गतिरोध एवं उपराष्ट्रपति की मिमिक्री करना दुर्भाग्यपूर्ण

लोकसभा एवं राज्यसभा में सत्तापक्ष या विपक्ष का अनुचित एवं अलोकतांत्रिक व्यवहार न केवल अशोभनीय, अनुचित एवं मर्यादाहीन है बल्कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की आदर्श परम्पराओं को धुंधलाने वाला है। शीतकालीन सत्र से लोकसभा के अब तक 95 एवं राज्यसभा के 46 कुल 141 सांसदों को सस्पेंड किए जाने के बाद विपक्षी सांसद संसद परिसर में धरना दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने नारेबाजी की और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नकल उतारकर मिमिक्री की, निश्चित ही इस तरह का अपमानजनक एवं अशालीन व्यवहार भारत के लोकतंत्र को कलंकित करने की चिन्ताजनक घटना है। उपराष्ट्रपति सर्वोच्च एवं सम्मानजनक पद है, इसकी गरिमा को आहत करना एवं उस पर आंच आने का अर्थ है राष्ट्र की अस्मिता एवं अस्तित्व को धुंधलाने की कुचेष्टा। तभी उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस घटना को शर्मनाक बताते हुए कहा कि यह हास्यास्पद और अस्वीकार्य है कि एक सांसद मेरी मजाक उड़ा रहा है और दूसरा सांसद उस घटना का वीडियो बना रहा है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मुझे अपनी परवाह नहीं है, मैं ये बर्दाश्त कर सकता हूं. लेकिन मैं कुर्सी का अपमान बर्दाश्त नहीं करूंगा। इस कुर्सी की गरिमा बरकरार रखने की जिम्मेदारी मेरी है। मेरी जाति, मेरी पृष्ठभूमि, इस कुर्सी का अपमान किया गया है। यहां बात सिर्फ लोकतंत्र के अपमान की भी नहीं है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की जिस तरह मिमिक्री कर उनका अपमान करने और हमारे संवैधानिक सर्वोच्च संस्थानों पर राजनीतिक हमले किये जाने का जो सिलसिला चला है वह एक तरह से भारत की छवि पर हमला है। इतने अधिक सांसदों का निलम्बन एवं उपराष्ट्रपति का अपमान लोकतांत्रिक इतिहास में इन्हें दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के रूप में देखा जाएगा।

यह विपक्षी दलों की बौखलाहट ही है कि अपनी सरकती राजनीतिक जमीन को बचाने की जुगत में वे जायज-नाजायज सभी तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं, यह भूलकर की उनकी भी कुछ मर्यादाएं एवं लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है। यही विपक्ष कभी राष्ट्रपति तो कभी उपराष्ट्रपति, तो कभी प्रधानमंत्री के लिये अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हुए लोकतांत्रिक मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ रहे हैं। प्रधानमंत्री के लिए तो तानाशाह, हिटलर, नीच, मौत का सौदागर या कई अन्य अपमानजनक शब्द उपयोग किये हैं। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का जिस तरह अपमान किया गया उसने सार्वजनिक जीवन में मर्यादाओं को तार-तार कर दिया है।  लोकतंत्र में असहमति एवं आलोचना एक स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है और इसे उसी रूप में लेने की जरूरत है, लेकिन हठधर्मिता, विध्वंसात्मक नीति एवं मिमिक्री करने जैसी घटनाओं से लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लोक राज्य, स्वराज्य, सुराज्य, रामराज्य का सुनहरा स्वप्न ऐसे अलोकतांत्रिक विपक्ष की नींव पर कैसे साकार होगा? यहां तो सभी दल अपना-अपना साम्राज्य खड़ा करने में लगे हैं। हालांकि विपक्षी दलों के तमाम अलोकतांत्रिक विरोध एवं उच्छृंखल रवैये ने निराशा का ही वातावरण बनाया है।

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध के पीछे मूलतः पिछले सप्ताह संसद की सुरक्षा में हुई चूक है। इसमें कहीं कोई दो राय नहीं कि यह गंभीर मसला है। सवाल सिर्फ यह है कि आखिर इस गंभीर मसले पर सदन के अंदर चर्चा की कोई राह दोनों पक्ष क्यों नहीं निकाल पा रहे? क्यों विपक्षी दल इस बात पर अड़े हैं कि कानून व्यवस्था से जु़ड़े इस गंभीर मसले पर केंद्रीय गृह मंत्री को बयान देना चाहिए, वहीं सरकार का कहना है कि संसद के अंदर की सुरक्षा स्पीकर की जिम्मेदारी होती है और इसलिए इस पर गृह मंत्री का बयान देना उचित नहीं होगा। लोकतंत्रीय पद्धति में किसी भी विचार, कार्य, निर्णय और जीवनशैली की आलोचना पर प्रतिबंध नहीं है। किन्तु आलोचक का यह कर्तव्य है कि वह पूर्व पक्ष को सही रूप में समझकर ही उसे अपनी आलोचना की छेनी से तराशे। किसी भी तथ्य को गलत रूप में प्रस्तुत कर उसकी आक्षेपात्मक आलोचना करना उचित नहीं है। जिन दलों, लोगों एवं विचारधाराओं का उद्देश्य ही निन्दा करने का हो, उनकी समझ सही कैसे हो? जिसका काम ही किसी अच्छे काम या मन्तव्य को जलील करने का हो, वह सत्य का आईना लेकर क्यों चलेगा?

विपक्षी दलों की हठधर्मिता से खड़े हुए गतिरोध के चलते संसद के शीत सत्र के बचे हुए दिनों में भी सुचारू ढंग से कामकाज होने के कोई आसार नहीं दिख रहे। ध्यान रहे, अगले आम चुनाव से पहले यह मौजूदा लोकसभा का आखिरी पूर्णकालीन सत्र है और इसमें कई अहम बिलों पर चर्चा होनी है। लेकिन पक्ष-विपक्ष का जो रवैया है उसे देखते हुए यही लगता है कि विपक्ष की गैरमौजूदगी में और बिना किसी चर्चा के ही इन बिलों को पास घोषित करना पड़ेगा। कितना दुखद प्रतीत होता है जब कई-कई दिन संसद में ढंग से काम नहीं हो पाता है। विवादों का ऐसा सिलसिला खड़ा कर दिया जाता है कि संसद में सारी शालीनता एवं मर्यादा को ताक पर रख दिया जाता है। विवाद तो संसद मंे भी होती हैं और सड़क पर भी। लेकिन संसद को सड़क तो नहीं बनने दिया जा सकता? वैसे, भारतीय संसदीय इतिहास में ऐसे अवसर बार-बार आते हैं, जब परस्पर संघर्ष के तत्व ज्यादा और समन्वय एवं सौहार्द की कोशिशें बहुत कम नजर आती है। स्पष्ट है कि यदि दोनों पक्ष अपने-अपने रवैये पर अडिग रहते हैं तो संसद का चलना मुश्किल ही होगा। संसद में हुड़दंग मचाने, अभद्रता प्रदर्शित करने, मिमिक्री करने एवं हिंसक घटनाओं को बल देने के परिदृश्य बार-बार उपस्थित होते रहना भारतीय लोकतंत्र की गरिमा से खिलवाड़ ही माना जायेगा। सफल लोकतंत्र के लिए सत्ता पक्ष के साथ ही मजबूत एवं शालीन विपक्ष की भी जरूरत होती है।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उपराष्ट्रपति को जिस तरह अपमानित किया गया, उससे वह बेहद व्यथित हैं। व्यथित तो समूचा राष्ट्र है। राष्ट्रपति ने तो कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधि अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन उनकी अभिव्यक्ति शालीन तथा मर्यादा के दायरे में होनी चाहिए। उन्होंने कहा है कि हमारी संसदीय परंपराएं हैं जिन पर हमें गर्व है और हम उन्हें बरकरार रखने की आशा करते हैं।’ भारत की संसदीय प्रणाली दुनिया में लोकप्रिय एवं आदर्श है, बावजूद इसके सत्ता की आकांक्षा एवं राजनीतिक मतभेदों के चलते लगातार संसदीय प्रणाली को धुंधलाने की घटनाएं होते रहना दुर्भाग्यपूर्ण है। अब संसद की कार्रवाई को बाधित करना एवं संसदीय गतिरोध आमबात हो गयी है। संसद एक ऐसा मंच है जहां विरोधी पक्ष के सांसद आलोचना एवं विरोध प्रकट करने के लिये स्वतंत्र होते हैं, विरोध प्रकट करने का असंसदीय एवं आक्रामक तरीका, सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच तकरार और अपने विरोध को विराट बनाने के लिये सार्थक बहस की बजाय शोर-शराबा,  नारेबाजी, मिमिक्री करने की स्थितियां कैसे लोकतांत्रिक कही जा सकती है? 

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »