पत्रकारों की स्वतंत्रता को बल देती सुुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में शुक्रवार को कहा कि पत्रकारों के विरुद्ध सिर्फ इसलिए आपराधिक मामला नहीं दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि उनके लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है। जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में विचार व्यक्त करने की आजादी का सम्मान किया जाना चाहिए और संविधान के अनुच्छेद-19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अधिकार सुरक्षित किए गए हैं। सही मायनों में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर सत्ताधीशों को आईना ही दिखाया है कि सरकार की रीति-नीतियों व निर्णयों की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है। यह टिप्पणी उन पत्रकारों के लिये जहां राहतकारी है, वही पत्रकारिता को अधिक निडर, निर्भीक एवं बेवाक तरीके से अपना धर्म को निभाने को प्रेरित करती है।

असल में विभिन्न राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारों के खिलाफ मुखर आलोचनात्मक होने पर पत्रकार दमन का शिकार बने हैं। कई राज्यों में उनकी गिरफ्तारी भी हुई, मारपीट हुई और गंभीर धाराओं में गिरफ्तारी दिखायी गई। कई पत्रकारों के संदिग्ध परिस्थितियों का शिकार बनने की खबरें भी यदा-कदा आती रहती हैं। यहां तक कि कुछ पत्रकारों पर उन धाराओं में मुकदमे दर्ज किये जाते हैं, जो कि राष्ट्र विरोधी तत्वों के खिलाफ दर्ज होते हैं। हद तो तब हो जाती है जब मुकदमें गैरकानूनी गतिविधियां निवारण अधिनियम के तहत भी दर्ज होते हैं। ऐसे मामलों में पत्रकारों की जमानत कराना भी टेढ़ी खीर बन जाती है। निश्चित तौर पर ऐसे कदम पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह से प्रेरित होकर ही उठाये जाते हैं। निश्चय ही उन निर्भीक पत्रकारों के लिये सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी सुकून देने वाली है, जो राजनीतिक दुराग्रह एवं पूर्वाग्रह के शिकार बने हैं।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में पत्रकार विभिन्न संकटों को झेलते हुए हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करते हैं। पत्रकार केवल खबरे पहुंचाने का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह नये युग के निर्माण और जन चेतना के उद्बोधन एवं शासन-प्रशासन के प्रति जागरूक करने का भी सशक्त माध्यम है। पत्रकार देश की राजनीति, सरकारों और उसके लिए आवश्यक सदाचार का माध्यम रही है। हिंसा, विपत्तियां और भ्रष्टाचार को लेकर भी अनेक पक्ष उसने समय-समय पर प्रस्तुत किये हैं।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार के विरुद्ध दर्ज मुकदमे की सुनवाई के दौरान की, उसने लोकतांत्रिक देश में विचार व्यक्त करने की आजादी का सम्मान किये जाने की बात कहकर पत्रकारों को अधिक प्रखर, निष्पक्ष एवं तीक्ष्ण होकर अपना धर्म निभाने का रास्ता साफ किया है। देखना है कि अदालत के इस फैसले का सरकारों एवं राजनीतिक दलों पर कितना असर होता है? अक्सर नेता, अधिकारी एवं मंत्री आलोचना बर्दाश्त न करके मीडियाकर्मियों के खिलाफ आक्रामक हो जाते हैं। अक्सर वे अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए पत्रकारों को दबाने एवं अपनी शर्ताें पर पत्रकारिता कराने को बाध्य करते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद ऐसी ही आक्रामकता राहुल गांधी में देखने को मिली जब उन्होंने प्रेस वार्ता में एक महिला पत्रकार को बेहूदे तरीके से किसी पार्टी विशेष की पक्षधर होने का आरोप लगाया, इसी तरह अखिलेश यादव ने भी एक पत्रकार को भला-बूरा कहा। ये दृश्य समूचे देश ने देखें।

यह एक स्वस्थ, आदर्श एवं जागरूक लोकतंत्र राष्ट्र के लिये अच्छा है कि अदालतें समय-समय पर अभिव्यक्ति की आजादी को संबल प्रदान करते हुए निर्भीक एवं स्वतंत्र पत्रकारिता को बल देती रही है। लेकिन विडंबना है कि आजादी के सात दशक बाद भी हमारे राजनेता एवं सरकारें रह-रहकर पत्रकारों को डराने-धमकाने से बाज नहीं आते। हम देश में आम जनमानस को भी इतना जागरूक एवं सतर्क नहीं कर पाये कि वे अपने निष्पक्ष सूचना पाने के अधिकार के प्रति जागरूक हो सकें। यही वजह है कि सच्चाई से पर्दा उठाने की कोशिश में वह निर्भीक पत्रकार के बचाव में खड़े नजर नहीं आते। वे ध्यान नहीं रखते कि उनके हित से जुड़ा कुछ सच सत्ताधीश छुपाना चाहते हैं। गलत नीतियां एवं भ्रष्टाचार इसीलिये पनपता है। राजनेता सत्ता की सुविधा के लिये मनमाफिक प्रचार तो चाहते हैं, लेकिन अपने दागों, भ्रष्ट आचरण एवं गलत नीतियों से जुड़े सच को सात पर्दों में रखना चाहते हैं।

निस्संदेह, सजग, सतर्क और निर्भीक पत्रकार एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाकर सत्ताधीशों को राह ही दिखाता है। यही कारण है कि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। अकबर इलाहाबादी ने इसकी ताकत एवं महत्व को इन शब्दों में अभिव्यक्ति दी है कि ‘न खींचो कमान, न तलवार निकालो, जब तोप हो मुकाबिल तब अखबार निकालो।’ उन्होंने इन पंक्तियों के जरिए प्रेस को तोप और तलवार से भी शक्तिशाली बता कर इनके इस्तेमाल की बात कह गए हैं। अर्थात कलम को हथियार से भी ताकतवर बताया गया है। पर खबरनवीसों की कलम को तोड़ने, उन्हें कमजोर करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निस्तेज करने के लिए बुरी एवं स्वार्थी ताकतें सत्ता, तलवार और तोप का इस्तेमाल कर रही हैं। लेकिन तलवार से भी धारदार कलम इसीलिये इतनी प्रभावी है कि इसकी वजह से बड़े-बड़े राजनेता, उद्योगपतियों और सितारों को अर्श से फर्श पर आना पड़ा।

पत्रकार कई संकटों का सामना कर रहे हैं- संघर्ष और हिंसा, आतंक एवं अलगाव, युद्ध एवं राजनीतिक वर्चस्व, गरीबी एवं बेरोजगारी, लगातार सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ, पर्यावरणीय संकट और लोगों के स्वास्थ्य और भलाई के लिए चुनौतियाँ आदि जटिलतर स्थितियों के बीच पत्रकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। लोकतंत्र, कानून के शासन और मानवाधिकारों को आधार देने वाली संस्थाओं पर गंभीर प्रभाव के कारण ही यह भूमिका महत्वपूर्ण है। बावजूद इसके मीडिया की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार हमले हो रहे हैं। कभी-कभी भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर सख्त पहरे जैसा भी प्रतीत होता है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि बड़ी सचाई है कि इन्हीं पत्रकारों के बल पर हमें आजादी मिली है। देश में आजादी के बाद भी बड़े राजनेता मीडिया द्वारा किसी नीति या फैसले के खिलाफ की गई आलोचना को सहजता से लेते थे।

हालांकि आलोचना का अर्थ हर समय निंदा करना नहीं होता। किसी भी मुद्दे के पक्ष और विपक्ष का तार्किक विश्लेषण करना होता है। पत्रकारिता यही करती है। वह लोकहित में सरकार को कदम उठाने का रास्ता सुझाती रहती है, इसीलिए उसकी विश्वसनीयता होती है। मगर सरकारें जब उसके मूल स्वभाव को ही बदलने का प्रयास करती हैं, तो उसकी विश्वसनीयता पर प्रहार करती हैं। ऐसे में पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ न होकर प्रचारतंत्र में तब्दील होने लगती है। पत्रकारिता आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों को दूर करने में मदद करती है। उसका लाभ उठाने के बजाय अगर उसका गला घोटने का प्रयास होगा, तो सही अर्थों में विकास का दावा नहीं किया जा सकता, नया भारत-सशक्त भारत निर्मित नहीं किया जा सकता। अगर कोई सरकार सचमुच उदारवादी और लोकतांत्रिक होगी, तो वह आलोचना से कुछ सीखने का प्रयास करेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक आजाद एवं जीवंत प्रेस के प्रति हमारे अविश्वसनीय समर्थन को दोहराने की बात कही है जो लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है।’

आज हर हाथ में पत्थर है। आज समाज में नायक कम खलनायक ज्यादा हैं। प्रसिद्ध शायर नज़मी ने कहा है कि अपनी खिड़कियों के कांच न बदलो नज़मी, अभी लोगों ने अपने हाथों से पत्थर नहीं फंेके हैं।“ प्रेस ने समय-समय पर ऐसी स्थितियों के प्रति सावधान किया गया है, ‘डर पत्थर से नहीं, डर उस हाथ से है जिसने पत्थर पकड़ रखा है।’ महावीर, बुद्ध एवं गांधी का उदाहरण देते हुए बहुत सफाई के साथ प्रेस ने समाज को सजग किया है। प्रेस की आजादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आजादी की रक्षा जरूरी है। यही काम सुप्रीम कोर्ट ने किया है, जो पत्रकारों के सम्मुख उपस्थित विभिन्न झंझावातों एवं संकटों के बीच अपने प्रयासों के दीप जलाये रखने का आह्वान हैं। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लहूलुहान करना और उसे जंजीरों में जकड़ने की कोशिशें करना विडम्बनापूर्ण है। इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थितियों में कैसे भरेगी कलम उड़ान! यही सुप्रीम कोर्ट की चिन्ता है, जिसे सत्ताधीशों को समझना होगा।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »