रत्नावली की फटकार से तुलसीदास ने ईश्वर को प्राप्त किया

-11 अगस्त गोस्वामी तुलसीदास जयंती-

तुलसीदास का जन्म प्रयाग के पास बांदा जिले में स्थित राजापुर ग्राम में हुआ था। इनकी जन्मतिथि श्रावन शुक्ल सप्तमी संवत 1554 को माना जाता है। इनके पिता का नाम पंडित आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी देवी था। कहा जाता है तुलसीदास माता के गर्भ में बारह महिने रहने के बाद पैदा हुये थे। एवं तुलसी जन्मते ही रोये नहीं थे बल्कि राम का नाम उनकी श्रीमुख से प्रस्फुटित हुआ था। उनके मुंह में उस समय बत्तीस दांत मौजूद थे।

माता पिता सराव नक्षत्र में पैदा हुये इस ​प्रकार के शिशु को देखकर बहुत डर गये थे। अपशकुन की आशंका और भावी मुसीबतों से बचने के लिए उन्होंने बालक को अपनी दासी चुनिया बाई को पालने के लिये दे दिया था। मां तो उनके पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही स्वर्ण सिधार गई थी धायमाता चुनिया भी तुलसी के बाल्यावस्था में ही स्वर्ग सिधार गई जिससे तुलसी अनाथ होकर दर दर की ठोकरें खाने लगे। बालक तुलसी की अनाथावस्था से द्रवित होकर रामशल वासी सेठ नरहर्यानंद ने बालक को गोद ले लिया, और उनका नया नाम रखा रामबोला। इन्ही सेठ की क्षत्रछाया में इनके सभी संस्कार आदि कार्य सम्पन्न हुये। इनके लिए अयोध्या में विद्याध्ययन का भी इंतजाम किया गया।

गोस्वामी तुलसीदास जी  केवल हिन्दी साहित्य ही नहीं वरन संपूर्ण भारतीय साहित्य के अनुपम रत्न माने जाते हैं। जिस प्रकार “रामचरित मानस” आज घर घर में परम पूज्य ग्रंथ है, उसी प्रकार पूज्य माने जाते हैं उनके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ! तुलसी दास का जन्म शायद मनुष्य के भ्रांतियों को दूर करने के लिये हुआ था। मनुष्य जो भटका हुआ था उसे सही राह दिखाने के लिये तुलसीदास ने भगवान राम के आदर्श चरित्र को महती रूप से प्रस्तुत किया है।उन्होंने अपनी कल्याणकारी वाणी द्वारा भक्तिरस से पिपासुओं के लिये भक्ति भावना प्रगट किया, साथ ही बुद्धिजीवियों के लिये दार्शनिक तत्वों के माध्यम से रामचरित को स्थापित किया है।

उन्तीस वर्ष की आयु होने के बाद तुलसी दास जी का विवाह एक भारद्वाज गोत्रीय ब्राम्हण कन्या के साथ हुआ। तुलसी दास की पत्नी का नाम रत्नावली था। वे सूकरक्षेत्र (सोवे) के बदरिया ग्राम के पंडित दीनबंधु पाठक की पुत्री थीं। रत्नावली के तीन भ्राता थे, जो अपनी बहिन से अपार स्नेह रखते थे। रत्नावली विद्वान पिता की विद्वान पुत्री थी। उन्होने बचपन से ही अनेक ग्रंथों का पठन पाठन कंठस्थ लिया था। शास्त्रों में वे परांगत हो चुकी थी। काव्य रचना में भी इनकी बहुत रुचि थी। नव विवाहिता पत्नी के साथ तुलसीदास जी का जीवन सुखपूर्वक बीत रहा था कि एक दिन रत्नावली रक्षाबंधन पर्व पर भाइयों को रक्षाबंधन बांधने हेतु अपने मायके आ जाती हैं, तब तुलसीदास जी को पत्नी का यह अल्प विछोह भी बहुत भारी गुजरता है ,और वे पत्नी के पीछे पीछे ही अपने ससुराल पहुंच जाते हैं। बरसते रात्रि को खिड़की के रास्ते वे पत्नी के कक्ष में प्रवेश करते हैं। उनकी पत्नी उन्हें देखकर आश्चर्य चकित रह जाती है। वह बेहद व्यथित हो जाती है यह सोचकर कि क्या कहेंग उसके मायके के लोग उसके पति के इस पागलपन को देखकर तब वे अपने पति से कहती हैं कि –

“अस्थि वर्गमय देह ममता 
पर जैसी प्रीत तैसी जो 
राम में होती न तो भवभीत।।”                   

अर्थात वे अपने पति को फटकारते हुये कहती हैं कि नांथ इस हाड़ मांस के शरीर पर आप को आसक्ति के लिये धिक्कार है। यदि यही आसक्ती ईश्वर के प्रति रखते तो आपको ईश्वर मिल जाता। पत्नी के धिक्कार से वे चोटिल हो जाते हैं और उनके ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं। वे यही से राममय हो जाते हैं। गृहस्थ और सांसारिक जीवन का मोह त्याग कर वे प्रयागराज में जाकर सन्यास धारण कर लेते हैं। और तब विश्व के जन को मिलती है एक अद्भुत कृति “रामचरित इसकी मानस” के रूप में।

 कुछ लोग तुलसीदास को अद्वैतवादी और विशिष्ट दैतवादी मानते हैं। “रामचरित मानस” में इन दोनो विचारों की पुष्टि मिलती है। तुलसीदास ने प्रयत्न पूर्वक समस्त परस्पर विरोधी विचार धाराओं को समन्वित कर अपने काव्य में समाहित किया है।

 तुलसीदास जीवन के सत्य को पाकर धन्य धन्य हो रहे थे तो उधर उनकी पत्नी का जीवन पति के होते हुये भी नितांत एकाकी कट रहा था। उन्होंने कई वर्ष इसी अवस्था में गुजार दिया। इन दिनों में संतानों का पालन पोषण और काव्य रचना में उनका अधिकांश जीवन व्यतीत हुआ। पति द्वारा गृह त्याग करने पर भी ये पति का गुणगान कैसे करती हैं उसकी एक बानगी देखिये उन्ही की रचित पद्य में– 

मोरे पिव समान कोई ग्यानी।
जिन जग नारि जननि भगनी समः सुतासरिस बहुभानी ।।
परधन जिन माटी सम जान्यो सत्यशील गुणखानी ।
बुद्धि विवेक नव विनय विभत जुत जासु सरस प्रिववानी।।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने “रामचरित मानस” में अनेक बार राम को ब्रम्ह सिद्ध करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा भी कि जो राम को ब्रम्ह से भिन्न मानते हैं वे मिथ्यावादी और भ्रमित हैं। राम को उन्होंने त्रिदेवों से भी श्रेष्ठ साबित किया है। “विधि हरि शम्भु नवायन हरि” गोस्वामी जी माया के दो भेद बताते हैं। एक राक्षसों की दूसरी परमेश्वर’ की। राक्षसों की माया के चल बुद्धादि में  काम आती है। परमेश्वर की माया जगत को बचाती है। जीवात्मा माया के वश में रहती है। भक्ति करने वाली जीवात्मा के पास माया नहीं फटक सकती। तुलसीदास जी कहते हैं कि जीव अनेक है पर ईश्वर एक है निर्गुण और सगुण में वे कोई अंतर नहीं मानते हैं। जो निर्वाण, निराकर और अजन्मा है, वही भक्त के प्रेम के होकर सगुण रूप धारण करता है। ये ज्ञान मार्ग एवं भक्तिमार्ग को सरल बनाता है।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »