परिवार ही घर को मन्दिर बनाता है

ललित गर्ग
ललित गर्ग

देश एवं दुनिया को परिवार के महत्व को बताने के लिए विश्व परिवार दिवस हर साल 15 मई को मनाया जाता है। प्राणी जगत एवं सामाजिक संगठन में परिवार सबसे छोटी इकाई है। परिवार के अभाव में मानव समाज के संचालन की कल्पना भी दुष्कर है। प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य होकर ही अपनी जीवन यात्रा को सुखद, समृद्ध, विकासोन्मुख बना पाता है। उससे अलग होकर उसके अस्तित्व को सोचा नहीं जा सकता है। हमारी संस्कृति और सभ्यता अनेक परिवर्तनों से गुजर कर अपने को परिष्कृत करती रही है, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। उसके स्वरूप में परिवर्तन आया और उसके मूल्यों में परिवर्तन हुआ लेकिन उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है। हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में हम पल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि एवं जीवन की परिपूर्णता-सार्थकता अनुभव करते हैं। परिवार का महत्व न केवल भारत में बल्कि दुनिया में सर्वत्र है, यही कारण है कि अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस परिवार संस्था को मजबूती देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य युवाओं को परिवार के प्रति जागरूक करना है ताकि युवा तथाकथित आधुनिक के प्रवाह में अपने परिवार से दूर न हों।
परिवार दो प्रकार के होते हैं- एक एकल परिवार और दूसरा संयुक्त परिवार। एकल परिवार में पापा- मम्मी और बच्चे रहते हैं। संयुक्त परिवार में पापा- मम्मी, बच्चे, दादा दादी, चाचा, चाची, बड़े पापा, बड़ी मम्मी, बुआ इत्यादि रहते हैं। इस दिवस मनाने की घोषणा सर्वप्रथम 15 मई 1994 को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने की थी। संयुक्त परिवार टूटने एवं बिखरने की त्रासदी को भोग रहे लोगों के लिये यह दिवस बहुत अहमियत रखता है। बढ़ती जवाबदारी और जरूरतों को पूरा कर पाने का भय ही वह मुख्य कारण है जो अब संयुक्त परिवारों के टूटने का कारण बना है। जबकि वास्तव में मानव सभ्यता की अनूठी पहचान है संयुक्त परिवार और वह जहाँ है वहीं स्वर्ग है। रिश्तों और प्यार की अहमियत को छिन्न-भिन्न करने वाले पारिवारिक सदस्यों की हरकतों एवं तथाकथित आधुनिकतावादी सोच से बुढ़ापा कांप उठता है। संयुक्त परिवारांे का विघटन और एकल परिवार के उद्भव ने जहंा बुजुर्गांे को दर्द दिया है वहीं बच्चों की दुनिया को भी बहुत सारे आयोजनों से बेदखल कर दिया है। दुख सहने और कष्ट झेलने की शक्ति जो संयुक्त परिवारों में देखी जाती है वह एकल रूप से रहने वालो में दूर-दूर तक नही होती है। आज के अत्याधुनिक युग में बढ़ती महंगाई और बढ़ती जरूरतों को देखते हुए संयुक्त परिवार समय की मांग कहे जा सकते हैं।
हम पुराने युगों की बात करें या धार्मिक मान्यताओं के आधार पर भी बात करें तो आज की ही तरह पहले भी परिवारों का विघटन हुआ करता था। लेकिन आधुनिक समाज में परिवार का विघटन आम बात हो चुकी है और उसने जीवन को जटिल से जटिलतर कर दिया है। ऐसे में परिवार न टूटे इस मिशन एवं विजन के साथ अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। परिवार के बीच में रहने से आप तनावमुक्त व प्रसन्नचित्त रहते हैं, साथ ही आप अकेलेपन या डिप्रेशन के शिकार भी नहीं होते, यही नहीं परिवार के साथ रहने से आप कई सामाजिक बुराइयों से अछूते भी रहते हैं। समाज की परिकल्पना परिवार के बगैर अधूरी है और परिवार बनाने के लिए लोगों का मिलजुल कर रहना व जुड़ना बहुत जरुरी है। हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में हम पल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि अनुभव करते हैं। भारत गांवों का देश है, परिवारों का देश है, शायद यही कारण है कि न चाहते हुए भी आज हम विश्व के सबसे बड़े जनसंख्या वाले राष्ट्र के रूप में उभर चुके हैं और शायद यही कारण है कि आज तक जनसंख्या दबाव से उपजी चुनौतियों के बावजूद, एक ‘परिवार’ के रूप में, जनसंख्या नीति बनाये जाने की जरूरत महसूस नहीं की।
