-11 फरवरी पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुण्यतिथि पर विशेष-

“स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व हम हर प्रश्न की ओर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखा करते थे। अब प्रत्येक प्रश्न की ओर हम केवल आर्थिक दृष्टिकोण से देखने लगे हैं, कारण साध्य और साधन का विवेक ही शेष नहीं रहा है।” पंडित दीनदयाल जी के उक्त उद्गार से स्पष्टतः परिलक्षित हो रहा है कि आजादी के पूर्व और पश्चात में कितना अंतर आ चुका है, लोगों में अर्थ लोलुपता की भावना का उदय होने से तमाम नैतिकता के तकाजे धरे के धरे रह गये। आज हम देखते हैं कि व्यवसायी हो या नौकरशाह, स्कूल मास्टर हो या चिकित्सक, नेता हो या समाज सेवक सभी बेहिचक भ्रष्टाचार करने में संलग्न हैं। उपाध्याय जी का चिंतन आज सर्वव्यापी हो गया है।
पंडित दीनदयाल जी का जन्म मथुरा जिले के नगला चंद्रभान ग्राम के निवासी भगवती प्रसाद के यहाँ 25 दिसंबर 1916 को हुआ था। इनकी माता का नाम रामप्यारी देवी था। वे बहुत धर्मपरायण महिला थी। उनका लालन पालन अपने पैतृक घर में नहीं वरन् नाना व मामा के यहाँ हुआ। इनके नाना श्री चुन्नीलाल शुक्ल राजस्थान के धनकिया नामक रेलवे स्टेशन में स्टेशन मास्टर थे। ढाई वर्ष की अल्पायु में ही इन्हें पिता के मृत्यु का आघात सहना पड़ा। पितृहीन शिशु दीनदयाल का बाल्यावस्था माँ की गोद में बीत रहा था कि जबवे सात वर्ष के ही थे माता रामप्यारी भी उन्हें छोड़कर भगवान को प्यारी हो गई। दीनदयाल बचपन से ही माता – पिता के स्नेह छाया से वंचित हो गये। माँ के देहांत के मात्र दो वर्ष पश्चात सितम्बर 1916 में नाना चुन्नीलाल भी स्वर्ग सिधार गये।
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