-12 जून बालश्रम निषेध दिवस पर विशेष-
बाल श्रम अथवा बच्चों से मजदूरी कराना जघन्य ही नहीं घृणित अपराध भी है। यह अत्यंत मार्मिक और संवेदनशील विषय होने के कारण हमारे सार्वजनिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण यक्ष प्रश्न के रूप में सामने आता है। बच्चों के खेलने पढ़ने के उम्र में बच्चों को मजदूरी अथवा संपूर्ण कार्यों में लगा देना अत्यंत ही निंदनीय और घृणित कार्य है, मैं समझता हूं इसके लिए संविधान में कड़ा प्रावधान किया जाना चाहिए और ऐसे व्यक्ति को जिसने बच्चों से श्रम कराने का दुस्साहस किया है उसे कठोर सजा दिए जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए।

बाल मजदूरी का अर्थ है बच्चों से ऐसा काम कराना जो उनकी उम्र, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानसिक विकास के लिए हानिकारक हो। यह केवल एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि बच्चों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन भी है। इस विषय पर यह भी अपवाद स्वरूप कटु सत्य है कि गरीबी और अशिक्षा के कारण बच्चों के मां-बाप भी कभी-कभी बच्चों से श्रम कराने पर परिस्थितियोंवश मजबूर होते हैं। जिसके लिए सरकार और एनजीओ एवं संस्थाओं को ध्यान देकर इस पर भी सकारात्मक कार्य करने की जरूरत है।
क्यों अमानवीय है?
- 1. बचपन छीना जाता है: खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने की उम्र में जब बच्चे मजदूरी करने को मजबूर होते हैं, तो उनका मासूम बचपन खो जाता है।
- 2. शारीरिक और मानसिक शोषणः बाल मजदूरी करने वाले बच्चों को अक्सर कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। वे शोषण, हिंसा और अनदेखी के शिकार होते हैं।
- 3. शिक्षा से वंचितः मजदूरी करने की मजबूरी उन्हें स्कूल जाने से रोकती है, जिससे वे अशिक्षित रह जाते हैं और जीवन भर गरीबी के चक्र में फंसे रहते हैं।
- 4. मानवाधिकारों का हनन- हर बच्चे को सुरक्षित और सम्मानजनक बचपन का अधिकार है। बाल मजदूरी इन अधिकारों का खुला उल्लंघन है।
कानूनी कड़ाई
बाल श्रम निषेध कानूनों का कड़ाई से पालन हो।
सामाजिक जागरूकता
हर आम वह खास लोगों को यह समझना समझाना होगा कि सस्ते श्रम के लिए बच्चों का इस्तेमाल करना एक अपराध है।
सरकार और समाज का सहयोग
एनजीओ और आम जनता मिलकर इस समस्या के खिलाफ आवाज़ उठाकर इस इस गंभीर समस्या को सबके सामने लॉऐं। इस पर सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएँ महत्वपूर्ण सकारात्मक कार्य कर सकतीं हैं, तब तो निश्चित है कि बालश्रम के विरुद्ध जन जागरूकता भी आएगी और बाल श्रम के विरुद्ध माहौल बनने के बाद सभी बच्चों को समान रूप से खेलने पढ़ने के अवसर प्राप्त हो सकेंगे
“बाल मजदूरी केवल एक सामाजिक दोष नहीं, एक नैतिक अपराध है।” इसे रोकना हर नागरिक का कर्तव्य है, ताकि हर बच्चा एक खुशहाल, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सके।अंत में परिस्थितिजन्य बाल श्रम में झोंक दिए गए बच्चों के लिए एक अत्यंत ही मार्मिक कविता पेश करता हूं, जो निम्न है-
मैं भी बच्चा हूँ, सपना मेरा भी है
छोटे-छोटे हाथों में, क्यों बोझ थमाया जाता है?
खिलौनों की जगह, औज़ार क्यों पकड़ाया जाता है?
ना स्कूल की घंटी सुनता, ना छुट्टी की साँसें लेता,
हर सुबह उस चाय की दुकान पर, मैं सपना बेचता रहता।
धूप जले, या बारिश गिरे, काम मुझे करना होता है,
मासूम दिल का दर्द न कोई समझता, न कोई रोता है।
माँ कहती थी पढ़-लिखकर तू एक दिन अफ़सर बन जाएगा,
पर किस्मत ने तो जैसे मुझे मजदूर ही लिखा बताया।
मैं भी हँसना चाहता हूँ, खेलना मुझे भी आता है,
पर पेट की भूख, बचपन को हर दिन तौल के खाता है।
क्यों छीन रहे हो मुझसे, ये जीवन का प्यारा रंग?
क्या मेरा कोई हक़ नहीं है, क्या मैं हूँ इतना तंग?
अब जागो ऐ समाज के लोगों, ये अन्याय अब सहा न जाए,
बाल मजदूरी रोको सब मिलकर, बच्चों का बचपन लौटाएं।।
