मातृत्व का अपमानः बिहार की राजनीति पर असर

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की माताजी के संबंध में कांग्रेस और राजद के मंच से जो अभद्र व अशालीन शब्द कहे गए, उसने न केवल राजनीतिक वातावरण को कलंकित किया है, बल्कि पूरे देश की संवेदनाओं को भी आहत किया है। भारत में माँ केवल एक परिवार की सदस्य नहीं होती, वह मातृत्व का प्रतीक है, करुणा और संस्कार की धारा है, जीवन की प्रथम शिक्षिका है। किसी भी माँ के लिए अपमानजनक टिप्पणी वस्तुतः संपूर्ण मातृत्व का अपमान है। इसलिए जब किसी दल के नेता राजनीतिक आग्रहों एवं दुराग्रहों के चलते प्रधानमंत्री की माताजी को अपशब्द कहते हैं, तो यह प्रधानमंत्री पर नहीं बल्कि हर उस भारतीय पर चोट करता है, जिसने अपनी माँ को श्रद्धा और सम्मान के उच्चतम स्थान पर रखा है, यह भारतीय संस्कृति एवं तहजीब का भी अपमान है। यही कारण है कि यह घटना केवल राजनीतिक विवाद नहीं रही, यह एक सामाजिक-नैतिक प्रश्न बन गई है। नेताओं को यह बात समझनी चाहिए कि सही तरीके से बोले गए शब्दों में लोगों को जोड़ने की ताकत होती है, जबकि गलत भाषा एवं बोल का इस्तेमाल राजनीतिक धरातल को कमजोर करता है।

बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, विपक्षी नेताओं की ज़ुबान फिसलती जा रही है, वे राजनीति से इतर नेताओं की निजी ज़िंदगियों में तांक-झांक वाले, धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले ऐसे बोल बोल रहे हैं, जो न सिर्फ़ आपत्तिजनक हैं, बल्कि राष्ट्र-तोड़क एवं जनभावनाओं को आहत करने वाले है। प्रधानमंत्री मोदी को नीचा दिखाने के मकसद से ये नेता मर्यादा, शालीनता और नैतिकता की रेखाएं पार करते नज़र आए हैं। गलत का विरोध खुलकर हो, राष्ट्र-निर्माण के लिये अपनी बात कही जाये, अपने राजनीतिक मुद्दों को भी प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाये, लेकिन गलत, उच्छृंखल एवं अनुशासनहीन बयानों की राजनीति से बचना चाहिए।

बड़ा सवाल है कि एक ऊर्जावान एवं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में क्या वाकई अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल औचित्यपूर्ण है? लोकतंत्र में असहमति होना स्वाभाविक है। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की नीतियों की आलोचना करना विपक्ष का अधिकार ही नहीं, उसका दायित्व भी है। परंतु आलोचना और अभद्रता में बहुत बड़ा अंतर है। जब राजनीतिक संवाद विचारों, नीतियों और कार्यक्रमों से हटकर व्यक्तिगत और पारिवारिक अपमान तक पहुँच जाता है, तब लोकतंत्र की आत्मा पर आघात होता है। विपक्ष को सरकार की योजनाओं, उसकी कमियों या विफलताओं पर सवाल उठाने चाहिए, लेकिन यदि वे प्रधानमंत्री की माँ को निशाना बनाएंगे, तो जनता इसे राजनीतिक परिपक्वता की कमी, विकृत राजनीति और हताशा का प्रतीक ही मानेगी।

इतिहास साक्षी है कि जब-जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गाली-गलौज की गई है, तब-तब यह उनके लिए सहानुभूति और समर्थन का कारण बना है। 2014 के लोकसभा चुनाव के समय से ही अनेक अवसर आए, जब कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों ने मोदी पर अशालीन एवं अभद्र टिप्पणियां की हैं लेकिन विपक्षी नेताओं ने अब सारी हदें लांघते हुए उन पर राजनीतिक छिद्रान्वेषण से हटकर व्यक्तिगत हमले करके, उनकी पृष्ठभूमि और उनके परिवार को लेकर अपमानजनक शब्द कह कर राजनीतिक मर्यादाओं का हनन किया है। लेकिन हर बार जनता ने इसका उत्तर मोदी के पक्ष में समर्थन देकर दिया। 2019 के आम चुनाव में भी जब अपशब्दों की बाढ़ आई, तो मोदी और भी सशक्त होकर सामने आए। जनता ने मानो यह संदेश दे दिया कि जो व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत गरिमा और पारिवारिक मर्यादा का स्वयं उत्तर नहीं देता, बल्कि मौन रहकर केवल अपने राष्ट्र विकास के कार्यों से जवाब देता है, वही उनकी सहानुभूति का अधिकारी है। यही कारण है कि मोदी पर गाली की हर चोट उनके समर्थन को और व्यापक बना देती है। मोदी को कोई भी गाली कभी भी कमजोर नही ंकर सकती।

भारतीय मतदाता भावनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। वह केवल तर्क और आँकड़ों से प्रभावित नहीं होता, बल्कि उसके निर्णय में संवेदनाएँ और संस्कार भी बराबरी से भूमिका निभाते हैं। प्रधानमंत्री की माता जी पर की गई टिप्पणी ने इस संवेदनशीलता को झकझोर दिया है। भारतीय समाज के लिए माँ केवल परिवार की धुरी नहीं है, बल्कि राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक भी है। इसीलिए जब माँ पर आघात हुआ, तो जनता ने इसे मोदी के परिवार का नहीं बल्कि अपने परिवार का अपमान माना। यह भावनात्मक जुड़ाव विपक्ष की रणनीति को उल्टा कर देता है और मोदी के लिए जनसमर्थन का कारण बन जाता है। भारतीय राजनीति में स्तरहीन, हल्की और सस्ती बातें कहने का चलन काफी समय से है।

लेकिन पिछले दो दशकों में यह वीभत्स रूप धारण कर चुका है। एक समय राम मनोहर लोहिया ने इंदिरा गांधी को केवल गूंगी गुड़िया कहा था तो काफी विवाद हुआ और बड़ी तादाद में लोगों ने लोहिया का विरोध किया। लेकिन आज कांग्रेस मोदी के खिलाफ काफी कुछ बोल चुकी हैं, कभी रावण तो कभी नीच, कातिल, शैतान, मौत का सौदागर जैसे शब्दों का खुलेआम इस्तेमाल किया है। जिसमें उनकी हताशा साफ झलकती है। कड़वे एवं गलत बयानी के मामले में कांग्रेसियों की तो लम्बी सूची है। चाहे सानिया हो या राहुल, चाहे वह अधीर रंजन हों या दिग्विजय सिंह या फिर संजय निरुपम, खडगे और प्रियंका गांधी। इन नेताओं ने बेहद हल्के शब्दों का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी खीझ एवं बौखलाहट का पता चलता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि मोदी और उनकी पार्टी ने ऐसे अमर्यादित शब्दों और टिप्पणियों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया। नरेन्द्र मोदी को चाय वाला कहकर उनका उपहास उड़ाने वाले विपक्षियों को तो उन्होंने अपने कार्यों और उपलब्धियों से आईना दिखा दिया। आज चाय वाला शब्द मेहनतकश लोगों के सम्मान का प्रतीक बन गया है।

बिहार के चुनावी परिदृश्य पर इस घटना का गहरा असर पड़ना स्वाभाविक है। यहाँ की राजनीति पहले से ही जातीय समीकरणों, आर्थिक पिछड़ेपन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों में उलझी हुई है। विपक्ष अपने लिए जगह बनाने के लिए संघर्षरत है, परंतु वह जनता को कोई ठोस और विश्वसनीय विकल्प देने में असफल रहा है। ऐसे में जब उसके नेता अभद्रता पर उतर आते हैं, तो जनता का विश्वास और भी कम हो जाता है। वह सोचने लगती है कि जिन नेताओं के पास शब्दों की गरिमा और तर्क का बल नहीं है, वे शासन और प्रशासन की मर्यादा कैसे संभालेंगे? इसीलिए बिहार की जनता ऐसी अभद्रता का समर्थन नहीं करेगी और इसका सीधा असर विपक्ष की चुनावी संभावनाओं पर पड़ेगा। यह भी एक गहन प्रश्न है कि विपक्ष आखिर किस हद तक गिरेगा? क्या लोकतंत्र अब केवल गाली-गलौज और व्यक्तिगत अपमान तक सीमित रह जाएगा? क्या राजनीति में विचारों और सिद्धांतों की जगह अब विकारों और अशालीनता ने ले ली है? यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है।

प्रधानमंत्री मोदी पर गाली-गलौज की हर घटना उनके व्यक्तित्व को और दृढ़ बनाती है। वे स्वयं बार-बार कहते रहे हैं कि उन्हें जितनी गालियाँ मिलेंगी, वे उतनी ही शक्ति से देश सेवा में लगेंगे। उनके इस धैर्य और संयम ने उन्हें जनता के बीच एक अलग पहचान दी है। जनता यह अनुभव करती है कि जो व्यक्ति व्यक्तिगत अपमान को भी सह लेता है, लेकिन जनता की सेवा से विचलित नहीं होता, वही सच्चा नेतृत्वकर्ता है। यही कारण है कि उनके विरोधियों की अभद्रता अंततः उन्हीं पर भारी पड़ती है। विपक्ष को यह समझना होगा कि लोकतंत्र में सफलता केवल आलोचना से नहीं मिलती, बल्कि वैकल्पिक नीतियों और रचनात्मक दृष्टि से मिलती है। केवल मोदी विरोध करना ही राजनीति का उद्देश्य नहीं हो सकता।

जनता को चाहिए कि विपक्ष विकास की कोई ठोस योजना प्रस्तुत करे, रोजगार और शिक्षा की स्थिति सुधारने का मार्ग दिखाए, स्वास्थ्य और किसान समस्याओं पर गंभीरता से बात करे। यदि वे यह सब नहीं कर सकते और केवल गाली-गलौज की राजनीति करेंगे, तो उनका हश्र वही होगा जो बार-बार होता आया है। जनता उन्हें नकार देगी और उनके अपशब्द मोदी के लिए समर्थन की नई ऊर्जा बनेंगे। यदि विपक्ष अपनी भाषा और व्यवहार पर संयम नहीं रखेगा, तो न केवल उसकी साख गिरेगी बल्कि लोकतंत्र की प्रतिष्ठा भी आहत होगी।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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