1965 के युद्ध की हीरक जयंती: रक्षा मंत्री ने 60 वर्ष पूर्व पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में युद्ध नायकों के परिवारों और पूर्व सैनिकों से परस्‍पर बातचीत की

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 19 सितंबर, 2025 को वर्ष 1965 के युद्ध के वीर सैनिकों और शहीद नायकों के परिवारों के साथ परस्‍पर बातचीत की। यह कार्यक्रम भारतीय सेना द्वारा नई दिल्ली के साउथ ब्लॉक में साठ वर्ष पूर्व पाकिस्तान पर भारत की विजय की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। रक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में कर्तव्य पथ पर सर्वोच्च बलिदान देने वाले और शक्ति परीक्षण में भारत की विजय सुनिश्चित करने वाले वीरों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान ने सोचा था कि वह घुसपैठ, गुरिल्ला रणनीति और आश्चर्यजनक हमलों के माध्यम से हमें भयभीत कर सकता है, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि प्रत्येक भारतीय सैनिक इस भावना के साथ मातृभूमि की सेवा करता है कि राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा।”

श्री राजनाथ सिंह ने युद्ध के दौरान लड़ी गई विभिन्न लड़ाइयों, जिनमें असल उत्तर की लड़ाई, चाविंडा की लड़ाई और फिलोरा की लड़ाई शामिल हैं, में भारतीय सैनिकों द्वारा प्रदर्शित अद्वितीय वीरता और देशभक्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने परमवीर चक्र विजेता कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद के अदम्य साहस और वीरता का विशेष उल्लेख किया, जिन्होंने असल उत्तर की लड़ाई के दौरान मशीन गन और टैंक की गोलाबारी की निरंतर बौछार के बीच शत्रु के असंख्य टैंकों को नष्ट करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उन्होंने कहा, “हमारे बहादुर अब्दुल हमीद ने हमें सिखाया कि वीरता हथियार के आकार पर नहीं, बल्कि हृदय के आकार पर निर्भर करती है। उनकी वीरता हमें सिखाती है कि सबसे कठिन परिस्थितियों में भी, साहस, संयम और देशभक्ति का मेल असंभव को भी संभव बना सकता है।”

रक्षा मंत्री ने उस समय की राजनीतिक इच्छाशक्ति और नेतृत्व को भी श्रेय देते हुए कहा, “कोई भी युद्ध केवल युद्धभूमि पर नहीं लड़ा जाता; युद्ध में विजय पूरे राष्ट्र के सामूहिक संकल्प का परिणाम होती है। 1965 के उस दौर में, लाल बहादुर शास्त्री जी के दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेतृत्व के कारण ही भारत अनिश्चितताओं और चुनौतियों का डटकर सामना कर पाया। उन्होंने न केवल निर्णायक राजनीतिक नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि पूरे राष्ट्र का मनोबल भी ऊँचाइयों तक पहुँचाया। विपरीत परिस्थितियों में भी, हमने एकजुटता का परिचय दिया और युद्ध जीता। “

श्री राजनाथ सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि भारतीयों ने बार-बार यह साबित किया है कि देश अपना भाग्य स्वयं रचता है। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को इस दृढ़ संकल्प का एक ज्वलंत उदाहरण बताया । उन्होंने कहा, “पहलगाम में हुआ कायराना आतंकवादी हमला आज भी हमारे दिलों में पीड़ा और शोक भर देता है। इसने हमें झकझोर दिया, लेकिन हमारा मनोबल नहीं तोड़ा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवादियों को ऐसा सबक सिखाने का संकल्प लिया जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। ऑपरेशन सिंदूर ने हमारे शत्रुओं को दिखा दिया कि हम कितने शक्तिशाली हैं। जिस समन्वय और साहस के साथ हमारे बलों ने इस ऑपरेशन को फलीभूत किया, वह इस बात का प्रमाण है कि जीत अब हमारे लिए कोई अपवाद नहीं है; यह हमारी आदत बन गई है। हमें इस आदत को हमेशा बनाए रखना चाहिए।

रक्षा मंत्री ने सेवारत सैनिकों, पूर्व सैनिकों और शहीदों के परिवारों के सम्मान और कल्याण के प्रति सरकार के अटूट संकल्प को दोहराया और इसे “सर्वोच्च प्राथमिकता” बताया। उन्होंने कहा, “रक्षा आधुनिकीकरण, सैनिकों के बेहतर प्रशिक्षण और उपकरणों के उन्नयन के हमारे संकल्प का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सेनाओं को कभी भी संसाधनों की कमी का सामना न करना पड़े।”

इस कार्यक्रम में थल सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी, पश्चिमी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार, दिल्ली क्षेत्र के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल भवनीश कुमार, अन्य वरिष्ठ सेवारत अधिकारी, सम्मानित पूर्व सैनिक, वीरता पुरस्कार विजेता और 1965 के युद्ध नायकों के परिवार के सदस्य उपस्थित थे।

अपने स्वागत भाषण में, लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने 1965 के युद्ध में पश्चिमी कमान की भूमिका पर एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत किया, जिसमें परिचालन चुनौतियों और विजयों पर प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर एक विशेष रूप से तैयार की गई वृत्तचित्र फिल्म भी दिखाई गई, जिसमें असल उत्तर, अखनूर और खेमकरण जैसी महत्वपूर्ण लड़ाइयों में सैनिकों के वीरतापूर्ण कार्यों को याद किया गया।

युद्ध में शामिल पूर्व सैनिकों ने अपने अनुभवों में और भी गहराई लाते हुए, अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए। लेफ्टिनेंट जनरल सतीश के. नांबियार (सेवानिवृत्त) ने रणनीतिक विचार प्रस्तुत किए, जबकि वीर चक्र विजेता मेजर आरएस बेदी (सेवानिवृत्त) ने युद्ध के मैदान की अपनी रोमांचक कहानी सुनाई, जिसमें भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और दृढ़ता का उदाहरण प्रस्तुत किया गया।

यह समारोह 1965 के युद्ध के दौरान किए गए बलिदानों की एक सशक्त याद दिलाता है तथा भावी पीढ़ियों को साहस, बलिदान और स्वयं से पहले सेवा के स्थायी मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।

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