16 सितंबर अनंत चतुर्दशी पर विशेष-
– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अनंत चतुर्दशी और अनंत चौदस के नाम से जानी जाती है। अनंत चतुर्दशी भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन भगवानविष्णु के भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं। अनंत चतुर्दशी मनाने के लिए समय व मुहूर्त इस प्रकार है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि प्रारंभः सोमवार 16 सितंबर 2024 को दोपहर 03:10 बजे से भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि समापनः मंगलवार 17 सितंबर 2024 को सुबह 11:44 बजे तक अनंत चतुर्दशी (उदयातिथि):मंगलवार 17 सितंबर 2024 को अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्तः मंगलवार 17 सितंबर सुबह 06:07 बजे से सुबह 11:44 बजे तक अवधिः 05 घंटे 37 मिनट्स तक रहेगी। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु, माता यमुना और शेषनाग की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि यह व्रत रखने से गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव से राहत मिलती है और अविवाहित लोगों के विवाह की बाधा दूर होती है।
अनंत पूजा के दिन बांह में भगवान विष्णु की पूजा के फलस्वरूप बांह में अनंत सूत्र बांधना चाहिए। मान्यता है कि इस सूत्र में भगवान विष्णु का वास होता है। अनंत चतुर्दशी पर अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद बांह में बांधने से भक्तों का हर दुख भगवान दूर कर देते हैं, उनकी रक्षा करते हैं, सुख समृद्धि देते हैं। इस अनंत सूत्र में 14 गांठें होनी चाहिए, ये 14 गांठ सृष्टि के 14 लोकों के प्रतीक हैं। भाद्र शुक्ल चतुर्दशी में अत्युत्तम अनन्त व्रत किया जाता है। उस दिन एक भुक्त करते हुए एक सेर गेहूं के आटे को घी एवं शक्कर में पकाकर अनन्त भगवान को समर्पित करें। पहले गंध आदि से अनन्त की पूजा कर कपास या रेशम का सुन्दर डोरा-जिसमें चौदह गाँठें हों- बाँह पर बाँध ले और पुराने डोरे को उतारकर जलाशय में फेंक दें। नारी नवीन डोरे को बाई भुजा में और पुरुष दाहिनी भुजा में बाँधे। दक्षिणा सहित पकवान विप्र को देकर स्वयं भी उसी परिमाण में भोजन करें। सुधी व्यक्ति चौदह वर्षों तक इस उत्तम व्रत को करके उद्यापन करे। मुने ! धूम्रवर्णों से मनोहर सर्वतोभद्रमण्डल बनाकर उसके ऊपर ताँबे का कलश रखें। उसके ऊपर सुवर्ण की पवित्र अनन्तप्रतिमा रखकर उसे पीले रेशमी वस्त्र से आच्छादित कर विधिपूर्वक अर्चना करे। यजमान गणेश, सूर्यादि पंचदेवता तथा लोकपालों का पृथक् पृथक् पूजन करें।एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। उस समय यज्ञ मंडप का निर्माण सुंदर तो था ही, अद्भुत भी था वह यज्ञ मंडप इतना मनोरम था कि जल व थल की भिन्नता प्रतीत ही नहीं होती थी। जल में स्थल तथा स्थल में जल की भांति प्रतीत होती थी। बहुत सावधानी करने पर भी बहुत से व्यक्ति उस दलअद्भुत मंडप में धोखा खा चुके थे।
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