स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि 5 में से 1 बच्चे में निदान योग्य भावनात्मक, व्यवहारिक या मानसिक स्वास्थ्य विकार है और 10 में से 1 युवा में मानसिक स्वास्थ्य चुनौती पायी जाती हैं। 10-15 वर्ष के 10 में से 1 से अधिक बच्चों का कहना है कि उनके पास बात करने के लिए कोई नहीं है या अगर वे चिंतित या उदास महसूस करते हैं तो स्कूल में किसी से बात नहीं कर पाते हैं। शोध से पता चलता है कि 50% मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 14 वर्ष की आयु तक तथा 75% मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 24 वर्ष की आयु तक शुरू हो जाती हैं। भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निम्हांस) के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत में 23% स्कूली बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त हैं जिनमें से अधिकांश बच्चों को मानसिक विकारों के लिए उचित इलाज नहीं मिल पाता।

स्कूली शिक्षा का उम्र 6 से 14 वर्ष होता है, जो विकास के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस अवस्था में बच्चों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, साम्वेगिक, संज्ञानात्मक व शैक्षिक विकास तेजी से होता है। इस उम्र के विकास में शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, यदि बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होता तो उसका अन्य क्षेत्रों का विकास भी सही गति, समय और मात्रा में नहीं होता है क्योंकि विकास के सभी आयाम (शारीरिक, मानसिक, साम्वेगिक, सामाजिक, शैक्षिक, व्यवसायिक, पारिवारिक, आर्थिक, भाषा, राजनैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं अन्य) एक दूसरे से जुड़े होते हैं, एक आयाम का विकास अच्छा होगा तो यह अन्य आयामों के विकास को बढ़ावा देता है और यदि एक आयाम का विकास किसी भी कारण से बाधित होता है तो यह अन्य आयामों के विकास में भी रुकावट डालता है।

इसे एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है जैसे- एक बच्चे का शारीरिक विकास ठीक से नहीं होने पर वह शारीरिक रूप से कमजोर होगा और वह हमउम्र बच्चों के साथ खेलने नहीं जाता है या कम जाता है या जाने पर हार जाता है या और बच्चों से पीछे रह जाता है तो वह हमउम्र बच्चों के बीच जाना बंद कर देता है, इससे उसका भाषा विकास ठीक से नहीं हो पाता क्योंकि भाषा एक अर्जित गुण है जिसमें हमउम्र लोगों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वह हमेशा पीछे रह जाने/हार जाने के कारण दुखी होगा, उसका आत्मविश्वास निम्न स्तर का होगा अर्थात उसका साम्वेगिक विकास अच्छा नहीं होगा। ऐसे बच्चे स्कूल में अनुपस्थित अधिक होते हैं और जब स्कूल जाते भी हैं तो नकारात्मक संवेग के कारण वे ठीक से सीखने में सक्षम नहीं होते।
शिक्षा का संचालन भाषा में होता है और इन बच्चों का भाषा विकास निम्न स्तर का होने के कारण तथ्यों को इन्हें समझने में कठिनाई होती है, इसलिए उनका शैक्षिक विकास भी ठीक से नहीं हो पाता है, शैक्षिक विकास ठीक से ना होने से व्यक्ति को अच्छी नौकरी भी नहीं मिलती या अच्छा व्यवसाय भी स्थापित करने में कठिनाई होती है। अच्छी शिक्षा व व्यवसाय न होने पर उसके उसे अच्छे जीवनसाथी मिलने की संभावना कम होती है जिससे उसका पारिवारिक विकास भी ठीक से नहीं होता। अच्छी नौकरी या व्यवसाय न होने से व्यक्ति का आर्थिक विकास अच्छा नहीं होता तथा व्यक्ति सामाजिक गतिविधियों में भी सहभागिता ठीक से नहीं कर पाता जिससे उसका सामाजिक विकास भी प्रभावित होता है।

