स्कूलों में छात्रों की संख्या का घटना चिन्ताजनक

शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्कूलों की संख्या बढ़ रही है, पर स्कूली छात्रों की संख्या घट रही है। स्कूली छात्रों की संख्या घटना न केवल चिंताजनक और विचारणीय है बल्कि नये भारत-सशक्त भारत निर्माण की एक बड़ी बाधा भी है। भारत में स्कूलों की संख्या में करीब 5,000 की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्राथमिक, माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक स्तरों सहित 14,89,115 स्कूल हैं। ये स्कूल 26,52,35,830 छात्रों को पढ़ाते हैं। इनमें से कुछ स्कूलों को उनकी प्रतिष्ठा, स्थापना के वर्षों, महत्वपूर्ण स्कूल परिणामों, मार्केटिंग रणनीतियों आदि के कारण उच्च छात्र नामांकन प्राप्त होते हैं लेकिन पर साल 2022-23 व 2023-24 के बीच स्कूली छात्रों के नामांकन में 37 लाख की कमी आई है। यह स्थिति अनेक सवाल खड़े करती है। क्या स्कूली शिक्षा ज्यादातर बच्चों की पहुंच के बाहर है? क्या शिक्षा का आकर्षण पहले की तुलना में घटा है?

भारत में शिक्षा प्रणाली लाखों छात्रों के जीवन और भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने समृद्ध इतिहास और विविध संस्कृति के साथ, भारत में एक जटिल और विशाल शैक्षिक परिदृश्य है। भारत में शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा सहित विभिन्न चरण शामिल हैं। महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। डेटा एग्रीगेशन प्लैटफॉर्म यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस की यह ताजा रिपोर्ट देश के स्कूली इन्फ्रास्ट्रक्चर में हुए सुधार के साथ ही उन अहम दिक्कतों की भी झलक देती है, जिन्हें दूर किया जाना बाकी है। बुनियादी सुविधाओं की स्थिति बेहतर होने के बावजूद छात्रों की संख्या का घटना गहन विमर्श का विषय है।

शिक्षा मानव-जीवन के विकास का आधार स्तंभ है। शिक्षा के अभाव में मानव-जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह मनुष्य को उत्कृष्टता एवं उच्चता के शिखर पर स्थापित करती है। शिक्षा प्रकाश एवं शक्ति का ऐसा स्रोत है जो नये भारत के विकास का आधार है। जो हमारी शारीरिक, मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों तथा क्षमताओं का निरन्तर सामंजस्यपूर्ण विकास करके नये भारत, सशक्त भारत के निर्माण के संकल्प को मजबूती देता है। देश में पिछले साल के मुकाबले स्कूलों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन छात्रों के नामांकन में गिरावट देखी गई है। जहां स्कूलों की संख्या 14.66 लाख से बढ़कर 14.71 लाख हो गई वहीं इनमें होने वाला छा़त्रों का नामांकन 25.17 करोड़ से घटकर 24.80 करोड़ हो गया। यह गिरावट कमोबेश सभी श्रेणियों यानी लड़के लड़कियां, ओबीसी, अल्पसंख्यक आदि में है। जहां तक शिक्षा के बीच में छात्रों के स्कूल छोड़ने के मामलों की बात है तो इसमें सेकंडरी स्तर में होने वाली बढ़ोतरी ज्यादा परेशान करने वाली है। मिडल स्कूलों में जो ड्रॉपआउट दर 5.2 प्रतिशत है, वह सेकंडरी स्टेज में आकर 10.9 प्रतिशत हो जाती है। इसके पीछे ओबीसी और एससी-एसटी श्रेणी के छात्रों को दाखिले के दौरान होने वाली जटिल प्रक्रिया, मुश्किलें और किसी अभावग्रस्त छात्र के लिए आर्थिक मदद या छात्रवृत्ति जैसी सुविधाओं की कमी का हाथ हो सकता है।

छात्रों के नामांकन की घटती संख्या को जाति के आधार पर अगर देखें, तो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्रों के नामांकन में 25 लाख से अधिक, अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के छात्रों में 12 लाख और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के छात्रों में दो लाख की गिरावट हुई है। नामांकन से वंचित हुए अल्पसंख्यक छात्रों की संख्या तीन लाख है, जबकि इनमें से एक तिहाई मुस्लिम हैं। भारत में नई पीढ़ी को यथोचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। शिक्षा से वंचित रहने के जो कारण हैं, उनमें सबसे बड़ा कारण गरीबी है। सरकारी स्तर पर सरकारों ने गरीब छात्रों के लिए अनेक इंतजाम किए हैं, पर इन इंतजामों का सभी छात्रों तक समान रूप से पहुंचना आसान नहीं है। निचले स्तर पर शिक्षकों और शिक्षा कर्मचारियों को जितना सजग होना चाहिए, उतना सजग वे नहीं हो पा रहे हैं। भारत जैसे देश में शिक्षा एक अभियान है, इसके लिए अगर नियोजित एवं उत्साहपूर्ण माहौल न बनाया जाए, तो गरीब व वंचित बच्चों तक शिक्षा को पहुंचाना चुनौतीपूर्ण है। कोई संदेह नहीं कि किसी भी अभियान में अगर समर्पित लोग आपके पास नहीं हैं, तो फिर उस अभियान की सफलता संदिग्ध हो जाती है।

