरआईएचएमएस (नॉर्थईस्टर्न इंदिरा गांधी रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल साइंसेज) और असम एम्स (अखिल भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) जैसे संस्थान चिकित्सा विज्ञान) का विकास किया गया है तथा क्षेत्र में 23 नए मेडिकल कॉलेज खोले गए हैं। आईसीएमआर ने इस क्षेत्र में विभिन्न स्वास्थ्य सुविधाएं भी विकसित की हैं।”
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बताया, ”आज 31 करोड़ से ज्यादा लोगों को अस्पताल में इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड दिया गया है, जिसके तहत सालाना पांच लाख रुपये तक का मुफ्त पारिवारिक इलाज दिया जा रहा है, 11,000 जन औषधि केंद्र तैयार किए गए हैं, जहां 50-80 प्रतिशत सस्ती दवाएं उपलब्ध हैं, 1.64 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर खुले हैं, जिन्हें भारत के लोगों का हेल्थ गेट-कीपर माना जाता है। इसके अलावा 48 बीएसएल प्रयोगशालाओं के जरिये संपूर्ण स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली और वन हेल्थ पहल लागू की जा रही है।” उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि “देश में 22 लाख से अधिक किडनी रोगियों को मुफ्त डायलिसिस सेवा मिली है, देश के लगभग छह करोड़ लोगों को पीएमजेएवाई के माध्यम से मुफ्त इलाज मिला है और नागरिकों के कुल स्वास्थ्य व्यय पर अपनी जेब से होने वाला खर्च 62.6 प्रतिशत से कम होकर 47.1 प्रतिशत हो गया है।”
डॉ मांडविया ने यह भी कहा कि सरकार आवश्यक चिकित्सा की तर्ज पर आवश्यक स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी पर काम कर रही है। यह प्रयास आने वाले समय में सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य तकनीकों को उपलब्ध, सुलभ, किफायती और न्यायसंगत बनाएंगे।
इस अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एक मार्केट प्लेस का भी उद्घाटन किया और आईआईपीएच, शिलांग में स्वास्थ्य अर्थ-विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मूल्यांकन पर एक स्नातकोत्तर कार्यक्रम शुरू किया।
इस अवसर पर स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और महानिदेशक, आईसीएमआर डॉ. राजीव बहल; स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग की संयुक्त सचिव श्रीमती अनु नागर; मेघालय के प्रधान स्वास्थ्य सचिव श्री संपत कुमार और केंद्र सरकार व मेघालय सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।