22 मई वैश्विक जैव विविधता दिवस पर विशेष-
आधुनिक समय में जैव-विविधता विषय पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। मनुष्य की छेड़छाड़ और उसके लोभ ने जैव विविधता का लगभग सत्यानाश ही कर दिया है। परिणामस्वरूप ऊपर से ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण में विशेष नकारात्मक बदलाव आया है। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण पर बल दिया जा रहा है। एक रिपोर्ट की मानें तो आने वाले समय में पौधों और जानवरों प्रजातियों में से पच्चीस फीसदी पूर्णतः विलुप्त होने की अवस्था में है। इसके लिए आईपीबीईएस ने पर्यावरण संरक्षण की सलाह दी है। साथ ही पर्यावरण संतुलन के लिए विभिन्न जानवरों का संरक्षण भी जरूरी है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र प्रयत्नशील है। दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं।
जैव विविधता के संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है जहाँ प्रत्येक प्रजाति, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, सभी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पौधों की प्रजातियों की एक बड़ी संख्या के होने का अर्थ है, फसलों की अधिक विविधता। अधिक प्रजाति विविधता सभी जीवन रूपों की प्राकृतिक स्थिरता सुनिश्चित करती है।
जैव विविधता के संरक्षण हेतु वैश्विक स्तर पर संरक्षण किया जाना चाहिये, ताकि खाद्य शृंखलाएँ बनी रहें। खाद्य श्रृंखला में गड़बड़ी पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकती है। जैव विविधता के संरक्षण पर भारत ने काम करना प्रारंभ कर दिया है जैसे- जलीय पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय योजना आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 जैविक विविधता अधिनियम, 2002वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972। इन प्रावधानों के तहत भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के लिए अनियंत्रित क्रियाकलापों को कंट्रोल करने के लिए उक्त प्रावधान किए गए हैं।
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