इस साल 2025 में दो सूर्य ग्रहण लगेंगे, पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च को लगेगा जो आंशिक सूर्य ग्रहण होगा। यह सूर्यग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। वहीं दूसरा सूर्य ग्रहण 21 सितंबर को लगेगा, यह भी आंशिक सूर्य ग्रहण होगा। यह ग्रहण भी भारत में नहीं दिखाई देगा। जब चंद्रमा सूर्य के सिर्फ कुछ हिस्से को ही ढंकता है तब यह स्थिति खण्ड-ग्रहण कहलाती है, जबकि संपूर्ण हिस्से को ढंकने की स्थिति खग्रास ग्रहण कहलाती है।

सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य आंशिक अथवा पूर्ण रूप से चंद्रमा द्वारा आवृत्त हो जाए। सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है। वहीं, खग्रास सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है। चंद्रमा द्वारा सूर्य की रोशनी को कितना अवरुद्ध किया जाता है, इसके आधार पर सूर्य ग्रहण की स्थिति खग्रास, खंडग्रास, या कंकणाकृती होती है। खग्रास सूर्य ग्रहण के दौरान, सूर्य चंद्रमा के चारों ओर चमकने वाली किरणों को तेजोवलय कहते हैं। खग्रास सूर्य ग्रहण का अधिकतम समय 7 मिनट 20 सेकंड होता है।
सूर्य ग्रहण के दौरान, चंद्रमा कभी-कभी सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है क्योंकि इसका आकार पृथ्वी से देखने पर सूर्य के आकार के लगभग समान होता है। सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या को ही पड़ता है। सावधान! आप सूर्यग्रहण को नंगी आंखों से देखने की हिम्मत न करें! नंगी आंखों से इसे देखने से आदमी अंधा भी हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्याप्त सुरक्षा किये बिना ग्रहण देखने से आंखें खराब होने का डर बना रहता है। केवल कुछ सेकंड देखने से ही वह आखों के पर्दे जला सकता है, और व्यक्ति स्थाई रुप से अंधा हो सकता है।
चंद्रमा में निन्यानवे प्रतिशन ढक जाने के बाद भी सूर्य का बचा हिस्सा बहुत चमकदार होता है। इस स्थिति में भी सूर्य को नंगी आंखी से नहीं देखना चाहिये! इससे रैटिना पर बनने वाले प्रतिबिम्ब में संकेन्द्रित सूर्य उर्जा पृथ्वी की सतह पर प्राप्त सौर उर्जा से लगभग पच्चहत्तर गुना अधिक होती है। जो कुछ सेकेन्डों में आंख के रैटिना को जला सकती है! अतः सूर्यग्रहण देखने के लिये विशेष चश्मे, फिल्टर, एक्सरे फिल्म आदि का उपयोग नितांत जरुरी होगा!
स्वाभाविक है कि आपके मन में अब सवाल उठता होगा कि क्या सूर्यग्रहण खतरनाक होते है। वैज्ञानिको का इस बारे मैं कहना है कि सूर्यग्रहण खतरनाक तब नहीं होते हैं, जब उसे उचित साधनों एवं सावधानियों के साथ देखा जाए! ग्रहण के दौरान खग्रास के ठीक पहले और बाद में बिना किसी कठिनाई के सूर्य की तरफ सीधे देख पाना हालाकि संभव है, परंतु इसमें जोखिम होता है। जो बात की बात में आपकी आंखे खराब कर सकता है! इसलिये इसे ‘देखने के लिये सूर्य की तीव्रता एवं हानिकारक किरणों से बचाव पर सक्षम फिल्टर का उपयोग करना चाहिये! ये फिल्टर ऐसे हों जो सूर्य किरणों की तीव्रता को काफी कम करके उसे सुरक्षित बना सकें! सूर्य की तीव्रता में दस हजार से एक लाख गुना कटौती कर सकने में सक्षम हो! ऐसे फिल्टर हों तो पूर्ण रुप से निरापद हो जायेंगे!