ईंट, पत्थर, चूने से बनी दीवारों से घिरा जमीं का एक हिस्सा घर-परिवार कहलाता है जिसके साथ ‘मैं’ और ‘मेरापन’ जुड़ा है। संस्कारों से प्रतिबद्ध संबंधों की संगठनात्मक इकाई उस घर-परिवार का एक-एक सदस्य है। हर सदस्य का सुख-दुख एक-दूसरे के मन को छूता है। प्रियता-अप्रियता के भावों से मन प्रभावित होता है। घर-परिवार जहां हर सुबह रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा की समुचित व्यवस्था की जुगाड़ में धूप चढ़ती है और आधी-अधूरी चिंताओं का बोझ ढोती हुई हर शाम घर-परिवार आकर ठहरती है। कभी लाभ, कभी हानि, कभी सुख, कभी दुख, कभी संयोग, कभी वियोग, इन द्वंद्वात्मक परिस्थितियों के बीच जिंदगी का कालचक्र गति करता है। भाग्य और पुरुषार्थ का संघर्ष चलता है। आदमी की हर कोशिश ‘घर-परिवार’ बनाने की रहती है। सही अर्थों में घर-परिवार वह जगह है जहां स्नेह, सौहार्द, सहयोग, संगठन सुख-दुख की साझेदारी, सबमें सबक होने की स्वीकृति जैसे जीवन-मूल्यों को जीया जाता है। जहां सबको सहने और समझने का पूरा अवकाश है। अनुशासन के साथ रचनात्मक स्वतंत्रता है। निष्ठा के साथ निर्णय का अधिकार है। जहां बचपन सत्संस्कारों में पलता है। युवकत्व सापेक्ष जीवनशैली से जीता है। वृद्धत्व जीए गए अनुभवों को सबके बीच बांटता हुआ सहिष्णु और संतुलित रहता है। ऐसा घर-परिवार निश्चित रूप से पूजा का मंदिर बनता है।
संयुक्त परिवारों की परम्परा पर आज धुंधलका छा रहा है, परिवार टूटता है तो दीवारें भी ढहती हैं, आदमी भी टूटता है और समझना चाहिए कि उसका साहस, शक्ति, संकल्प, श्रद्धा, धैर्य, विश्वास बहुत कुछ टूटता/बिखरता है। क्रांति और विकास की सोच ठंडी पड़ जाती है और जीवन के इसी पड़ाव पर फिर परिवार का महत्व सामने आता है। परिवार ही वह जगह है भाग्य की रेखाएं बदलने का पुरुषार्थी प्रयत्न होता है। जहां समस्याओं की भीड़ नहीं, वैचारिक वैमनस्य का कोलाहल नहीं, संस्कारों के विघटन का प्रदूषण नहीं, तनावों की त्रासदी की घुटन नहीं। कोई इसी परिवाररूपी घेरे के अंधेरे में रोशनी ढूंढ लेता है। बाधाओं के बीच विवेक जमा लेता है। भीड़ में अकेले रह जाता है। दुख में सुख का संवेदन कर लेता है। घर-परिवार को सिर्फ अपनी नियति मानकर नहीं बैठा जा सकता। क्योंकि इसी घर में मंदिर बनता है और कहीं घर ही मंदिर बन जाता है।
कहते हैं कि आपका काम, रबड़ की गेंद है, जिस पर जितना जोर देते हैं, वह उतना ऊंचा उठता है। पर आपका परिवार कांच की गेंदें हैं, जो हाथ से छूटती हैं तो टूट ही जाती हैं। कई बार हम सब भूल जाते हैं कि जीवन में सबसे जरूरी क्या है। हम इधर-उधर की बातों में इतना डूब जाते हैं कि जो सच में जरूरी है, उसे छोड़ देते हैं। हम परिवार की खुशियों के नाम पर सामान तो खरीदने में लगे रहते हैं, पर उन चीजों पर ध्यान नहीं देते जो परिवार में सबको संतुष्टि का एहसास कराती हैं, सबको जोड़ती है। “परिवार” शब्द हम भारतीयों के लिए अत्यंत ही आत्मीय होता है। अपने घर-परिवार में अपने आपका होना ही जीवन का सत्य है। यह प्रतीक्षा का विराम है। यही प्रस्थान का शुभ मुहूर्त है। उम्मीद है जल्द ही समाज में संयुक्त परिवार की अहमियत दुबारा बढ़ने लगेगी और लोगों में जागरूकता फैलेगी कि वह एक साथ एक परिवार में रहें जिसके कई फायदे हैं। इंसानी रिश्तों एवं पारिवारिक परम्परा के नाम पर उठा जिन्दगी का यही कदम एवं संकल्प कल की अगवानी में परिवार के नाम एक नायाब तोहफा होगा।

आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »