अचानक ही वक्त की स्मृतियों से निकलकर,
:-पूनम शर्मा स्नेहिल
तुम्हारे वो खत तुम्हें मुझ तक पहुंचा गए।
मानों चाहत की खुश्बू से लिपटेकर,
आज फिर एक बार मेरे सामने आ गए।
अल्हड़ सी उम्र के वो अनजाने एहसास,
दूर होकर भी मानों हम लगते थे पास।
कभी कहा नहीं था एक दूजे से ये एहसास,
पर जो चांँद निकलता था ना आसमान पर वो था बड़ा ही खास।
मानों उसे निहारते निहारते हम एक दूसरे को निहारते थे,
अपनी सारी चाहत उसी चांद से कह डालते थे।
और वो चांद संदेश पहुंचाता था हम तक,
जाने कैसे होता था उन बातों का अहसास।
पल पल की खबर पहुंचाती थी ये हवाएं हम तक,
हवाओं संग खुश्बू बनकर आ जाता था तू मेरे पास।
नजरों का नजर भर के देखना,जाने क्या क्या समझाता था,
बेखबर से हो रहे थे हमसे ही हमारे सभी जज्बात।
कितनी खूबसूरत थी ना सच में वो मुलाकात,
जाने कब नजर ने नजर से भाप लिए थे सभी हालात।
अधर मौन और धड़कनों की तेज थी रफ्तार,
दे दिया था एक दूजे ने एक दूजे को सभी अधिकार।
ना मिलन की आरजू और ना थी कोई प्यास,
पर फिर भी एक दूजे के लिए थे हम बहुत खास।
खुशी में मुस्कुराहट और गम में आंसू निकल ही आते थे।
कुछ ऐसे रहते थे हम एक दूजे के साथ।।
तुम्हारे खत पढ़कर सुकून मिलता था दिल को,
तुम्हें भी तो रहता था हर घड़ी उन खातों का इंतजार।।
तुम्हारा खत पढ़कर
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