संघर्षों के बीच सफलता की कहानी लिखती बालिकाएं

-अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस- 11 अक्टूबर-

दुनियाभर में बालिकाओं को सम्मान एवं समानतापूर्ण जीवन में हिस्सेदारी बढ़ाने, उसके सेहतमंद जीवन से लेकर शिक्षा और करियर के लिए मार्ग बनाने के उद्देश्य से हर साल 11 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इस दिन बालिकाओं को उनके अधिकारों और बालिका सशक्तिकरण के प्रति जागरूक किया जाता है। भारत समेत कई देशों में बालिकाओं को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक बच्ची के जन्म से लेकर परिवार में उसकी स्थिति, शिक्षा के अधिकार और करियर में महिलाओं के विकास में आने वाला बाधाओं को दूर करने के लिए जागरूकता फैलाना ही इस दिवस का उद्देश्य है। इस दिवस का उद्देश्य है कि दुनियाभर की बालिकाओं की आवाज को सशक्त करना और आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करना। वर्ष 2024 के इस दिवस की थीम है भविष्य के लिए बालिकाओं का दृष्टिकोण, जो बालिकाओं की आवाज की शक्ति और भविष्य के लिए दृष्टि से प्रेरित, तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता और सतत आशा, दोनों को व्यक्त करता है।

आज की बालिकाओं की एक सम्पूर्ण पीढ़ी जलवायु, संघर्ष, युद्ध, गरीबी, मानव अधिकारों और लैंगिक असमानता जैसे वैश्विक संकटों से जूझ रही है। बहुत सी लड़कियों को अभी भी उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है, जिससे उनके विकल्पों पर प्रतिबंध लगता है और उनका भविष्य सीमित हो जाता है। फिर भी हाल ही में किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि लड़कियाँ न केवल संकट का सामना करने में साहसी हैं, बल्कि भविष्य के लिए आशावान भी हैं। हर दिन, वे एक ऐसी दुनिया की कल्पना को साकार करने के लिए कदम उठा रही हैं जिसमें सभी लड़कियों को सुरक्षा, सम्मान और अधिकार प्राप्त हों। इस खास दिन मनाने का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं यानी नारी शक्ति को आत्मनिर्भर बनाना है, ताकि वे भी देश और समाज के विकास में योगदान दे सकें।

देश एवं दुनिया में लड़कियों के लिये ज्यादा समर्थन और नये मौके देने के लिये इस उत्सव की विशेष प्रासंगिकता है। बालिका शिशु के साथ भेद-भाव एक बड़ी समस्या है जो कई क्षेत्रों में फैला है जैसे शिक्षा में असमानता, पोषण, कानूनी अधिकार, चिकित्सीय देख-रेख, सुरक्षा, सम्मान, बाल विवाह आदि। ये बहुत जरूरी है कि विभिन्न प्रकार के सामाजिक भेदभाव और शोषण को समाज से पूरी तरह से हटाया जाये जिसका हर रोज लड़कियाँ अपने जीवन में सामना करती हैं। एक गैर सरकारी संगठन ने प्लान इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के रूप में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत की। इस एनजीओ ने एक अभियान चलाया, जिसका नाम ‘क्योंकि मैं एक लड़की हूं’ रखा गया। इस अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाने के लिए कनाडा सरकार ने एक आम सभा में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा।

19 दिसंबर 2011 के दिन संयुक्त राष्ट्र ने इस प्रस्ताव को पारित किया और 11 अक्तूबर 2012 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया और उस समय इसकी थीम “बाल विवाह को समाप्त करना” था। आज दुनिया में कन्याओं एवं बालिकाओं के समग्र विकास के साथ उनके जीवन को सुरक्षित करना ज्यादा जरूरी है, क्योंकि छोटी बालिकाओं पर हो रहे अन्याय, अत्याचारों की एक लंबी सूची रोज बन सकती है। न मालूम कितनी अबोध बालिकाएं, कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी। कब तक अपनी मजबूरी का फायदा उठाने देती रहेंगी। सख्त कानूनों के बावजूद, देश में हर 15 मिनट पर एक बालिका यौन अपराध का शिकार होती है। निर्भया मामले में जनांदोलन के बाद सख्त कानून बनने के बावजूद देश में बलात्कार एवं बाल-दुष्कर्म मामलों में भारी बढ़ोतरी हुई है।

