धन धान्य पर्यावरण कल्याण की मंगल भावना से परिपूर्ण भोजली

-10 अगस्त भोजली पर्व पर विशेष-

रक्षाबंधन के ठीक दूसरे दिन पड़ने वाले इस पर्व को छत्तीसगढ़ की महिलायें विशेष उत्साह के साथ मनाती हैं। छत्तीसगढ़ में भोजली का अर्थ देवी से लिया जाता है। ये भोजली गाँव व किसान के घरों में पूरी उमंगता और उल्लास के रुप में मनाया जाता है। इस पर्व के पूर्व  पड़ने वाले नागपंचमी पर्व के दूसरे दिवस से ही महिलायें व लड़कियाँ अपने अपने घरों में गेहूँ या ज्वार को अपनी मन्नत के अनुसार टोकनी थाली, गंज, परई या जमीन में अंकुरण के लिए बो  देती हैं।

भोजली पर्व के आते आते ये अंकुरित पौधे बढ़ चुके होते हैं। फिर भोजली पर्व के दिन इन पौधों (भोजली) की पूजा की जाती है। घर के लोग प्रातः से ही स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनकर पूजा अनुष्ठान को संपन्न करते हैं। इसके लिये सबसे पहले भोजली में जल चढ़ाया जाता है। फिर बंदन, रोली, सिंदूर, हल्दी से भोजली का अभिषेक किया जाता है। इसके पश्चात फूल, हल्दी लगा चांवल (अक्षत), कोई मौसमी फल और नारियल खासतौर पर चढ़ाया जाता है। अपनी सामर्थ्यानुसार उमंग और उल्लास व्यक्त करने के लिये अधिकांश घरों में पकवान भी बनाये जाते हैं।

 दोपहर के बाद घर में सभी पूजा अनुष्ठानों को सम्पन्न करने के उपरांत सभी महिलायें लड़कियाँ अपने- अपने घरों से भोजला देवी को सर पर रखकर गाँव के प्रमुख स्थान पर एकत्र होकर कतारबद्ध हो भोजली गीत गाते नदीतालाब तक जाती हैं। इस समय महिलायें खूब उल्लास और गाजा बाजा के साथ जलाशय तट पर पहुँचती हैं। नदी या तालाब में पहुँचने के बाद सभी भोजली के पात्रों को किनारे स्वच्छ स्थान पर रख देती हैं और पुनः वहाँ भी दीप जलाकर उनकी आरती एवं पूजा करती हैं एवं नारियल फोड़ती हैं। इसके बाद भोजली के कुछ पौधों को रखकर सभी पौधों को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। नदी तट से वापस भोजली लेकर लौटती महिलाओं का दल कतार में वापस लौटता है। इस हुजूम को “भोजली गंगा” कहते हैं। भोजली के पौधों को आपस में आदान प्रदान कर लोग एक दूसरे की कुशलता एवं सम्पन्नता के लिये शुभकामनाएँ देते चलते हैं। 

      इसी भोजली देवी को कुछ लोग आपस में अदल बदल कर गियां(मितान) बदले हैं। इसके अनुसार इनकी दोस्ती या संबंध इतना अटूट माना जाता। “कि खून के रिश्ते भले ही टूट जायें पर ‘भोजली में बदे गये मितान के साथ के रिश्ते कभी भी नहीं तोड़े जाते । इस पर लोगों की आस्था अनंत है। यह रिश्ता भी इसका विशेष  महत्व बढ़ाता है। 

       भोजली के पौधों को लोग अपने घर के सभी स्वच्छ स्थानों में सभी कोनों में रख देते हैं और यह प्रार्थना करते. हैं कि हमेशा घर में खुशियाँ कायम रहे एवं घर हराभरा रहे। वस्तव में देखा जाय तो भोजली सुख समृद्धि की कामना और खेती की उपज (पैदावार) खूब अच्छी हो इस इच्छा को पूरा करने के लिये मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ का यह प्रमुख त्यौहार है । बिलासपुर शहर में भी किलावार्ड के पचरीघाट में आज के दिन भोजली गंगा में महिलाओं का विशाल हुजूम और उनक उल्लास देखते ही बनता है। इस समय यहाँ पैर रखने को जगह नहीं मिलता। किलावार्ड चौक में अच्छा खासा मेला भी भरता है जहाँ खेल खिलौने और भूले आते हैं। तरह तरह के खाने-पीने के स्टाल लगे होते हैं। इस मेले में महिलायें बच्चे विशेषकर पहुँचते हैं। और इस भोजली पर्व के  उत्साह और उमंग को दुगना करते हैं।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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