वह स्वप्न अब साकार होने को है

मित्रो! यह संस्मरण आलेख अपनी बनावट और बुनावट से बिलकुल अलग स्वाद सहेजे है। यह एक आत्मकथात्मक संस्मरण है। जागती आंखों से देखे गये एक स्वप्न की अतीत गाथा है जो अब साकार होने को है। हुआ यह कि विद्यालयीय शिक्षा और बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त कर मैं मार्च 1998 में उत्तर प्रदेश की बेसिक शिक्षा में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त हो कार्य करने लगा था। विद्यार्थी काल से ही प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बनना चाहता था, तो यह पद पाकर खुशी स्वाभाविक थी। पर जैसा सोचा था विद्यालय वैसा न था। टूटी चारदीवारी, मेन गेट का एक पल्ला गायब, परिसर झाड़-झंखाड़ और उड़ती धूल।पहले दिन से ही अनाकर्षक संसाधन हीन विद्यालय की चुनौतियां मुंह बाये सामने खड़ी थीं।

मां-पिता ने बाधाओं से लड़ने और संघर्ष करते आगे बढ़ने का जिजीविषा-भाव बालपन में ही घुट्टी में पिला दिया था तो चुनौतियों से जूझता रहा, जीतता रहा। नानाविध संकटों और झंझावातों से जूझते कमोबेश ऐसे ही तीन विद्यालयों में काम करते 14 वर्ष पंख लगाकर उड़ गये और मई 2011 में सह-समन्वयक हिंदी भाषा पद पर बीआरसी नरैनी (बांदा) में प्रतिनियुक्ति पर आया। काम करने का बड़ा अवसर, शैक्षिक फलक पर रंग भरने को उपलब्ध हुआ विशाल कैनवास। विचार किया कि कुछ अलग हटकर नया किया जाये। अनुभव ने राह दिखाई, विद्यार्थियों, शिक्षकों और समुदाय के बीच बढ़ रही मानसिक दूरी एवं अलगाव को प्रेम, स्नेह एवं आत्मीयता के लेप से भरा जाये। विद्यालयों की बेहतरी के लिए शिक्षक और समुदाय का एक धरातल पर बैठना और संवाद करना आवश्यक था।

विद्यालयों के प्रति समाज में उपजे रूखे, नीरस, बेजान खुरदुरे भाव में मधुरता एवं समरसता के मृदुल नवनीत का लेपन कर पारस्परिक सम्बंधों में स्निग्धता एवं मिठास की बेल उगानी थी। शिक्षक रामकिशोर पांडेय जी के साथ कार्य योजना तैयार की और नवम्बर 2012 में शैक्षिक संवाद मंच की स्थापना की, जिसका उद्देश्य है विद्यालयों को आनंदघर बनाना। सच कहूं तो तभी मेरे शिक्षक बनने से शिक्षक होने की प्रक्रिया भी आरम्भ हुई थी। मंच के प्रयासों से शिक्षकों के साथ मासिक बैठकें कर विद्यालयों को आनंदघर के रूप में बदलाव की यात्रा शुरू हुई। समुदाय का सहयोग मिला तो विद्यालय महकने लगे, विद्यालयीय परिसर एवं कक्षाओं में शिक्षक-बालमैत्री के सुरभित सुमन खिले और बच्चों के चेहरों पर खुशियों के इंद्रधनुष उग उठे। दीपोत्सव, नाग पंचमी, वृक्ष-रक्षाबंधन, मकर संक्रांति, होली मिलन सहित अन्यान्य उत्सव समुदाय के साथ मिलकर विद्यालयों में मनाना आरम्भ हुआ।

परिणाम दिलों में उगी अविश्वास की खरपतवार सूख गयी और परस्पर विश्वास, बंधुत्व एवं अपनेपन का वृंदावन उग आया। शिक्षकों के छोटे समूह के साथ मंच की यह उपलब्धि और खुशियों भरी यात्रा शिक्षा-पथ पर गतिमान थी। शैक्षिक संवाद मंच का विद्यालयों को आदर्श एवं आनंदमय बना संस्कार, सहकार, सह-अस्तित्व, समता, समरसता, सख्यभाव के पावन परिवेश में विद्यालय की चारदीवारी से बाहर निकल समुदायिक सम्पर्क कर ग्राम सुरक्षा, स्वावलम्बन, संतुष्टि एवं स्वदेशी के प्रति लोकजीवन में स्वीकृति एवं बोध का पारायण प्रारम्भ हुआ, यह मंच के उद्देश्यों एवं कार्यों का एक पक्ष है। मंच का दूसरा एक महत्वपूर्ण कार्य है शिक्षकों में पढ़ने-लिखने की संस्कृति का विकास करना। पढ़ने-लिखने के अंतर्गत शैक्षिक पुस्तकों पर मासिक पुस्तक-संवाद का आयोजन किया और हिंदी साहित्य की यथा सम्भव विधाओं पर शिक्षकों को प्रशिक्षण दिलाकर लेखन करा रचनाओं का पुस्तकाकार प्रकाशन किया।

अभी तक एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सभी पुस्तकें एक से बढ़कर एक हैं। यथा – पहला दिन, हाशिए पर धूप, कोरोना काल में कविता, प्रकृति के आँगन में, राष्ट्र साधना के पथिक, क्रांतिपथ के राही, स्मृतियों की धूप-छाँव, यात्री हुए हम, विद्यालय में एक दिन, मंदाकिनी के तट पर, नदी के तट पर तथा नदी बहने लगी है आदिक संग्रह चर्चित हुए, सराहे गये। मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी हो रही है कि रचनाकारों ने बहुत भावपूर्ण मार्मिक रचनाएं लिखीं। इन पुस्तकों को पढ़कर कहीं से भी नहीं लगता कि ये बेसिक शिक्षक-शिक्षिकाओं का शौकिया लेखन है, यही प्रतीत होता है कि जैसे कोई पेशेवर लेखक ने लिखा हो। यह सच है, लेखन हम शिक्षकों का मुख्य काम नहीं है।

शौक या रुचिवश हम सभी मन के भाव व्यक्त करते हैं। इन पुस्तकों में से अधिकांश पुस्तकों का संपादन कार्य करते हुए सम्बंधित विधाओं को समझने-सीखने का अवसर मुझे मिला और संपादकीय दृष्टि विकसित हुई। हालांकि यह कार्य करते हुए मेरा व्यक्तिगत लेखन कर्म अत्यधिक प्रभावित हुआ। किंतु, मेरी बेसिक रचनाकारों के प्रति आत्मीयता इतनी गहरी होती गई कि साहित्यकार मित्रों द्वारा संपादन कार्य छोड़ने के सुझाव के बावजूद इस काम को छोड़ना तो दूर, मैं और अधिक डूबता-जुड़ता चला गया। कुछ वर्ष पूर्व एक स्वप्न देखा था कि बेसिक शिक्षकों का विविध विधाओं की रचनाओं को सहेजे एक विशाल ग्रंथ तैयार करूं, पर तमाम कोशिशों के बावजूद वह साकार नहीं हो पाया। वह स्वप्न मुझे कुरेदता, उत्साहित करता पर मैं कुछ कर नहीं पा रहा था और अब तो थक-हार कर भूल ही बैठा था

कहते हैं, नियति हमारा रास्ता तय करती है कि हमें किधर जाना है, आगे क्या करना है। गतवर्ष आंखों की परेशानी हुई और स्वास्थ्य में भी ऊपर-नीचे होता रहा। फलत: 2024 जाते-जाते नियति ने मुझसे सब कार्य छुड़वा दिया। शैक्षिक संवाद मंच के संचालन का दायित्व दुर्गेश्वर राय जी के सुयोग्य हाथों में सौंपकर शायद अक्टूबर या नवम्बर में मंच से हमेशा के लिए मुक्त हो गया। मैं इसी बीच अंतर्प्रेरणा से सपत्नीक महाकुंभ प्रयागराज में कल्पवास कर आया। कल्पवास ने मेरे जीवन में बहुत बदलाव किया, जीवन को नई दिशा दी, विचार-दृष्टि दी। अब आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने-जीने की उत्कंठा बलवती होती रही। मैं नयी यात्रा के लिए बहुत उत्साहित एवं आनंदित हूं।

होली के अवसर पर 13 मार्च की सुबह ‘होली : गांव और बाजार के रिश्ते’ पर एक लेख लिखना आरम्भ ही किया था कि बार-बार देखा गया वह स्वप्न अनायास मानस पटल पर पुनः कौंधा। लेख टाईप करना रुक गया। हां, इस स्वप्न ने मुझे चैन से सोने नहीं दिया था। पर तमाम कोशिश करने के बावजूद काम नहीं कर पाया। किंतु बीज कभी मरता नहीं, तो यह स्वप्न बीज भी अंतर्मन के किसी कोने में जीवित-जाग्रत रहा। इधर मैं अपने जीवन के नवल यात्रा पथ पर बढ़ने को स्वयं को तैयार कर रहा था कि नियति ने वह स्वप्न सम्मुख उपस्थित कर दिया। मन ने झटक दिया, बुद्धि ने प्रलोभन दिया कि बस यह स्वप्न पूर्ण कर लो। शायद नियति का खेल ही था कि लेख अधूरा छोड़ रचनाकारों से सम्पर्क कार्य में तुरंत लग गया। मुझे बहुत खुशी हुई कि दो दिन की मेहनत से दो सौ से अधिक शिक्षक-शिक्षिका रचनाकार जुड़ गये। अन्यथा पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। मैं स्वयं में आश्चर्यचकित हो रहा हूं कि यह सब कैसे हुआ जा रहा है।

रचनाकार साथी लगातार जुड़ते जा रहे हैं। अब विश्वास दृढ हो गया कि नियति मुझे इस विशेष कार्य का निमित्त बना रही है। कुछ वर्ष पूर्व देखा गया वह स्वप्न कि बेसिक रचनाकार शिक्षक-शिक्षिकाओं का विविध विधाओं पर आधृत एक विशाल ग्रंथ “बेसिक शिक्षा के साहित्य साधक” तैयार हो जो शोधार्थियों के लिए संदर्भ ग्रंथ की तरह हो, बेसिक रचनाकारों का कोश बने, अब साकार होने की दिशा में बढ़ने लगा है। न जाने क्यों, मुझे अंदर से ऐसा लग रहा है कि यह बहुत महत्वपूर्ण मानक कार्य मील का पत्थर सिद्ध होने वाला है। मैं तो बस गिलहरी की भांति अपनी भूमिका का सम्यक् निर्वहन् कर रहा हूं। इस कार्य का सम्पूर्ण श्रेय सहभागी रचनाकारों को जाने वाला है। तो कुल मिलाकर स्थितियां अनुकूल और सुखद हैं। ईशकृपा से यह कार्य सकुशल सम्पन्न होगा। पाठकों को सुख और रचनाकारों को लोक में यश प्राप्त हो, यही शुभकामना है।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »