कबीर आज भी प्रासंगिक हैं

-11 जून कबीर प्राकट्योत्सव दिवस पर विशेष-

कबीर की जन्मतिथि के साथ साथ उनके जन्मस्थान पर भी आजतक खासा विवाद कायम हैं। अनेक विद्वानों एवं इतिहास विदों ने उनके जन्म समय एवं जन्मस्थान को अलग अलग निरूपित किया हुआ है। कबीर के प्रधान शिष्य धर्मदास के एक पंथ के अनुसार कबीर का ज्नम कब हुआ वह निम्न पंथ से स्पष्ट है-

चौदह सौ पचपन गाल गए,
चंद्रवार एक ठाठ हुए।
जेठ सुदी बरसावेत को,
पूरनमासी तिथी प्रगट भए ।।

कुछ विद्वानों ने गणना करके वह भी सिद्ध किया है, कि 1455 या 56 में ऐसा एक भी ज्येष्ठ पूर्णिमा नहीं थी, जिस दिन सोमवार भी हो। कबीर के जन्मतिथि के संबंध में यह पंक्तियां भी रचित की गई है: सम्वत बारह सौ पांच में ज्ञानी

कियो विदार हक सार ।। 
कासी में परगट भयों शब्द कहाँ।।

अनेक कारणों से यह समय भी प्रमाणिक नहीं माना जाता। वहीं कबीर के जन्म स्थान के बारे में भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। ऐसा मानने वाले ज्यादा लोग हैं कि कबीरदास काशी की एक ब्राम्हण विधवा के संतान थे। लोकलाज के भय से विधवा ने अपने नवजात शिशु को एक जलाशय के किनारे छोड़ दिया था। मीरु जुलाहें और उसकी पत्नी नीमा को वह बालक प्राप्त हुआ था। कबीर का जन्मसमय के साथ उनका जन्मस्थान भी जितना विवादास्पद और रहस्य के कोहरे में लिपटा हुआ है, ठीक उसके उलट उनका व्यक्तित्व स्वभाव से अक्खड़ और आदत से फक्कड़ था। उनका व्यक्तित्व एक खुले पुस्तक के समान सबके सामने एक दम स्पष्ट और खुला था। उनमें कोई भी दुराव छिपाव कभी नहीं रहा। सभी के साथ एक जैसा व्यवहार और प्रत्येक से अपनी वही बात कहना जो अन्यों से अन्य परिस्थतियों में उनके द्वारा पूर्व में कहा गया होता है। यही कारण था कि उनकी निर्भिकता एवं बेधड़क लेकिन सच्ची और कड़वी जुबान से राजे महाराजे एवं बादशाह भी थर्राते थे।

हिन्दी साहित्स के इतिहास में कवि तो अनेक हुये हैं, किन्तु व्यक्तित्व सम्पन्न कवि इने गिने ही हैं। व्यक्ति का यही स्वतंत्र अस्तित्व है जो विशिष्ट एवं अद्वितीय होता हैं। नितांत मौलिक, सर्वथा कालदर्शी एवं पूर्ण युगांतकारी व्यक्तित्व हिन्दीकाव्य. के इतिहास में कबीरदास के अलावा भारतेन्दु हरिशचंद्र, सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” और गजानन माधव मुक्तिबोध जैसे कुछ व्यक्तित्वों का आकलन करते हुये पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें परस्पर विरोधी गुणों का पुंज कहा है। उनके शब्दों में – “वे सिर से पैर तक मस्तमौला थे-बेपरवाह, दृढ़, उग्र,कोमल और कठोर।”व्यक्तित्व के स्वामी थे।

कबीर के व्यक्तित्व का सर्वाधिक उल्लेखनीय गुण उनकी मौलिकता है। वे स्वाधीन चिंता के पुरुष ये। आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने लिखा है -“कबीर पहुंचे हुये ज्ञानी थे। उनका ज्ञान पोथियों की नकल नही था और न ही वह सुनी सुनाई बातों का बेमेल भण्डार था। पढ़े लिखे तो वे थे नहीं, परंतु सत्संग से जो मानसिक द्वंद्र से सर्वथा अपनी ही राय बना लेने का प्रयत्न करते थे। उन्होंने अपने युग में सारे समाज के लिए जिन बातों को उपयोगी और जीवनदायिनी समझा, उनको सम्पूर्ण आत्मविश्वास के साथ बेहिचक कहा। इसी तथ्य को रेखांकित करने के लिए “हरिऔध” ने कहा है कि कबीर दास ने. अपने विचारों के लिए कोई आधार नहीं दूढ़ां, किसी ग्रंथ का प्रमाण नहीं चाहा। उन्होंने सोचा कि जो बात सत्य हैं, वास्तविक है उसकी सत्यता और वास्तिकता ही उनका प्रमाण‌ है  फिर सहारा क्या? कबीरदास जिस धर्म और समाज के बीच उत्पन्न हुये थे जिसके बीच उन्होंने अपने व्यक्तित्व का विकास किया था वह घोर पांखड, कदाचार, विषमता और पारस्परिक विद्वेष का शिकार था।