सूर्य ग्रहण को आप सीधे आंखा से देख सकते है। इसे देखने में कोई हानि नहीं है! अब आप निश्चय ही चौक गये होंगे कि ये क्या लिखे जा रहा हूँ। कभी सूर्यग्रहण आंखों के लिये खतरा है तो कभी कोई हानि नही लिख रहा हूं…? तो लो आपको अब पूरा स्पष्ट कर दूं कि आप जब सूर्यग्रहण देंखे तब इसके ठीक पहले और ठीक बाद की अवस्था को देखते समय ही खासा ध्यान देने की आवश्यकता है! अर्थात जब सूर्य सौ प्रतिशत ग्रहण की अवस्था में आ जायेगा और तब आप सूर्यग्रहण को सीधे नंगी धांखों से देखेंगे तो कोई हानि नहीं होती! पर जब सूर्य का एक या आधा प्रतिशत भाग भी अगर ग्रहण से बचा रह गया है, और आप उसे देखेंगे तो वह बहुत खतरनाक साबित हो सकता है! क्योंकि वह सूर्य का बचा हुआ भाग ही आपकी आखों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। अब शायद आपको सभी कुछ एकदम स्पष्ट रुप में समझ आ चुका होगा!
इसलिये अतिरिक्त सुरक्षा के लिये सूर्यग्रहण को लगातार 15 या 20 सेकेण्ड से अधिक समय तक नहीं देखेंगे तो ही अच्छा है! अगर आप सूर्यग्रहण देखने के लिये बहुत ज्यादा उत्कंठित और रोमांचित हैं तो आपके लिये सबसे सुरक्षित और निरापद उपाय है, पिन होल कैमरा! पिन होल कैमरे का इस्तेमाल कर आप सूर्यग्रहण की प्रतिच्छाया को एक परदे पर प्रछेपित कर सकते हैं। और उसे आप अप्रत्यक्ष रुप से ठीक आपके सामने सिनेमा हाल में पिक्चर की भांति देख सकते हैं।’
अब आईये हम सूर्यग्रहण के इतिहास की ओर नजर डाल लें! वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम कह सकते हैं कि पूरे सौर मंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ग्रह है जहां पूर्ण ग्रुप में खग्रास सूर्यग्रहण दिखाई देता है। और यही चकित और अभिभूत कर देने वाले करिश्माई घटना का जिम्मेदार होता है।
पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमाँ हालाँकि हमारे सौर मण्डल के अन्य ग्रहों के आस-पास चौंसठ अन्य चंद्रमा भी चक्कर लगा रहे हैं। परंतू वे खग्रास सूर्यग्रहण की स्थिति निर्मित करने में असक्षम हैं। वैज्ञानिक गैलिलीयो गोजांल्वेज ने इस बारे में बताया कि “दूरियों और आभासी आकारों का संयोग नहीं होता तो हम भी सूर्य ग्रहण नहीं देख पाते!” बल्कि उनका तो ये मानना है कि ये उक्त संयोग अगर नहीं होते तो हम होते ही नहीं! उनका मत है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की एक वजह यह है कि हमारे और सूर्य के बीच एक उचित दूरी का होना आवश्यक है! और इसी दूरी से सूर्य की आभासी छवि तय होती है! यदि पृथ्वी सूर्य के बहुत पास होती तो गरमी जरुरत से बहुत ज्यादा होती और प्रचंड ताप से यहाँ जीवन की उत्पत्ति ही न हो पाती! वहीं जब हमारी पृथ्वी सूर्य से बहुत ज्यादा दूर होती तो हम क्या पृथ्वी ही कुल्फी की तरह जम जाती!
वैज्ञानिकों ने सूर्यग्रहण की गणनाओं से पता लगाया है कि खग्रास सूर्य ग्रहण पिछले पंद्रह करोड़ वर्षों से होते चले आ रहे हैं। और आगे भविष्य में भी ऐसा खग्रास सूर्यग्रहण पंद्रह करोड़ वर्षों तक नजर आयेंगे! अभी वर्तमान में कुछ वर्षों के अंतराल के बाद एक बार फिर हमारे सामने खग्रास, सूर्यग्रहण का नजारा उपस्थित होकर हमें खगोल की विलक्षण घटनाओं से परीचित करा रहा है! सन् 1995 को 24 अक्टूबर को भी खग्रास सूर्यग्रहण पड़ा था! इसके बाद सूर्यग्रहण सन् दो हजार नौ को 22 जुलाई अर्थात दस वर्षों पश्चात पड़ा था ! सूर्यग्रहण समाप्त हो जायेगा! जैसी विस्मयकारी करिश्माई घटना का घटना बहुत दुर्लभ होता है अतः आप भी. अपने पूरे साजो सामान के साथ सुरक्षित रुप से तैयार हो जाइये खग्रास सूर्यग्रहण को देखने के लिये!
