डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय दर्शन और संस्कृति के ऐसे महान दार्शनिक, शिक्षक और राजनेता रहे हैं जिन्होंने अपने विचारों और कार्यों से पूरे विश्व में भारत की पहचान स्थापित की। उनका जीवन केवल शिक्षा और राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति की आत्मा को पश्चिमी जगत में प्रस्तुत कर उसे मान्यता दिलाई। उनके जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना इस बात का प्रतीक है कि वह सदैव एक शिक्षक के रूप में स्मरणीय रहेंगे। उन्हीं के जीवन और विचारों पर केंद्रित पुस्तक “एस. राधाकृष्णन: व्यक्तित्व और कृतित्व” का दूसरा संस्करण डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिसकी लेखिका डॉ. ममता आनंद हैं। यह पुस्तक राधाकृष्णन के जीवन, दर्शन और उनके विचारों की आज की परिस्थितियों में प्रासंगिकता को अत्यंत प्रभावी शैली में प्रस्तुत करती है।
डॉ. ममता आनंद स्वयं एक विदुषी शिक्षाविद् और शोधकर्ता हैं। वह जबलपुर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी डिजाइन एंड मैन्यूफैक्चरिंग में अंग्रेजी विभाग की प्रमुख हैं और 2008-09 में उन्हें फुलब्राइट फेलोशिप के तहत हार्वर्ड तथा कोलगेट विश्वविद्यालय में शोध का अवसर मिला। उन्होंने राल्फ वाल्डो इमर्सन और डॉ. राधाकृष्णन पर गहन अध्ययन किया और इसके लिए उन्हें इमर्सन सोसाइटी, वाशिंगटन डीसी से अंतरराष्ट्रीय शोध पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। उनके इस अनुभव और गहनता का प्रतिबिंब इस पुस्तक में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

यह पुस्तक केवल जीवनी भर नहीं है, बल्कि एक दार्शनिक यात्रा है जिसमें राधाकृष्णन के जीवन-दर्शन और विचारों को साहित्यिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया गया है। राधाकृष्णन का मानना था कि भारतीय संस्कृति की आत्मा नैतिकता और आध्यात्मिकता में निहित है। उन्होंने पश्चिमी समाज को यह समझाया कि भारतीय परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठानों का समूह नहीं, बल्कि मानवता और सहयोग पर आधारित एक सार्वभौमिक संस्कृति है। लेखिका ने इन्हीं विचारों को इस पुस्तक में अत्यंत सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है। विशेष रूप से महिलाओं की स्थिति पर आधारित अध्याय इस संस्करण की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसमें राधाकृष्णन के दृष्टिकोण को आज की सामाजिक चुनौतियों से जोड़ते हुए दिखाया गया है कि महिलाएं ही समाज को नैतिक शक्ति और नई दिशा देने में सक्षम हैं। उन्होंने गीता से यह उद्धरण दिया है कि स्त्रियों में स्मृति, मेधा, धैर्य और वाणी जैसे गुण भगवान का ही स्वरूप हैं।
भारत सहित पूरी दुनिया में आज जब महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और समानता का प्रश्न गंभीर चिंता का विषय है, तब राधाकृष्णन के विचार अत्यंत प्रासंगिक हो उठते हैं। घटते लिंगानुपात, बढ़ते अपराध और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं पर ध्यान दिलाते हुए यह पुस्तक स्पष्ट करती है कि महिलाओं की उपेक्षा केवल उनके ही विकास को नहीं रोकती, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र की प्रगति को बाधित करती है। राधाकृष्णन का यह कथन कि पुरुष और महिला प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि पूरक हैं, आज की परिस्थितियों में एक मार्गदर्शक सत्य के रूप में उभरता है।
पुस्तक की शैली इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। लेखिका ने दार्शनिक चिंतन को सरल, स्पष्ट और आकर्षक भाषा में प्रस्तुत किया है। गहन विचारों को भी उन्होंने साहित्यिक प्रवाह में ढालकर पाठकों के लिए सहज बना दिया है। कहीं भी यह ग्रंथ बोझिल नहीं लगता, बल्कि पाठक को निरंतर आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। यह न केवल दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों और साहित्य प्रेमियों के लिए उपयोगी है, बल्कि सामान्य पाठक के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने राधाकृष्णन के विचारों को वर्तमान समय के संदर्भ में पुनः जीवित कर दिया है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि हिंसा, असमानता और प्रतिस्पर्धा की भावना से मानव समाज कभी भी शांति और प्रगति की ओर नहीं बढ़ सकता। इसके विपरीत, सहयोग, आत्मज्ञान और नैतिक मूल्यों पर आधारित जीवन ही हमें सच्चे अर्थों में आगे ले जा सकता है। पुस्तक में जोड़े गए नए अध्याय “विचार और आदर्श: एक रचनात्मक क्वांटम” ने इसकी महत्ता और भी बढ़ा दी है और पाठकों को यह सोचने पर विवश किया है कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है।
पुस्तक के माध्यम से पाठक को यह अनुभव होता है कि राधाकृष्णन की शिक्षाएँ केवल बीते युग की बातें नहीं हैं, बल्कि वे आज के समय में भी उतनी ही सार्थक हैं। उनका यह विश्वास कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि व्यक्ति को बेहतर इंसान बनाना है, हमारे लिए आज भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना उनके समय में था। उनकी यह चेतावनी कि यदि हम नैतिकता और आध्यात्मिकता से विमुख हो जाएंगे तो सभ्यता का पतन अनिवार्य है, आज की परिस्थितियों में एक चेतावनी की तरह सुनाई देती है।
समग्र रूप से देखा जाए तो “एस. राधाकृष्णन: व्यक्तित्व और कृतित्व” एक ऐसी पुस्तक है जो दार्शनिक चिंतन, साहित्यिक सौंदर्य और सामाजिक प्रासंगिकता—तीनों का अद्भुत संगम है। यह केवल विद्वानों या अध्येताओं के लिए नहीं, बल्कि उन सभी पाठकों के लिए है जो जीवन के सही अर्थ और उद्देश्य की खोज करना चाहते हैं। डॉ. ममता आनंद की यह कृति न केवल राधाकृष्णन की दार्शनिक विरासत को संरक्षित करती है, बल्कि उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाकर और भी प्रासंगिक बना देती है।
यह पुस्तक हमें यह सिखाती है कि जीवन का सार आत्मज्ञान, नैतिकता और सहयोग में छिपा है। हिंसा और भेदभाव से मुक्त होकर जब हम अपने सच्चे आत्म के आधार पर समाज और राष्ट्र का निर्माण करेंगे, तभी वास्तविक विकास संभव होगा। यह ग्रंथ हर उस व्यक्ति को पढ़ना चाहिए जो यह समझना चाहता है कि भारतीय दर्शन और संस्कृति का मूल संदेश क्या है और आज के समय में उसे किस प्रकार अपनाया जा सकता है।
पुस्तक: एस. राधाकृष्णन: व्यक्तित्व और कृतित्व
लेखिका: ममता आनंद
प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स


