बढ़ते जल संकट और मीठे पानी की कमी के बीच भारतीय वैज्ञानिकों ने समुद्री जल को पेयजल में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि हासिल की है। भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा विकसित एक नवीन साइफन-आधारित तापीय विलवणीकरण प्रणाली अब खारे समुद्री जल को अधिक तेज़ी, कम लागत और उच्च दक्षता के साथ मीठे पानी में परिवर्तित कर सकती है। यह प्रणाली पारंपरिक तरीकों की तुलना में न केवल अधिक प्रभावी है बल्कि इसका रखरखाव भी सरल है, जो जल संकट झेल रहे क्षेत्रों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है।

पारंपरिक सौर स्टिल की सीमाएं
जल शोधन के पारंपरिक सौर स्टिल, जो प्रकृति के जल चक्र की नकल करते हैं, लंबे समय से एक साधारण और सस्ती तकनीक के रूप में उपयोग किए जाते रहे हैं। हालांकि, इन पारंपरिक प्रणालियों को दो प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ता है –
- नमक का जमाव (Salt Crystallization): वाष्पीकरण सतह पर नमक की परत जमने से जल प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और प्रणाली की दक्षता घट जाती है।
- स्केलिंग सीमाएं (Wicking Limitations): विकिंग सामग्री की जल उठाने की क्षमता केवल 10–15 सेंटीमीटर तक सीमित होती है, जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादन असंभव हो जाता है।
इन दोनों चुनौतियों के कारण पारंपरिक सौर स्टिल बड़े पैमाने पर विलवणीकरण के लिए व्यावहारिक नहीं हो पाते।
साइफन सिद्धांत से समाधान
IISc के वैज्ञानिकों ने इन समस्याओं के समाधान के लिए एक अत्यंत सरल लेकिन प्रभावशाली सिद्धांत – साइफनेज (Syphonage) – का उपयोग किया है।
नई प्रणाली के केंद्र में एक मिश्रित साइफन (Hybrid Syphon) है, जिसमें एक विशेष कपड़े की बत्ती को एक नालीदार धातु की सतह से जोड़ा गया है। यह कपड़ा खारे पानी के जलाशय से पानी को ऊपर खींचता है और गुरुत्वाकर्षण के कारण एक निरंतर और अवरोधहीन प्रवाह बनाए रखता है।

नमक को सतह पर जमने देने के बजाय, साइफन उसे क्रिस्टलीकरण से पहले ही बहा देता है। इस प्रकार प्रणाली स्वयं-सफाई (self-cleaning) की क्षमता रखती है और नमक जमा होने की समस्या लगभग समाप्त हो जाती है।
तकनीक का कार्य सिद्धांत
बहुस्तरीय साइफन विलवणीकरण प्रणाली में पानी एक गर्म धातु सतह पर एक पतली परत के रूप में फैलाया जाता है। वहां यह तेजी से वाष्पित होता है और केवल दो मिलीमीटर दूर स्थित ठंडी सतह पर संघनित होकर मीठे पानी के रूप में एकत्रित हो जाता है।

इस अति-संकीर्ण वायु अंतराल के कारण ऊष्मा का न्यूनतम अपव्यय होता है और ऊर्जा दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप, यह प्रणाली सूर्य के प्रकाश में प्रति वर्ग मीटर प्रति घंटे छह लीटर से अधिक स्वच्छ पानी उत्पन्न कर सकती है — जो पारंपरिक सौर स्टिल्स की तुलना में कई गुना अधिक है।
इसके अतिरिक्त, बहुविध वाष्पीकारक-कंडेंसर इकाइयों को श्रृंखलाबद्ध रूप से जोड़कर ऊष्मा को बार-बार पुन: उपयोग किया जाता है, जिससे सूर्य की प्रत्येक किरण से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
सस्ती, टिकाऊ और व्यापक उपयोग वाली तकनीक
यह साइफन-आधारित प्रणाली अपनी संरचना में भी क्रांतिकारी है। इसमें केवल एल्यूमीनियम और कपड़े जैसी सरल और सस्ती सामग्रियों का उपयोग किया गया है, जिससे इसकी लागत कम और टिकाऊपन अधिक हो जाता है।
यह प्रणाली सौर ऊर्जा या औद्योगिक अपशिष्ट ऊष्मा दोनों पर चल सकती है, जिससे इसे ऑफ-ग्रिड समुदायों, आपदा प्रभावित क्षेत्रों और शुष्क तटीय इलाकों में आसानी से तैनात किया जा सकता है।
विशेष रूप से उल्लेखनीय यह है कि यह प्रणाली 20 प्रतिशत तक नमक वाले अत्यधिक खारे पानी के साथ भी प्रभावी ढंग से कार्य कर सकती है। पारंपरिक प्रणालियों में इतनी अधिक नमक सांद्रता पर काम करना लगभग असंभव होता है।
प्रयोगशाला से वास्तविक परिस्थितियों तक
IISc की टीम ने इस प्रणाली का सफल परीक्षण प्रयोगशाला और वास्तविक बाहरी परिस्थितियों दोनों में किया है। बहुस्तरीय साइफन विलवणीकरण प्रणाली के प्रोटोटाइप ने विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में भी उच्च दक्षता और स्थिर प्रदर्शन प्रदर्शित किया।
जल संकट समाधान की दिशा में बड़ा कदम
यह शोध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘Desalination’ में प्रकाशित हुआ है और इसे भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा समर्थित किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक आने वाले वर्षों में जल संकट से जूझ रहे करोड़ों लोगों को स्वच्छ पेयजल प्रदान करने में मदद कर सकती है।
छोटे गांवों से लेकर द्वीपीय राष्ट्रों तक, जहां मीठे पानी के स्रोत सीमित हैं, यह प्रणाली समुद्र को एक विश्वसनीय और सतत पेयजल स्रोत में बदलने की क्षमता रखती है।
अनुसंधानकर्ताओं का दृष्टिकोण
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, इस नवाचार की सबसे बड़ी विशेषताएं हैं –
- व्यापकता (Scalability): प्रणाली को छोटे घरेलू उपयोग से लेकर बड़े औद्योगिक संयंत्रों तक आसानी से अनुकूलित किया जा सकता है।
- नमक प्रतिरोध (Salt Resistance): उच्च सांद्रता वाले खारे पानी के साथ भी इसकी कार्यक्षमता बनी रहती है।
- सरलता (Simplicity): संरचना और संचालन में सरल होने के कारण इसका रखरखाव सस्ता और आसान है।
उनके शब्दों में, यह खोज “व्यापकता, नमक प्रतिरोध और सरलता” का संगम है – जो एक प्यासे विश्व के लिए जीवनदायिनी तकनीक साबित हो सकती है।