लेकठो बनी विद्रोह की ज्वाला

पतरातू की घाटी में बच्चों की अनोखी क्रांति! मिठाई वाले काका के लेकठो इनाम से शुरू…

कान्हा का जन्म उत्सव

था उस दिन कान्हा का जन्म उत्सवपूरा जग नाच रहा थाबादल गरज रहे थेअमृत बरसा रहे…

‘गुरुओं का मान-सम्मान कहीं खो गया है ।’

गुरुओं का मान-सम्मान,कहीं खो गया है ।गुरु तो बचपन से ही मिल जाती,माँ के रूप में,…

पहली कविता: सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

मैं जब सन् 1983 में कक्षा ग्यारहवीं स्कूल लाल बहादुर शास्त्री हायर सेकेंडरी बिलासपुर में पढ़…

योग, भाव है या भक्ति ? 

योग और भक्ति के अद्भुत संगम से पाएँ निरोगी काया, शुद्ध मन और परमात्मा की झलक—यही…

अधेड़ उम्र की ख्वाहिशें

अधेड़ उम्र की ख्वाहिशों से भरी एक संवेदनशील कविता, जो रिश्तों, उपेक्षा और आत्मसम्मान की पुकार…

मौन मांग- भावना ‘मिलन’

शादी की चहल-पहल के बीच एक बहन की विदाई और भाई के अनजाने बिछोह की भावुक…

पढ़ना चाहती हूं

पढ़ना चाहती हूं जीवन गढ़ना चाहती हूं। अम्मा! पढ़ना चाहती हूं।। पग-बंधन बेड़ी तोड़कर, हरपल बढ़ना…

फागुन के रंग, पिया संग: भावना ‘मिलन’

फागुन के रंग संग पिया का प्यार! होली के रंगों में भीगी प्रीत भरी पलों की…

महंगाई की पिचकारी से फीकी होली के रंग!

महंगाई की मार में होली के रंग भी फीके! इस कविता में पढ़ें कैसे बढ़ती कीमतों…

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