समाज में व्याप्त अत्यधिक गरीबी ने बालिकाओं के खिलाफ सामाजिक बुराई जैसे दहेज प्रथा को जन्म दिया है जिसने बालिकाओं की स्थिति को बद से बदतर बना दिया है। आमतौर पर माता-पिता सोचते हैं की लड़कियां केवल रुपये खर्च कराती है जिसके कारण वो लड़कियों को बहुत से तरीकों (कन्या भ्रूण हत्या, दहेज के लिये हत्या) जन्म से पहले या बाद में मार देते हैं, कन्याओं या महिलाओं को बचाने के लिये ये मुद्दे समाज से बहुत शीघ्र खत्म करने की आवश्यकता है। हम तालिबान-अफगानिस्तान आदि देशों में बच्चियों एवं महिलाओं पर हो रही क्रूरता, बर्बरता, शोषण की चर्चाओं में मशगूल दिखाई देते हैं लेकिन भारत में आए दिन नाबालिग बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं तक से होने वाली छेड़छाड़, बलात्कार, हिंसा की घटनाएं पर क्यों मौन साध लेते हैं? इस देश में जहां नवरात्र में कन्या पूजन किया जाता है, लोग कन्याओं को घर बुलाकर उनके पैर धोते हैं और उन्हें यथासंभव उपहार देकर देवी मां को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं वहीं इसी देश में बेटियों को गर्भ में ही मार दिये जाने एवं नारी अस्मिता एवं अस्तित्व को नौंचने की त्रासदी भी है। इन दोनों कृत्यों में कोई भी तो समानता नहीं बल्कि गज़ब का विरोधाभास दिखाई देता है।

दुनियाभर में बालिकाओं के अस्तित्व एवं अस्मिता के लिये जागरूकता एवं आन्दोलनों के बावजूद बालिकाओं पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। हमारे देश में भी बालिकाओं की स्थिति, कन्या भू्रण हत्या की बढ़ती घटनाएं, लड़कियों की तुलना में लड़कों की बढ़ती संख्या, तलाक के बढ़ते मामले, गांवों में बालिका की अशिक्षा, कुपोषण एवं शोषण, बालिकाओं की सुरक्षा, बालिकाओं के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाएं, अश्लील हरकतें और विशेष रूप से उनके खिलाफ होने वाले अपराधों पर प्रभावी चर्चा एवं कठोर निर्णयों से एक सार्थक वातावरण का निर्माण किये जाने की अपेक्षा है। क्योंकि एक टीस-सी मन में उठती है कि आखिर बालिकाओं कब तक भोग की वस्तु बनी रहेगी? उसका जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा? बलात्कार, छेड़खानी, भ्रूण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी? कब तक उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को नौचा जाता रहेगा?

दरअसल छोटी लड़कियों या महिलाओं की स्थिति अनेक मुस्लिम और अफ्रीकी देशों में दयनीय है। जबकि अनेक मुस्लिम देशों में महिलाओं पर अत्याचार करने वालों के लिये सख्त सजा का प्रावधान है, अफगानिस्तान-तालिबान का अपवाद है। वहां के तालिबानी शासकों ने महिलाओं को लेकर जो फरमान जारी किए हैं वो महिला-विरोधी होने के साथ दिल को दहलाने वाले हैं। दुनिया की बड़ी शक्तियों को इन बालिकाओं के स्वतंत्र अस्तित्व को बचाने के लिये आगे आना चाहिए। तमाम जागरूकता एवं सरकारी प्रयासों के भारत में भी बालिकाओं की स्थिति में यथोचित बदलाव नहीं आया है। भारत में भी जब कुछ धर्म के ठेकेदार हिंसात्मक और आक्रामक तरीकों से बालिकाओं को सार्वजनिक जगहों पर नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं तो वे भी तालिबानी ही नजर आते हैं। विरोधाभासी बात यह है कि जो लोग बालिकाओं को संस्कारों की सीख देते हैं, उनमें से बहुत से लोग, धर्मगुरु, राजनेता एवं समाजसुधारक महिलाओं एवं बालिकाओं के प्रति कितनी कुत्सित मानसिकता का परिचय देते आए हैं, यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। इनके चरित्र का दोहरापन जगजाहिर हो चुका है। कोई क्या पहने, क्या खाए, किससे प्रेम करे और किससे शादी करें, सह-शिक्षा का विरोधी नजरिया- इस तरह की पुरुषवादी सोच के तहत बालिकाओं को उनके हकों से वंचित किया जा रहा है, उन पर तरह-तरह की बंदिशें एवं पहरे लगाये जा रहे हैं।

‘यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है, यह बेहद चिंताजनक बात है। आज अनेक शक्लों में नारी के वजूद को धुंधलाने की घटनाएं शक्ल बदल-बदल कर काले अध्याय रच रही है। बावजूद इसके सही समर्थन, संसाधन और अवसरों के साथ, दुनिया की 1.1 बिलियन से ज्यादा लड़कियों की क्षमता असीम है और जब लड़कियां नेतृत्व करती हैं, तो इसका प्रभाव तत्काल और व्यापक होता है। परिवार, समुदाय और अर्थव्यवस्थाएं सभी मज़बूत होती हैं, हमारा भविष्य उज्जवल होता है। अब समय आ गया है कि लड़कियों की बात सुनी जाए, ऐसे सिद्ध समाधानों में निवेश किया जाए जो भविष्य की ओर प्रगति को गति देंगे, जिसमें हर लड़की अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सकेगी।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »