जब जयहिंद संदेश तिरंगी बर्फी ने अंग्रेजी सत्ता की नींद उड़ा दी 

मिठाई मन मोहती हैं, मुंह में स्वाद घोलती हैं। चाहे बच्चे-बूढ़े हों या तरुण किशोर, प्रौढ़ स्त्री-पुरुष हों या नवजवान। नौकरीपेशा अधिकारी-कर्मचारी हों या कामगार मजदूर किसान। शहरी नागरिक हों या वनवासी एवं गिरिवासी। मिठाई सभी को पसंद है और मिठाई देखते ही मुंह में पानी आने लगता है और जीभ पर विशेष स्वाद उतर आता है। मिठाई के सभी दीवाने हैं। मिठाई के बिना कोई तीज-त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ-कर्मकाण्ड, विवाह-निकाह सम्पन्न नहीं होता। जन्मदिन की पार्टी में केक के अलावा कोई और मिठाई न हो तो पार्टी फीकी हो जाती है।

कार्यालयों में स्थानांतरण या सेवानिवृत्ति का विदाई समारोह हो तो मिठाई की प्लेटों की शोभा देखते ही बनती है। भगवान के भोगराग में भी मिठाई की थाली आवश्यक है। और तो और, श्मशान में मृतक की अंत्येष्टि में भी सात प्रकार की मिठाई का डिब्बा रखने की परम्परा विद्यमान है। कुल मिलाकर मिठाई समाज जीवन के दैनंदिन और विशेष आयोजनों का विशेष एवं अनिवार्य हिस्सा है जिसकी रिक्तता की पूर्ति असंभव है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई में मिठाईयों ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बनारस की तिरंगी बर्फी और कलकत्ता की जय हिंद संदेश बर्फी ने अंग्रेजी सत्ता की नींद उड़ा दी थी, तब उनके निर्माण एवं विक्रय पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

 लेख का शीर्षक देखकर पाठक चौंके होंगे कि क्या ऐसा सम्भव हुआ होगा, किंतु यह बात सोलह आने सच और खरी है कि अंग्रेजों से भारत वर्ष की आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों एवं राजनीतिक नेताओ-सेनानियों की भांति हलवाइयों ने भी अपने अलग तरीके से अप्रत्यक्ष ढंग से महत्वपूर्ण योगदान दिया था। भले ही वह प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों से लोहा नहीं ले सके किंतु अपनी मिठाइयों के माध्यम से गुप्त संदेशों को न केवल क्रांतिकारियों तक पहुंचाया बल्कि क्रांतिकारियों को अपनी दुकानों में आश्रय भी दिया। किंतु दुर्भाग्यवश देश की आजादी की लड़ाई में मिठाई की दुकानों का योगदान अचर्चित एवं अलिखित रह अवश्य गया है पर बनारस, दिल्ली और कोलकाता की गलियों में उनके योगदान के मीठे किस्से आज भी हवा में तैर रहे हैं।

 अगस्त 1942, महात्मा गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ किया। बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गये।‌ अंग्रेजी हुकूमत ने देशभर में तिरंगा फहराने-लहराने तथा तिरंगा ध्वज साथ लेकर चलने-फिरने पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही सार्वजनिक समारोहों के आयोजन करने पर भी रोक लगा दी गई। ऐसे अवसर पर आमजन में देशप्रेम की भावना उत्पन्न करने और अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की धार को तीव्रतर बनाये रखने के लिए बनारस के देशभक्त हलवाई रघुनाथ प्रसाद ने एक तीन परतों की बर्फी बनाई, जिसे नाम दिया गया तिरंगी बर्फी। यह विशेष प्रकार की बर्फी काजू , बादाम और पिस्ता से तैयार की जाती थी तथा स्वतंत्रता सेनानियों एवं आमजन को भी मुफ्त भी खिलाई जाती थी ताकि उनके मन-मस्तिष्क में देशभक्ति का रंग और जिह्वा पर स्वाद चढ़ा रहे। इसके साथ ही जवाहर लड्डू, गांधी गौरव, सुभाष भोग, मोती पाक और वल्लभ संदेश नाम से विविध मिठाइयां बनाई जाती थीं। आज भी यह तिरंगी बर्फी बनारस के ठठेरी बाजार की उस दुकान में बनाई जा रही है हालांकि अब काजू ,बादाम एवं पिस्ता की जगह यह दूध और खोया से तैयार की जा रही है, लेकिन अपनी परंपरा का निर्वाह करते हुए यह तिरंगि बर्फी आज भी लोगों की पहली पसंद बनी हुई है, आमतौर से स्वाधीनता दिवस  तथा गणतंत्र दिवस में बहुत मांग रहती है।

इसी प्रकार कोलकाता में मन्मथ दास नाम के हलवाई ने जयहिंद संदेश नाम की तीन रंगों की बर्फी तैयार की। ऊपर नारंगी रंग, बीच में मलाईदार खोवा की परत और नीचे पिस्ता से बनी हरी परत रहती थी। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि तिरंगी बर्फी और जयहिंद संदेश की अत्यंत लोकप्रियता और इनसे आमजन में देशभक्ति की भावना का ज्वार उठ जाने से अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ गई और अंग्रेजों ने जयहिंद संदेश तथा तिरंगी बर्फी  निर्मित करने और विक्रय पर प्रतिबंध लगा दिया। बावजूद इसके यह बर्फी चोरी-छिपे बनाकर आम जनता तक पहुंचाई जाती रही।

  अब मैं आपको दिल्ली की उन मिठाई की दुकानों की ओर लिए चलता हूं जहां भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद प्रभृति  क्रांतिकारी न केवल गुप्त वार्ताएं करते थे बल्कि मिठाई के डिब्बों के आदान-प्रदान से एक-दूसरे तक गुप्त सूचनाएं भी पहुंचाते थे। जब अंग्रेजी सत्ता के गुप्तचर क्रांतिकारियों की टोह लेने के लिए चतुर्दिक सक्रिय रहते थे और क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम तक पहुंचने से पहले रोकने के लिए अंग्रेजी सत्ता कटिबद्ध थी तब क्रांतिकारियों ने मिठाईयां को कोड देकर महत्वपूर्ण संदेश गोपनीय ढंग से गुप्तचरों की आंखों में की धूल झोंकते हुए संबंधित क्रांतिकारी तक न केवल पहुंचाते थे बल्कि क्रांतिकारी गतिविधियां भी संपन्न करते थे। जैसे यदि मिठाई के डिब्बे में लड्डू है तो इसका आशय था कि अड्डे पर बम उतर रहे हैं‌, बंगाली छेना रसगुल्ला का अर्थ होता था कि विस्फोटकों की एक बड़ी खेप रास्ते पर है। इसी तरह यदि डिब्बे में बर्फी है तो पाने वाला क्रांतिकारी समझ जाता था कि कारतूस, गोला और बारूद उपलब्ध हो गया है। इन मिठाई की दुकानों की ओर अंग्रेजों का कभी ध्यान नहीं गया और न कभी छापा डाला गया। इसलिए क्रांतिकारी अंग्रेजों की नजरें बचा कर यहां बैठकर न केवल अपनी गुप्त वार्ताएं संपन्न करते थे बल्कि संकट और धरपकड़ के समय  कुछ दिनों का आश्रय भी पाते थे।

 भारत की आजादी के संघर्ष इतिहास का यह एक ऐसा अध्याय है जिसके पृष्ठ कोरे हैं। आवश्यकता है कि इस पर सरकार द्वारा शोध करवाकर स्वातंत्र्य समर में मिठाई की दुकानों के योगदान को अंकित किया जाये ताकि आगामी पीढ़ी परिचित हो प्रेरणा ग्रहण कर सके।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »