26 अगस्त तीज पर्व
भारतीय परंपरा में महिलाओं के लिये तीज का व्रत सबसे अहम व्रत माना जाता है। भारतीय महिलायें चाहे वह विवाहित हों या कुंवारी कन्यायें यह व्रत सर्वगुण संपन्न पति की कामना और उसकी सुरक्षा कुशलता के लिये रखती हैं। इस व्रत के प्रति प्रायः सारे भारत वर्ष की महिलायें काफी सजग रहकर व्रत का नियम पूर्वक पालन करती हैं। तीजा व्रत महिलायें पूरे तन मन धन से मनोयोग रखती हैं। उनकी आस्था का इससे ज्याद और क्या प्रमाण मिलेगा कि वे इस दिन जल तो क्या गले का थूक भी नहीं गटकती है कि कहीं व्रत भंग ना हो जाए।
मान्यता चली आ रही है कि तीजा व्रत रखने वाली महिला भादो माह के हस्त नक्षत्र युक्त शुक्ल तृतीया को मात्र इसका अनुष्ठान करने से ही सब पापों से मुक्त हो जाती है। तीज पर्व के दिन सुहागिन महिलाएं या कुंवारी कन्यायें जो यह व्रत रखती हैं वे सारे दिन निर्जला उपवास रख कर रात्रि होते ही पूजापाठ की तैयारियों में लग जाती हैं। संध्या के बाद वे पूरा श्रृंगार कर पूजा पाठ करती हैं। फिर रतजगा कर एक जगह इकट्टा होकर महिलाएं भजन कीर्तन करती हैं। कई घरों में “फुलहरा” रखा जाता है यह फूलहरा भी एक प्रकार के पूजा की विधि है जिसे एक बार उठा लेने से जीवन भर इसे निभाना होता है। फुलहरा रखने वाली महिला पूजास्थल में जोत कलश रखती हैं, जिसे रातभर सजगता से जलाना होता है। इसे बुझना नहीं चाहिये, वरन अशुभ माना जाता है। पूराव्रत निरर्थक हो जाता है।
तीज व्रत का प्रारंभ धार्मिक व सर्वमान्यतानुसार पार्वती के द्वारा भगवान शंकर को ही जन्म जन्मांतर तक अपने पतिरूप में पाने की कामना से किये गये व्रत से माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि यह व्रत जो भी स्त्री पूरे नियम से रखकर पूर्ण करेगी, उसे भी मां पार्वती के समान ही सुख व मनोवांछित वर प्राप्त होता है। माना जाता है कि पार्वती जी ने शंकर भगवान को पतिरुप में पाने के लिये घनघोर तपस्या की थी। पार्वती ने बाल्यावस्था से ही हिमालय पर्वत पर कई वर्षों तक उलटे टंगकर केवल धुंवा पीकर तप किया। चौंसठ वर्ष तक सूखे पत्ते खाये। माघ मास में जलासन रखा वैशाख की दुपहरिया में पंचाग्नि तापती रहीं। सावन में भूखी प्यासी रहकर कठोर तप किया। पार्वती का ऐसा दुःसह्य तपस्या देखकर उनके पिता महाराज बहुत चिंतित रहने लगे।

