तमस से ज्योति की ओर एक सुधारवादी यात्रा

-राजा राममोहन राय जन्म जयन्ती- 22 मई, 2025-

यह वह समय था जब हिन्दुस्तान एक तरफ विदेशी दासता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था वहीं दूसरी तरफ रूढ़िवाद, धार्मिक संकीर्णता, सामाजिक कुरीतियों और दमघोंटू प्रथाओं के बोझ तले दबा हुआ था। तभी एक मसीहा, समाज-सुधारक एवं क्रांतिकारी महामानव अवतरित हुआ जिसने तमाम बुराइयों को चुनौती दी और आखिरी सांस तक बदलाव के लिये क्रांतिकारी योद्धा की तरह लड़ा। ये मसीहा था राजा राममोहन राय। इन्हें देश एवं दुनिया आज भारत में सामाजिक सुधारों के अग्रदूत के तौर पर याद करती है। अपने दौर में वे ‘भारतीय पुनर्जागरण के पितामह’ बनकर सच्चे जीवन की लौ बनें और इस लौ का आह्वान था नये भारत का निर्माण। वे तमस से ज्योति की ओर एक बहुआयामी सुधारवादी यात्रा का उजाला थे।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी राय के द्वारा स्थापित ‘ब्रह्म समाज’, जो आधुनिक पश्चिमी विचारों से प्रभावित था, सबसे शुरुआती सुधार आंदोलन था। एक सुधारवादी विचारक के रूप में राय आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीय गरिमा तथा सामाजिक समानता के सिद्धांतों में विश्वास करते थे। राय के प्रयासों से ही भारत में आधुनिक धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों की नींव पड़ी। राय के बाद, देवेंद्रनाथ ठाकुर और केशव चंद्र सेन जैसे सुधारकों ने ब्रह्म समाज के विचारों को आगे बढ़ाया और इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन बनाया। उन्नीसवीं सदी के भाल पर अपने कर्तृत्व की जो अमिट रेखाएं उन्होंने खींची, वे इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगी। वे साहित्यस्रष्टा के साथ-साथ धर्मक्रांति एवं समाजक्रांति के सूत्रधार विराट व्यक्तित्व थे।

राजा राम मोहन राय का जन्म पश्चिम बंगाल स्थित हुगली जिले के राधानगर गांव में 22 मई 1772 को हुआ। पिता रमाकांत राय शुद्ध वैष्णव परंपरा को मानने वाले थे, वहीं माता तारिणी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। पूरा परिवार कट्टर हिन्दु परंपराओं का हिमायती था लेकिन राममोहन राय को बिना तर्क किसी भी बात को स्वीकार नहीं करते थे, इसलिए जब केवल 15 साल के थे तो उन्होंने मूर्ति पूजा को लेकर सवाल खड़े कर दिये। साथ ही अन्य प्रथाओं की भी आलोचना करनी आरंभ कर दी। हिन्दू परंपराओं का विरोध करना शुद्ध वैष्णव परंपरा को मानने वाले पिता रमाकांत को नागवार गुजरी। पिता-पुत्र में गहरा मतभेद हो गया। राय को पढ़ने के लिए पटना भेज दिया गया। यहां उन्होंने बांग्ला, पारसी, अरबी, संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। यहां भी वो हिन्दू परंपराओं और प्रथाओं को तर्क की कसौटी पर परखते रहे और सवाल उठाते रहे। पढ़ाई पूरी करने के बाद राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में नौकरी कर ली, यहां वे कई अंग्रेजों के संपर्क में आये। उनकी सभ्यता, सोच और तौर-तरीकों को करीब से महसूस किया। उन्होंने समझ लिया कि पश्चिमी सभ्यता विकास की प्रक्रिया में काफी आगे निकल गयी है जबकि हिन्दुस्तान इसके मुकाबले सदियों पीछे जी रहा है।

राय ने हिन्दू ग्रंथों के साथ इस्लाम एवं ईसाई धर्मों एवं ग्रंथों का भी गहराई से अध्ययन किया। उन्हें एक बात समझ आयी कि हिन्दू धर्म ग्रंथों में वो कतई नहीं लिखा है जो पोंगा पंडित, लोगों को बता रहे हैं। उन्होंने महसूस किया कि भारतीय जनमानस अपने ग्रंथों की मूलभावना से काफी अनजान है। ऐसा इसलिए था क्योंकि धर्मग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गये थे और लोगों की पहुंच से दूर थे। इसलिए उन्होंने धर्मग्रंथों का हिन्दी, बांग्ला, अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया। उन्होंने अपने अखबारों ‘संवाद कौमुदी’ और ‘मिरात-उल-अखबार’ में लेखों के जरिये आम जनमानस को जागरूक करने का प्रयास किया। राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का जनक माना जाता है। वे एक महान समाज सुधारक, विचारक एवं क्रांतिपुरुष थे, जिन्होंने 19वीं सदी में भारत में सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक सुधारों के लिए अनूठे एवं विलक्षण उपक्रम किये। उन्होंने व्यक्ति-क्रांति के साथ समाज-क्रांति करते हुए सती प्रथा, बाल विवाह और जाति व्यवस्था जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया और महिलाओं के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया।

राय का मानना था कि धार्मिक रूढ़िवादिताएं समाज की स्थिति को सुधारने के बजाय क्षति का कारण, परेशानी का स्रोत, सामाजिक जीवन के लिए हानिकारक और लोगों को भ्रमित करने वाली बन गई हैं। उनका यह भी मानना था कि बलिदान और अनुष्ठान लोगों के पापों की भरपाई नहीं कर सकते; यह आत्म-शुद्धि और पश्चाताप के माध्यम से किया जा सकता है। उन्होंने धार्मिक सुधार से सामाजिक सुधार और राजनीतिक आधुनिकीकरण दोनों का सूत्रपात किया। राय अपने समय से बहुत आगे चलने एवं सोचने वाले दूरदर्शी व्यक्तित्व थे। स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों के अंतर्राष्ट्रीय चरित्र के बारे में उनकी समझ ने आधुनिक युग के महत्त्व को बखूबी समझा। ये सिद्धांत वर्तमान ‘न्यू इंडिया’ के विचार को प्रेरित करते हैं। राय ने वर्ष 1803 मंे अपनी पहली पुस्तक ‘तुहफ़त-उल-मुवाहिदीन’ या ‘गिफ्ट टू मोनोथिस्ट’ प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने एकेश्वरवाद यानी एकल ईश्वर की अवधारणा के पक्ष में तर्क दिया है। उन्होंने अपने इस तर्क में प्राचीन हिंदू ग्रंथों के एकेश्वरवाद का समर्थन करने के लिये वेदों और पाँच उपनिषदों का बंगाली में अनुवाद किया।

वर्ष 1814 में उन्होंने मूर्तिपूजा, जातिगत रूढ़िवादिता, निरर्थक अनुष्ठानों और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाने के लिये कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की। जब उनके बड़े भाई का देहांत हो गया तो परंपरा के मुताबिक गांव वालों ने पंडितों के साथ मिलकर उनकी भाभी को सती हो जाने के लिए मजबूर किया। उन्हें मृतक के साथ उसी चिता में जिंदा जला दिया गया। इस घटना से राय बहुत दुखी हुए। उन्होंने पूरे हिन्दुस्तान में ऐसी क्रूर प्रथा को धर्म के नाम पर खुलेआम होते देखा। उन्होंने वर्ष 1818 में सती-विरोधी संघर्ष शुरू किया और पवित्र ग्रंथों का हवाला देते हुए यह साबित करने का प्रयास किया कि सभी धर्म मानवता, तर्क और करुणा की बात करते है; कोई भी धर्म विधवाओं को जिंदा जलाने का समर्थन नहीं करता है। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 1829 में सरकारी विनियमन द्वारा सती प्रथा को अपराध घोषित कर दिया गया। राय सती प्रथा के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ एक धार्मिक योद्धा थे। इससे पहले जब उनके पिता का देहांत हुआ था तब उन्होंने देखा था कि समाज विधवाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है। विधवाओें का सिर मुंडवा दिया जाता था। उन्हें रंगहीन सफेद कपड़ा पहनना पड़ता था। उन्हें बेस्वाद खाना खाने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्हें परिवार या समाज के सार्वजनिक आयोजनों से दूर रखा जाता था। इन दोनों बातों ने राममोहन राय को अंदर तक व्यथित किया।

राय ने ठान लिया कि वे भारतीय समाज के इन बुराइयों को दूर कर के रहेंगे। इसलिए उन्होंने सती प्रथा उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह कानून बनाने की मुहिम छेड़ दी। इसमें उन्हें तात्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक से खूब सहायता मिली। उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआ-छूत, अंधविश्वास और मादक द्रव्यों के इस्तेमाल के खिलाफ भी अभियान चलाया। उनके विचारों और गतिविधियों का उद्देश्य सामाजिक सुधार के माध्यम से जनता का राजनीतिक उत्थान करना था। राजा राम मोहन राय ने महसूस किया कि भारतीय युवाओं को आधुनिक शिक्षा पाने के लिए विदेशों में शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। उन्होंने इंग्लैंड भेजे जाने वाले भारतीय छात्रों का समर्थन किया और यह कहा कि पश्चिमी शिक्षा ही भारतीय समाज को आधुनिकता और प्रगति की ओर ले जा सकती है। तत्कालीन मुगल बादशाह ने उन्हें आर्थिक सहायता संबंधी किसी काम के लिए ब्रिटेन भेजा। इसी मुगल बादशाह ने उनको राजा की उपाधि भी दी।

राजा राम मोहन राय का आधुनिक शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण और उनके प्रयास भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांति लेकर आया। उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारतीय समाज को अंग्रेजी और आधुनिक विज्ञान की शिक्षा से जोड़ा और भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की। राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में आधुनिकता, तर्कशीलता और समानता की नींव रखी। उनके कार्यों ने भारतीय समाज को प्राचीन रूढ़ियों से बाहर निकालकर आधुनिक युग की ओर अग्रसर किया। वे न केवल धार्मिक सुधारक थे, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक सुधारों के भी पथप्रदर्शक थे। उनके जीवन का हर पहलू समाज सुधार, धार्मिक सहिष्णुता और समानता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »