दीपावली केवल दीपों का ही पर्व नहीं है बल्कि यह आत्मा के भीतर बसे अंधकार को मिटाने की साधना का अनुष्ठान है। यह भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जो जन-जन के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली का उजास फैलाती है। पांच दिवसीय इस उत्सव की श्रृंखला धनतेरस से आरंभ होकर भाई दूज तक चलती है, पर इसका अर्थ केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है। दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, इसका धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व भी है। दीपावली का संदेश है कि सच्चा उजाला बाह्य नहीं, बल्कि भीतर में होना चाहिए। हमारी आंतरिक ‘उज्ज्वलता’ ही सच्ची ‘धन्यता’ है, वही हमारे कर्म, करुणा और विवेक का उजाला है। यह पंच दिवसीय पर्वों की श्रृंखला भीतर बसे अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष और लोभ जैसे नरकासुरों को समाप्त करने का दुर्लभ अवसर है। दीपावली का मूल भाव है अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, नकार से स्वीकार की ओर बढ़ना। जब लाखों दीप जलते हैं, तो वे केवल घरों को नहीं, हृदयों को भी प्रकाशित करते हैं। प्रत्येक दीप हमें यह संदेश देता है कि परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, जीवन में धर्म के दीप जलते रहना है, बुझना नहीं।