भारत में शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत है। यदि हमें सर्वाेत्तम परिणाम प्राप्त करना है और सही दिशा में आगे बढ़ना है तो कई पहलुओं एवं मोर्चों पर काम करना आवश्यक है। हमारी आजादी के बाद से ही शिक्षा क्षेत्र में कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने हमें दुनिया में एक विकसित राष्ट्र बनने से रोक दिया है। भारत में एक सभ्य शिक्षा प्रणाली के महत्व की जरूरत को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नयी शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। देश की शिक्षा प्रणाली को नया आकार दिया जा रहा है और शिक्षा से जुड़े कई बड़े बदलाव किए जा रहे हैं। प्रणाली को आधुनिक बनाने और व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने के प्रयास हो रहे हैं।

बहरहाल, यह खुशी की बात है कि अब भारत के 91.7 प्रतिशत स्कूलों तक बिजली पहुंच चुकी है। अभियान चलाकर देश के बाकी बचे स्कूलों तक विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित होनी चाहिए। देश में 98 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों तक पेयजल सुविधा के साथ ही टॉयलेट की सुविधा पहुंच चुकी है। स्कूलों को संसाधन संपन्न बनाने के साथ ही शिक्षकों और पुस्तकों की गुणवत्ता एवं स्कूलों को संसाधन के स्तर पर भी बहुत मजबूत करने की जरूरत है। भारत के 60 प्रतिशत स्कूलों में भी कंप्यूटर उपलब्ध नहीं हैं और इंटरनेट की सुविधा वाले स्कूलों की संख्या 50 प्रतिशत से भी कम है। आज के समय में जब हमें बड़े पैमाने पर कुशल कामगारों की जरूरत पड़ेगी, तब किसी का कंप्यूटर शिक्षा से वंचित होना बहुत महंगा पड़ेगा। आज के समय में हर छात्र या हर नागरिक को कंप्यूटर और इंटरनेट का सामान्य ज्ञान होना ही चाहिए। कंप्यूटर आज के समय में विलासिता नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य जरूरत है।

नया भारत बनाने के लिए शिक्षा का बहुत महत्व है। शिक्षा के ज़रिए ही देश का विकास होता है और समाज में सकारात्मक बदलाव आता है। हालांकि, कई स्कूल अभिभावकों और छात्रों को बनाए रखने और आकर्षित करने के लिए संघर्ष करते हैं। इन संघर्ष की स्थितियां का नियंत्रित होना जरूरी है। इसी से भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक व्यवस्था एवं विश्व गुरु होने का दर्जा पा सकेगा। क्योंकि शिक्षा दृष्टि और दृष्टिकोण को बढ़ाती है, जिससे समाज में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होती है। इससे उन्नत एवं चरित्रसम्पन्न नागरिकों का निर्माण होता है एवं देश विकास की ओर अग्रसर होता है। सामाजिक न्याय के क्षेत्र में प्रगति करने की इच्छा भी बढ़ती है, अन्याय, भ्रष्टाचार, हिंसा, असमानता और सांप्रदायिकता आदि से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। शिक्षा एक ऐसे लोकतंत्र को सुनिश्चित करती है जिसमें एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज शामिल हो।

यह आर्थिक रूप से वंचित समूहों के उत्थान में भी मदद करता है और कई नौकरी और रोजगार के अवसरों का निर्माण सुनिश्चित करता है। एक सभ्य शिक्षा प्रणाली विचारों, ज्ञान और अच्छी प्रथाओं का शांतिपूर्ण आदान-प्रदान सुनिश्चित करती है। यह अपराध और आतंकवाद को कम करने में मदद करता है; इस प्रकार, कानून और व्यवस्था के मुद्दों को नियंत्रण में रखा जाता है। एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्यों को विकसित करने के साथ-साथ भाईचारे की भावना को बढ़ाने में मदद करती है।

भारतीय परिदृश्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच एक बड़ी बाधा है। उचित बुनियादी ढांचे की कमी और शिक्षा के प्रति समाज के कई वर्गों में कम उत्साह के कारण भारत में शिक्षा के लक्ष्य पूरे नहीं हो पाते हैं। शिक्षा प्रणाली में कुछ चुनौतियाँ हैं जिनके कारण भारत इष्टतम विकास को पूरा करने में सक्षम नहीं है। भारत में शिक्षा के परिदृश्य को बेहतर बनाने एवं छात्रों के नामांकन को बढ़ाने के लिए उन नीतियों पर सख्ती से काम करने की आवश्यकता है जो भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रणाली सुनिश्चित करें।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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