नकली दवाओं से जीवन-रक्षा पर बढ़ते खतरे

दवाओं में मिलावट एवं नकली दवाओं का व्यापार ऐसा कुत्सित एवं अमानवीय कृत है जिससे मानव जीवन खतरे में हैं। विडम्बना है कि दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए गुणवत्ता नियंत्रण का कोई नियम नहीं है और स्वयं कंपनियां ही अपनी दवाओं की गुणवत्ता का सत्यापन करती हैं। यह ठीक नहीं और ऐसे समय तो बिल्कुल भी नहीं, जब दवाओं की गुणवत्ता को लेकर दुनिया भर में जागरूकता बढ़ रही है। चूंकि भारत एक बड़ा दवा निर्यातक देश है और उसे विश्व का औषधि कारखाना कहा जाता है, दुनियाभर में भारत की दवाओं का निर्यात होता है, ऐसे समय में बार-बार नकली दवाओं का भंडाफोड़ होना या  कैंसर जैसी असाध्य बीमारी की नकली दवाओं का व्यापार करने वालो का पर्दापाश होना, न केवल चिन्ता का विषय है, बल्कि एक जघन्य अपराध है। यह भारत की साख को भी आहत करता है। इसलिए सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह दवा कंपनियों के लिए क्वालिटी कंट्रोल का कोई भरोसेमंद नियम बनाए एवं नकली दवाओं का व्यापार करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।

कुछ दिन पहले ही कैंसर जैसी असाध्य बीमारी की नकली एलोपैथिक दवाओं की फैक्टरियां गाजियाबाद से हैदराबाद तक पकड़ी गईं? हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने 22 से अधिक नकली या मिलावटी आयुर्वेदिक दवाओं की बिक्री पर रोक लगाई है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने कैंसर से जुड़े नकली दवाओं के एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया है। सुप्रीम कोर्ट में स्वामी रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ दायर भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) की याचिका की सुनवाई करते हुए सख्त नाराजगी जाहिर की है। समय आ गया है, आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण से जुड़ी कंपनियों की दवा परीक्षण-प्रणाली की ठोस निगरानी सुनिश्चित की जाए। यह आवश्यक है कि दवा कंपनियों के लिए क्वालिटी कंट्रोल के भरोसेमंद एवं सख्त नियम बनाए जाये। इन नियमों के दायरे में निर्यात होने वाली दवाएं भी आनी चाहिए और देश में बिकने वाली दवाएं भी, क्योंकि जहां नकली और खराब गुणवत्ता वाली दवाएं निर्यात होने से भारत की प्रतिष्ठा धूमिल होती है, वहीं इनका उपयोग देश में होने से लोगों का जीवन खतरे में आ जाता है।

यह तय है कि हमारे देश में आयुर्वेद की बेहद समृद्ध चिकित्सा पद्धति है और करोड़ों लोग इस प्रणाली से लाभान्वित भी हुए हैं। इस बात से आधुनिक चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी) या आईएमए का कोई झगड़ा या विरोध भी नहीं है, परेशानी प्रामाणिकता की कसौटी पर खरी आधुनिक चिकित्सा पद्धति को निराधार चुनौती देने और लोगों को गुमराह करने को लेकर है। इन दोनों पद्धतियों के पेशेवरों और दवाओं का अंतिम उद्देश्य मरीजों को स्वस्थ करना है। मगर दुर्योग से दोनों पद्धतियों में कुछ लोभी कारोबारी नकली दवाओं के जरिये बेबस लोगों की सेहत से खिलवाड़ करते हैं। जीवन रक्षक दवाइयों के मामलों में दवा बदलने का मौका नहीं होता है, यहां मिलावट आपको सीधा मौत देती है। दवा व्यवसाय में चलने वाली यह अनैतिकता एवं अप्रामाणिकता बेचैन करने वाली है।

मिलावट व्यवसाय की एक बड़ी विसंगति एवं त्रासदी है। दूध में जल, शुद्ध घी में वनस्पति घी अथवा चर्बी, महँगे और श्रेष्ठतर अन्नों में सस्ते और घटिया अन्नों आदि के मिश्रण को साधारणतः मिलावट या अपमिश्रण कहते हैं। किंतु मिश्रण के बिना भी शुद्ध खाद्य को विकृत अथवा हानिकर किया जा सकता है और उसके पौष्टिक मान-फूड वैल्यू को गिराया जा सकता है। दूध से मक्खन का कुछ अंश निकालकर उसे शुद्ध दूध के रूप में बेचना, अथवा एक बार प्रयुक्त चाय की साररहित पत्तियों को सुखाकर पुनः बेचना मिश्रणरहित अपद्रव्यीकरण के उदाहरण हैं। इसी प्रकार बिना किसी मिलावट के घटिया वस्तु को शुद्ध एवं विशेष गुणकारी घोषित कर झूठे दावे सहित आकर्षक नाम देकर, लुभावने विज्ञापनों से जनता को ठगा जाना अपराध है। पतंजलि आयुर्वेद संस्थान ऐसा ही करते हुए मोटा मुनाफा कमाता रहा है।

दरअसल, पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों का पूरा मसला ही अपने आप में एक बड़ा मामला है, खासकर दवाओं के मामले में इसके परिणामों की प्रकृति इसे और गंभीर बना देती है। ऐसे में, अदालत ने केंद्र व राज्य सरकारों के रवैये पर भी गंभीर टिप्पणी की है, विडंबना यह है कि जिस आईएमए ने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन और इसके ऊंचे ओहदेदारों के बड़बोलेपन के खिलाफ अदालत की शरण ली है। लेकिन प्रश्न है कि आईएमए ऐसे कितने मामलों में ऐसी जागरूकता बरतती है। अदालत ने अपनी टिप्पणियों में एक बार फिर जता दिया है कि कोई कितना भी रसूखदार क्यों न हो, कानून की महिमा सबसे ऊपर है।

दवा व्यवसाय में एक से बढ़कर एक घातक एवं विडम्बनापूर्ण स्थिति सामने आ रही है। अब आयुर्वेदिक औषधियों को तत्काल राहत देने वाली बनाने के लिए एलोपैथी दवाओं के रसायनों को अवैज्ञानिक तरीके से मिलाने का खतरनाक कारोबार चर्चा में है, जो गंभीर चिंता का विषय बन रहा है। मध्यप्रदेश में खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने राजधानी सहित आसपास के नगरों की दवा दुकानों पर छापा मारकर आठ करोड़ 23 लाख रुपये मूल्य की ऐसी आयुर्वेदिक दवाएं जब्त की हैं जिनके बारे में दावा किया जा रहा था कि इनमें रोगों से लड़ने की चमत्कारी शक्ति है।

जांच में तथ्य सामने आये हैं कि आयुर्वेदिक दवा वताहारी वटी तथा चंदा वटी में एलोपैथी दवा डाइक्लोेफेनिक व एसिक्लोफेनिक को मिलाकर अवैध फार्मूला विकसित किया गया है जिसे दवा विक्रेता जादुई बताकर देश के विभिन्न् हिस्सों में बेच रहे थे। उक्त दोनों रसायनों का उपयोग एलोपैथी में दर्द निवारक के रूप में किया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार इस फार्मूले का तात्कालिक प्रभाव भले ही चमत्कारी लगे किंतु दूरगामी परिणाम घातक हैं। इसका यकृत, गुर्दा तथा पेट के अन्य अंगों पर स्थाई दुष्प्रभाव हो सकता है।

पिछले दिनों विदेश व्यापार महानिदेशालय ने एक अधिसूचना जारी कर कहा कि एक जून से कफ सिरप निर्यातकों को विदेश भेजने के पहले अपने उत्पादों का निर्धारित सरकारी प्रयोगशालाओं में परीक्षण कराना आवश्यक होगा। लेकिन यह दवाओं की मिलावट एवं नकली दवाओं के उत्पाद पर नियंत्रण के लिये पर्याप्त नहीं है। यह ठीक है कि विदेश व्यापार महानिदेशालय ने कफ सिरप के मामले में एक आवश्यक कदम उठाया, लेकिन ऐसा कदम तो निर्यात होने वाली सभी दवाओं के मामले में उठाया जाना चाहिए। बात केवल निर्यात होने वाली दवाओं का ही नहीं है, बल्कि देश में उपयोग में आने वाली नकली एवं मिलावटी दवाओं का भी है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ समय पहले एक भारतीय फार्मा कंपनी की ओर से अमेरिका भेजी गई आई ड्राप में खामी मिलने की बात सामने आई थी।

प्रश्न यह है कि यह नया नियम केवल खांसी के सिरप पर ही क्यों लागू हो रहा है? क्या इसलिए कि पिछले वर्ष गांबिया और उज्बेकिस्तान में भारतीय दवा कंपनियों की ओर भेजे गए कफ सिरप में खामी पाई गई? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय कंपनियों की ओर से इन देशों में निर्यात किए गए कफ सिरप से कुछ बच्चों की मौत का भी दावा किया। यद्यपि इस दावे को भारत-सरकार ने चुनौती दी, लेकिन देश से निर्यात होने वाले कफ सिरप की गुणवत्ता को लेकर विश्व के कुछ देशों में संशय पैदा होना स्वाभाविक है और दुखद भी है।

स्पष्ट है कि भारत को अपने दवा उद्योग की साख को बचाने के लिए हरसंभव जतन करने होंगे। जिस तरह विदेश व्यापार महानिदेशालय कफ सिरप के निर्यात के मामले में सक्रिय हुआ, उसी तरह औषधि महानियंत्रक को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में बनने वाली दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कहीं कोई सवाल न उठने पाए। मिलावटी दवाओं के कारोबार पर नकेल कसने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में पहली बार बड़े पैमाने पर एक अभियान शुरू किया है, जल्द ही इसके नतीजे सामने आने की संभावना है। दवाओं की क्वालिटी को बरकरार रखने के लिए हाल ही में यूके के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक एमओयू भी साइन किया है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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