गर्भावस्था महिलाओं पर महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और जैव रासायनिक प्रभावों के साथ एक अनूठा मातृत्व का अनुभव प्रदान करती है। अधिकांश गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में होने वाले परिवर्तनों के कारण असुरक्षित महसूस करती हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

एक अनुमान के अनुसार लगभग 30% गर्भवती महिलाओं को किसी न किसी स्तर पर चिंता का अनुभव होता है। शोध बताते हैं कि लगभग 15% महिलाएं गर्भावस्था के दौरान अवसाद या चिंता से ग्रस्त होती हैं। हर 5 गर्भवती में से 1 महिला मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित होती है। जन्म देने वाली लगभग 3% महिलाएं प्रसवोत्तर PTSD (Postpartum Traumatic Stress Disorder) का अनुभव करती हैं, जबकि उच्च जोखिम वाली आबादी में यह आंकड़ा 15% तक पहुंचता है। एक अनुमान के अनुसार 7.8% गर्भवती महिलाओं तथा 16.9% प्रसवोत्तर महिलाओं को प्रसवकालीन OCD का अनुभव होता है।
गर्भावस्था के लक्षण
- मासिक धर्म का न आना
- स्तनों में दर्द या सूजन
- थकान
- बार-बार पेशाब आना
- मतली और उल्टी (मॉर्निंग सिकनेस)
- हल्का रक्तस्राव
- मूड स्विंग
- सिर दर्द
- खाने की इच्छा या खाने से नफ़रत
- खुशबू की समझ में बढ़ोतरी
- पीठ के निचले भाग में दर्द
- पैरों और टखनों में सूजन
- हल्का स्पॉटिंग
- कब्ज
- नाक बंद होना
- सीने में जलन
- पेट में हलचल महसूस होना
- चेहरे में चमक आना
ध्यान दें: हर महिला को अलग-अलग लक्षण महसूस हो सकते हैं। यदि मासिक धर्म न आएं, तो प्रारंभिक प्रेग्नेंसी टेस्ट कराएं और डॉक्टर से परामर्श लें।
गर्भावस्था में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षण
- घबराहट, दिल की धड़कन तेज़ होना
- बैचेनी, सांस फूलना
- कपकपी या अपने को आस-पास से ‘अलग’ महसूस करना
- सामान्यीकृत चिंता (बच्चे के स्वास्थ्य, प्रसव, शरीर में बदलाव, रिश्ते, करियर आदि को लेकर)
- बाध्यकारी व्यवहार
- मूड में अचानक बदलाव
- बिना कारण के उदासी
- बार-बार रोने का मन करना
- मनपसंद चीजों में रुचि न होना
- जल्दी घबरा जाना
- हर समय थकान और तनाव
- नींद की समस्या
- लैंगिक इच्छा में कमी
- बच्चे के साथ अकेले रहने का डर
- खुद या बच्चे को नुकसान पहुंचाने के विचार
- ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
- याददाश्त कमजोर होना
- जोखिमपूर्ण व्यवहार
- नशे का प्रयोग
यदि ये लक्षण दो सप्ताह से अधिक समय तक बने रहें, तो मनोचिकित्सक या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क आवश्यक है। यह माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक
1. तनाव
मातृत्व अवकाश, वित्तीय स्थिति, रिश्ते, स्वास्थ्य या भविष्य की चिंता।
2. नकारात्मक अनुभव
बांझपन, गरीबी, हिंसा, बेरोजगारी, अलगाव।
3. व्यक्तित्व
कम आत्म-सम्मान, निर्णय में कठिनाई, अवसाद की प्रवृत्ति।
4. गर्भपात
पूर्व में गर्भपात का अनुभव मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है।
5. बीमारी
गर्भवती महिलाओं में 70% तक मतली, उल्टी, भूख न लगना, थकान आम होती हैं। गंभीर स्थितियां चिंता और अवसाद को बढ़ा सकती हैं।
6. गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं
अप्रत्याशित जटिलताएं डर, भ्रम, उदासी और गुस्सा पैदा करती हैं।
7. हार्मोन
प्रजनन हार्मोन मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं, जिससे चिड़चिड़ापन, गुस्सा, उदासी हो सकती है।
8. शारीरिक पीड़ा
विशेषकर अंतिम तिमाही में पीठ दर्द, नींद में बाधा, थकावट आम है।
9. पूर्व मानसिक समस्याएं
जिन महिलाओं को पहले मानसिक समस्याएं रही हैं, उनमें जोखिम अधिक होता है।
10. अन्य जोखिम कारक
सामाजिक समर्थन की कमी, घरेलू हिंसा, वित्तीय समस्याएं, अनियोजित या अनचाही गर्भावस्था आदि।
गर्भावस्था में मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन
करना चाहिए:
- अपनी भावनाओं को परिवार, मित्र, चिकित्सक या स्टाफ नर्स से साझा करें।
- नियमित रूप से श्वसन व्यायाम करें।
- शारीरिक गतिविधि करें – इससे मूड अच्छा होता है, नींद व भूख बेहतर होती है।
- प्रसवपूर्व कक्षाओं में भाग लें, अन्य गर्भवती महिलाओं से मिलें।
- संतुलित आहार लें, आहार विशेषज्ञ से संपर्क करें।
- सकारात्मक और सपोर्टिव लोगों के साथ समय बिताएँ।
नहीं करना चाहिए:
- दूसरों से अपनी तुलना न करें – हर गर्भावस्था अलग होती है।
- स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों से अपनी मानसिक स्थिति छिपाएं नहीं।
- शराब, सिगरेट, नशीली दवाओं का सेवन न करें – यह माँ और शिशु दोनों को नुकसान पहुंचाता है।
गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं, बल्कि जीवन का एक सुनहरा काल है जो एक नए जीवन को जन्म देता है।
यह परिवार, समाज और राष्ट्र की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे गर्भवती महिलाओं को विशेष देखभाल और भावनात्मक सहयोग प्रदान करें ताकि वे मानसिक समस्याओं से उबरकर एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकें। क्योंकि बच्चे ही राष्ट्र का भविष्य हैं।

वरिष्ठ परामर्शदाता
ए आर टी सेंटर, आई एम एस, बीएचयू, वाराणसी