प्रयागराज में महाकुम्भ रहा था। मां गंगा के प्रति विश्वास रखने वाले इस शुभ अवसर का लाभ उठाते हुए संगम में स्नान कर पुण्य अर्जित करने के लिए करोड़ों की संख्या में जुट रहे थे। इसी बीच संदर्भ बाबू भी गंगा मैया का आशीर्वाद लेने के लिए घर से निकल पड़े। उनकी ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से प्रयागराज जानी थी। ट्रेन जाने के लिए रेलवे ने जैसे ही ट्रेन का नंबर व नाम बोलते हुए घोषणा की वैसे ही एक नाम की दो ट्रेन होने के कारण यात्रियों में भगदड़ मच गई। भगदड़ इतनी तेजी से फैली कि हर कोई अपनी जान बचाने के लिए भागने लगा। इसी भीड़ के बीच एक पांच साल की नन्हीं बच्ची भी फंसी हुई थी। संदर्भ बाबू अपनी जान बचाकर भीड़ से दूर एक कोने में खड़े थे, उनकी दृष्टि जैसे ही उस बच्ची पर गई वे तुंरत ही भीड़ में घुस गये और भगदड़ के बीच चोटिल होते हुए उस बच्ची को किसी तरह भीड़ से निकाल लाए।

इस हादसे में 18 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग लापता परिजनों को ढूंढ रहे थे। बच्ची के माता-पिता की भी मौत् हो गई थी। बच्ची इससे अनजान थी। संदर्भ बाबू बच्ची को गोद में लिए यही सोच रहे थे कि पाप-पुण्य के बीच इस प्रकार की घटना का वह क्या अर्थ समझे। इसी बीच बच्ची के रोने की आवाज ने उनकी तन्द्रा तोड़ी और वे बच्ची को पुलिस के सुपुर्द करने के लिए आगे बढ़ गये शायद गंगा मैया में डुबकी लगाने से भी बड़ा पुण्य कार्य इस समय संदर्भ बाबू के लिए यही था।