कबीर ने यह भलीभांति समझ लिया था कि धर्म और समाज का रोग जितना संघातक और भीषण है, उसका उपचार भी उतना ही निर्मम और निर्णायक होना चाहिए। अपनी अक्खड़ता के कारण कबीर के व्यक्तित्व में किसी प्रकार की रूमानियत अथवा लिजलिजी भावुकता के लिए कोई स्थान नहीं था। संसार में भटकते हुए जीवों को देखकर वे करुणापूर्ण न होकर उन्हें और भी कठोर होकर फटकारते थे। कबीर के व्यक्तित्व की अक्खड़ता उन्हें सच्चे संत की तरह कर्म की रेखा पर चोट मारने की लिए उकसाती है। कबीरदास की अक्खड़ता का परिचय देती यह कविता जो निम्न है: 

ज्ञान का गेंद कर सुर्त का डंडकर।
खेल चौगान मैदान मांडी।
ज्ञान कार मंदकर सुर्त का उड़कर। खेल चौगान मैदान मा
जगत का भरमना छ बालक आय जा भेष-भगवंत पाही ।।

भेष-भगवंत की शेष महिमा करे
शेष के सीर पर चरन डारे। कामदल जीति के कंवल दल सोधि के ब्रम्ह को बेधि के क्रोध मोर ।। 
पदम आसन करेन पारिये करे गगन के महल पर मदन जोहे। कहत कबीर कोई संत जन जौहरी
करम की रेख पर मेख मारे।।

कबीरे की अक्खड़ता, फक्कड़ता और घरफूंक मस्ती का मूल अंसतुलित दीवानापन नही वरन गहन मानवीय, करुणा है। कबीरदास गहन मानवीय, करुणाकवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में, स्थान स्थान पर जिन तिलमिला देने. व्यंग्य वचनों का प्रयोग किया है उसका कारण उनकी मानववादिता है। वास्तव में व्यंग्य का मूलस्वरुप क्रोधजन्य न होकर करुणाजन्य होता है। एक गंभीर मानवीय करुणा कबीर को व्यंग्यकार बनाती है। कबीर यह जानते थे कि समाज को संसार को, बेहतर बनाने के लिए सबसे पहले मंदिर और मस्जिदों से ही शुरू कर पाखंडों का घड़ा फोड़ना था।

काबा और काशी, मुल्ला और पंडित, रमजान और एकादशी समाज विद्वेष और घृणा फैलाने वाली शक्तिया और वे मनुष्य के दर्जे से बीच अदृश्य स्वार्थ की शक्तियां थी इसीलिए कबीर ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति धार्मिक पाखण्ड के रुप में प्रचलित मानवता विरोधी षंडयंत्र को चकनाचूर करने में लगा दी। डॉ. प्रकाश चंद्र गुप्त ने ठीक ही लिखा है – “सामाजिक शोषण, अनाचार व अन्याय के खिलाफ संघर्ष में आज भी कबीर का काव्य एक तीक्ष्ण अस्त्र है। कबीर से हम रूढ़िगत सांमती दुराचार और अन्यायी समाजिक व्यवस्था के विरुद्ध. डटकर लड़ना सीखते हैं और यह भी सिखते हैं कि विद्रोही कवि किस प्रकार अंत तक शोषण के दुर्ग के सामने अपना माथा ऊंचा रखता है। तभी तो उन्होने स्पष्ट शब्दों में कहा है

बहुतीरथि भुमनां ।
जोगी जतीतपी सन्यासी, लुंचित मुंडित मौनी जटाधर,
अंति तऊ भरनां ।।

वे हिन्दू समाज व्यवस्था के निर्मम आलोचक थे। यही नहीं, मुसलमानों के आडंबरों का भी कबीर ने प्रखरतम शब्दों में खण्डन किया है।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »