शिक्षा और समाज को दिशा देता है प्रमोद दीक्षित का रचना कर्म

साहित्य वही समृद्ध होता है जो समाज की समस्याओं और विसंगतियों को आवाज दे सके और एक साहित्यकार तभी सफल माना जाएगा जब उसकी रचनाओं में आमजन का स्वर समाहित हो। प्रमोद दीक्षित मलय एक ऐसे ही साहित्यकार हैं जिन्होंने समाज के विभिन्न रंगों को साहित्य की अलग-अलग विधाओं में न केवल स्वयं बिखेरा है बल्कि शिक्षा जगत से जुड़े समाज की समझ रखने वाले तमाम शिक्षकों को लेखन की विभिन्न विधाओं में लिखने के लिए प्रेरित कर साहित्य को समृद्ध करने वाले सैकड़ों सृजन शिल्पी खड़े किये हैं।

पेशे से शिक्षक होने के कारण आपके सम-सामयिक आलेखों में शिक्षा जगत की तमाम चुनौतियों को बड़ी बारीकी से उकेरा गया है और उनके लिए एक बेहतर समाधान भी प्रस्तुत किया गया है। आप स्कूलों की सर्कस वाली और अध्यापकों की रिंग मास्टर वाली छवि से उबारकर विद्यालयों को आनंदघर बनाने की वकालत करते हैं। आपने अपने लेख के माध्यम से शिक्षा में नवीन शोधों के साथ-साथ पुरातन परंपरा को अपनाने पर भी विशेष बल दिया है। तकनीकी के जमाने में पुस्तकों से दूर होते जा रहे समाज को पुस्तकों से जोड़ने पर बल देते हुए पुस्तक पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने का कार्य किया है। आपका मानना है-

“पढ़ना केवल छपी सामग्री का वाचन नहीं है बल्कि शब्दों के अर्थ बोध को स्वयं में प्रकट करना है, समझ को बेहतर कर मानवता के उत्तुंग शिखर पर चढ़ना है।”

गिजुभाई बधेका के शैक्षिक दर्शन को आगे बढ़ाते हुए शिक्षा में रंगमंच की भूमिका व शैक्षिक भ्रमण की आवश्यकता और उपयोगिता को बड़ी बारीकी से आपने अपने आलेखों में समाहित किया है-

“नाट्य मंचन, संवाद संप्रेषण, भाव अभिव्यंजना और रसास्वादन साथ-साथ चलते हैं। यहां सिनेमा की भांति रिटेक के लिए कोई जगह और अवसर नहीं है।”

आप बालक की सहज अभिव्यक्ति के लिए मातृभाषा को सशक्त माध्यम मानते हैं। आपका मानना है-

“मातृभाषा व्यक्ति के जीवन में माधुर्य एवं लालित्य का अमिय रस घोलती है।”

शिक्षा और जीवन में गीतों के महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं-

“जीवन में गीतों को सहयात्री बना ले, सांसों का साथी बना लें तो हर राह आसान हो जाएगी, जीवन उपवन सा सौरभमय और सुवासित हो जाएगा।”

समाज को आईना दिखाते हुए कुष्ठ रोगियों और आधी आबादी की समस्याओं और आकांक्षाओं को एक नई दृष्टि प्रदान किया है। आपके आलेखों में प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ की पीड़ा झलकती है। आपने जल संकट, सूखे पनघट, प्यासे पोखर, विलुप्त होती गौरैया, कटते पेड़ों आदिक पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए वर्टिकल फॉरेस्ट्री जैसे नवीनतम तकनीकों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है। निश्चित रूप से ये आलेख समाज को एक नई दिशा प्रदान करेंगे।

आपने संस्मरण विधा में पाठा के गांधी गोपाल भाई और वहां के शोषित कोलों के साथ उनके कार्यों को बड़ी बारीकी से रेखांकित किया है। आप के ऐतिहासिक लेखों ने लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, रानी दुर्गावती, अजीमुल्ला खां, मदन मोहन मालवीय जी, रानी दुर्गावती, मैडम भीकाजी कामा, अशफाक उल्ला खां समेत अर्ध शताधिक क्रांतिकारियों के कार्यों, कुर्बानियों और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनकी प्रासंगिकता को विशद् दृष्टि प्रदान किया है। भारतेंदु हरिश्चंद्र, विष्णु प्रभाकर सहित दर्जन भर साहित्यकारों के जीवन एवं कृतित्व को आपने अनोखे अंदाज में प्रस्तुत किया है।

दृष्टिबाधित लोगों के लिए ब्रेल लिपि के अविष्कारक लुई ब्रेल की जीवन गाथा हो या गणित जगत के चमकते सितारे श्रीनिवास रामानुजन की अद्भुत कहानी, सबको आपकी लेखनी ने समाज के समक्ष प्रस्तुत करने का कार्य किया है। आपकी लेखनी ने जब पुस्तकों की समीक्षा की है तो पुस्तक का सार तत्व ही समेट दिया है। आपके द्वारा समीक्षित कृतियां छूटा पीछे पहाड़ (देवेंद्र मेवाड़ी), आगे से फटा जूता, खूबसूरत मोड़ (रामनगीना मौर्य), पहला अध्यापक (रूसी लेखक चिंगिज ऐटमाटोव),

हैंडल पैंडल, स्टेजिंग एरिया (मितेश्वर आनंद), चुनी हुई कहानियां, स्मृति की खिड़की (जितेंद्र शर्मा), सफर हमारे (प्रबोध उनियाल), यात्री हो चला (भागवत सांवरिया ), अब पहुंची हो तुम (महेशचंद्र पुनेठा), बराली एक्सप्रेस (जगमोहन चोपता), उम्मीद के रंग (संपा. – प्रभात) आदिक पुस्तकों की समीक्षा पढ़ने के बाद पाठक पुस्तक पढ़ने के लिए लालायित हो जाता है। आपने मीत बनते ही रहेंगे (सीमा मिश्रा), पंखुड़ियां (प्रतिमा यादव) कविता पुस्तकों की भूमिका लिखकर कृतियों का महत्व बढ़ा दिया है।

आपके दोहों ने प्रकृति के विभिन्न घटकों फूल, रंग, धूप, गिरि, कानन, वसुधा, बंजर, होला, फागुन, राजनीति और अपराध आदिक के गूढ़ रहस्यों को विभिन्न कलों में बांधकर पाठकों के समक्ष परोसा है। आपके प्रकृति के मानवीकरण का एक नमूना देखिए-

सरिता तट तरुणी खड़ी, डगर बिछाए नैन।
जोति जगी पिय मिलन की, नहीं परत अब चैन।।

राजनीति के अपराधीकरण के दर्द को खोलता दोहा-

अपराधी को जब मिले, राजनीति का हस्त।
लोक पंगु हो जूझता, बेदम पीड़ित पस्त।।

आपने शिक्षक के रूप में बच्चों का मार्गदर्शन करने के साथ ही तमाम शिक्षकों का भी मार्गदर्शन किया है और उन्हें साहित्य सर्जना की ओर उन्मुख किया है। इसी प्रयास के क्रम में आपके द्वारा 18 नवम्बर, 2012 को शैक्षिक संवाद मंच की स्थापना की गई और इस मंच के माध्यम से उत्तर प्रदेश के साहित्यिक अभिरुचि के रचनाधर्मी शिक्षक एवं शिक्षिकाओं को खोज कर उनके अंदर की छिपी प्रतिभा को पहचाना गया है और साहित्य की विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षण प्रदान कर लेखन की ओर प्रवृत्त किया गया।

विभिन्न शिक्षकों द्वारा लिखे और आपके द्वारा संपादित संग्रहों में पहला दिन, हाशिए पर धूप, कोरोना काल में कविता, प्रकृति के आंगन में, स्मृतियों की धूप-छांव, राष्ट्र साधना के पथिक आदिक शिक्षकों की रचनाओं से सजे साझा संग्रह न केवल पाठकों के बीच सराहे गए हैं बल्कि हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अमूल्य योगदान दिए हैं। आपके मार्गदर्शन में सौ से अधिक शिक्षक आज भी यात्रा वृत्तांत, डायरी लेखन, अनुभव आधारित लेखन और कविता लेखन कर रहे हैं और साहित्य को उत्तरोत्तर समृद्धि की ओर ले जा रहे हैं।

“जीवन सतत गतिशील है क्योंकि वह समय के डोर से बंधा है और समय कभी डरता नहीं कालचक्र अनवरत गतिमान है।”

आपका साहित्य समाज को मलय जैसी शीतलता निरंतर प्रदान करे ऐसी मेरी कामना है। आपकी शब्द साधना यूं ही सुख की छांव प्रदान करती रहे जैसा कि आप चाहते हैं-

शब्दों की सुख छांव में, सदा मिले आराम।
साधक को देते रहें, सिद्ध मधुरता नाम।।

शब्द साधक सरस्वती पुत्र प्रमोद दीक्षित मलय की साहित्य साधना अनथक अविराम चलती रहे और साहित्य की विभिन्न विधाओं के कृतिरूप सुगंधित सुमन खिलते रहेंगे, ऐसा विश्वास है।

दुर्गेश्वर राय


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