-3 दिसंबर विश्व दिव्यांगता दिवस पर विशेष-
यदि पुरुषार्थ है तो विकलांगता कार्य सिद्धि में बाधा नहीं बन सकती है। किसी भी राष्ट्र की वास्तविक पूंजी उसके स्वस्थ और सुखी स्त्री, पुरुष तथा बच्चे होते हैं। समाज के कुछ व्यक्ति या समूह अपनी शारीरिक निर्बलता तथा सामाजिक एवं आर्थिक विवशताओं व समाज के अन्य घटकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में असमर्थ होते हैं। ये वे व्यक्ति हैं, जो अज्ञानता तथा पर्याप्त चिकित्सा के अभाव में विकलांग (दिव्यांग) हो जाते हैं। आधुनिक मशीनी जीवन के भागमभाग भरे माहौल ने भी कुछ व्यक्तियों को शारीरिक तथा मानिसक रूप से विकलांग बनाया है। ऐसे विकलांगों में दृष्टि बाधित, श्रवण बाधित, अस्थिबाधित, मानसिक पक्षाघात से पीड़ित, मानसिक विकलांग तथा कुष्ठ रोग से पीडित विकलांग सम्मिलित हैं।
आज दुनिया में विकलांगों की संख्या करोड़ों में है। एक आंकलन के अनुसार अकेले भारत में ही लगभग आठ प्रतिशत आबादी अर्थात लगभग दो करोड़ छप्पन लाख विकलांगों की आबादी है। जिसमें से आधी आर्थात् चार प्रतिशत आबादी विकलांग महिलाओं की है। देश में कार्य कर रही कुल आठ नौ हजार संस्थाओं में सरकारी संस्थाएं मात्र सौ से कुछ अधिक हैं। अतः अधिकांश कार्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा ही कियां जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार विकलांगों के लिये काम कर रही अस्सी प्रतिशत संस्थाएं केवल नौ राज्यों में है। ये राज्य है, आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, और दिल्ली, किन्तु बिहार उड़ीसा जैसे गरीब राज्यों जहां गरीबी के कारण विकलांगों का प्रतिशत और विकलांगता के कारण होने वाला कष्ट ज्यादा है, वहां इस प्रकार की संस्थाओं की संख्या बहुत कम है।
राष्ट्रीय नमूनी सर्वेक्षण संगठन द्वारा किये गये सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में पैंसठ प्रतिशत विकलांग निरक्षर है। शहरी क्षेत्रों में चालीस प्रतिशत व्यक्ति निरक्षर हैं। अर्थात 1996-97 की जनसंख्या के अनुसार कुल आबादी का अड़तालीस प्रतिशत निरक्षर है। इस तथ्य से ही पता चल जाता है कि सामान्य व्यक्तियों के मुकाबले विकलांग शिक्षा के क्षेत्र में कितने पिछड़े हैं। आजादी के बाद केन्द्र सरकार ने (1953) केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना की इसका मूल उदेश्य महिलाओं, बच्चों और विकलांगों के लिये स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिये कल्याण कार्यक्रम चलाना था, यही नहीं विकलांगों के लिये कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाये जा रहे विशेष विद्यालयों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
इस समय देश में लगभग दो लाख से अधिक दृष्टिहीन है, जिसके लिये ढ़ाई सौ से अधिक विद्यालय और बधिरों के लिये लगभग पांच सौ विद्यालय चल रहे हैं। जिनमें सौ से अधिक माध्यमिक स्तर के हैं। विकलांगों की दशा सुधारने के लिए सरकारी प्रयास तो हुए है, लेकिन उन्हें संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। सरकार और हमारे बीच विचौलिया संस्थाओं के चलते विकलांगों का भला नही हो पा रहा हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि सरकार इससे संबंधित पूरे क्रियाकलापों की देखभाल स्वयं करें। ऐसा नहीं है कि सरकार की ओर से कोशिशें नहीं की जाती, लेकिन शुरु से ही विकलांगों के लिये बनाई जाने वाली योजनाएं किसी ठोस नीति पर आधारित नहीं थी। जिसका नतीजा यह होता है कि योजनाएं व्यवहारिक रूप से, पूर्ण रूप से अमल में नही आ पातीं।
सरकार के इस रवैये का विकलांगों के लिए काम करने वाली संस्थाओं द्वारा काफी विरोध किये जाने के बाद 1995 में डिसएबिलिटी एक्ट पारित हुआ, जिसमे विकलांगों को सभी तरह की श्रेणियों में तीन प्रतिशत आरक्षण दिया गया। लेकिन अभी तक संभाव्यता वाली नौकरियों की पहचान नहीं की जा सकी है। नतीजतन वह कानून व्यावहारिक रुप से लागू नहीं हो पाया है। नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ इम्लावमेंट फॉर डिसेबल पीपुल्स द्वारा देश की सौ बड़ी कंपनियों में विकलांगों की रोजगार की स्थिति के सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ कि सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में विकलांगता का औसत प्रतिशत क्रमश: 10.54 ,0.28, 0.05 प्रतिशत था।, भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में विकलांगता का प्रतिशत नहीं के बराबर है। दरअसल भारत में विकलांग अदृश्य अल्पसंख्यक हैं। जिनकी समस्याओं की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। श्रवण बाधित विकलांगता मे श्रवण शक्ति पूर्णतः समाप्त हो जाती है या अपेछाकृत बेहतर कान में श्रवण शक्ति 90 डेसीबल तक खराब हो जाती है।
अस्थिबाधित विकलांगता में ऐसा शारीरिक दोष उत्पन्न हों जाता है। जिससे मांसपेशियों तथा शरीर के जोड़ सामान्य कार्य भी नहीं कर पाते। इस सामान्य कार्यों में चलना, भागना, उठना और धक्का देने की शारीरिक क्रियाएं सम्मिलित हैं। मानसिक विकलांगता वह अवस्था है जिसमें आयु के अनुपात में बुद्धिलब्धि कम होती है। ऐसे लोगों में मस्तिष्क का विकास शारीरिक विकास की तुलना में बहुत धीमा अथवा नहीं होता हैं। मानसिक पक्षाघात की स्थिति में स्नायुतंत्र, शारीरिक स्थिति तथा अंग संचालन प्रभावित होते हैं। इसमें मस्तिष्क की विकृति के कारण व्यक्ति अस्थिबाधित,श्रवणबाधित या मानसिक रुप से विकलांग हो सकता है। कुष्ठ रोग में चमडी मोटी और लाल हो जाती है, प्रभावित अंग सुन्न हो जाते हैं, चमड़ी पर दाग बन जाते हैं और प्रभावित गलने लगते हैं। यह रोग जन्मजात भी नहीं है और पैतृक भी नहीं होता, यह रोग माइक्रो बेक्टिरियम लेप्रा नामक जीवाणु से फैलता है।
विकलांगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने तथा पुर्नवासित करने हेतु बिलासपुर छत्तीसगढ़ में स्थित शासकीय जिला पुर्नवास केन्द्र में विकलांगों का परिक्षण कर उन्हें शल्य चिकित्सा सुविधा दी जाती है। कृत्रिम अंग और उपकरण दिये जाते हैं।. इसके अलावा भौतिक चिकित्सा सलाह तथा उपकरण प्रदान कर रोजगार प्राप्त करने हेतु आत्मनिर्भर बनाया जाता है। बिलासपुर में ही ब्रेलप्रेस है जो दृष्टिबाधित विकलांगों को ब्रेललिपि में कक्षा बारहवीं से लेकर कालेज स्तर तक पुस्तकें उपलब्ध कराती हैं। अब तो यहां कॉलेज स्तर की पढ़ाई भी शुरू हो गई है। यहां ड्रायडलबर्ग प्रिंटिंग मशीन तथा भरवर्ग इम्बासिंग मशीन कार्यरत हैं।
विकलांग शिविरों का आयोजन विकलांगों की पहचान करने उपचार करने और कृत्रिम अंगों का प्रत्यारोपण करने तथा कृत्रिम अंग प्रदाय करने हेतु बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह सुविधा ऐसें विकलांगों को प्राप्त है जिनकी स्वयं या अभिभावक की आय प्रतिमाह पच्चीस सौ रुपये तक हो । इसके अलावा विभाग भी आवश्यकतानुसार धन राशि उपलब्ध कराता है।
जिला स्तर पर आयोजित शिविरों में कलेक्टर के नेतृत्व में स्वैच्छिक संस्थाओं चिकित्सा महाविद्यालयों एवं जनशक्ति नियोजन.. परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं समाज कल्याण विभाग के कार्यकर्ताओं की समन्वित भूमिका निर्धारित की गई है। सरकार द्वारा प्रति वर्ष दो से तीन शिविरों प्रत्येक जिलों में आयोजित करती है। जिसमें विकलांग विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोतसाहित किया जाता है। इस हेतु प्राथमिक स्तर पर माध्यमिक स्तर पर तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर तक एक निश्चित राशि प्रतिमाह छात्रवृत्ति दी जाती है। केन्द्रीय तथा क्षेत्रीय योजना के तहत कथा नवीं तथा उससे ऊपर की कक्षाओं में पढ़ रहे विद्यार्थियों को केन्द्रीय छात्रवृत्ति दी जाती है। शर्त यह है कि वे चालीस प्रतिशत अंको के साथ उत्तीर्ण हुए हों, एवं उनके परिवार की मासिक आय आठ हजार रुपये से ज्यादा न हो। राज्य शासन की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत प्रदेश में निवास कर रहे जीविकोपार्जन में असमर्थ बिना आयु बंधन के निराश्रित विकलांगों को प्रति माह दो हजार रुपये पेंशन के रूप में और प्रतिमाह उचित मूल्य की दुकानों से पांच किलो खाद्यान्न मुफ्त प्रतिमाह दिया जाता है।
निराश्रित एवं विधवा, परित्यक्ता विकलांग निराश्रित महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा पेंशन पंद्रह सौ रुपये( जो कि अब बढ़कर तीन हजार रुपए हो चुकी है) प्रतिमाह स्वीकृत कर वितरित की जा रही है। साथ ही प्रतिमाह पांच किलो ग्राम खाद्यान्न उचित मूल्य की दुकानों से मुफ्त दिया जाता है। विकलांग कल्याण केवल सरकार के बस की बात नही है। यही कारण है कि स्वैच्छिक संस्थाओं को भी यह दायित्व सौंपा गया है। इन्हें सहायक अनुदान भी नियमानुसार. उपलब्ध कराया जाता है। बिलासपुर में ही सौ से अधिक स्वैच्छिक संस्थान इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।