केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने गन्ना अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय परामर्श सत्र को संबोधित किया


श्री शिवराज सिंह ने कहा कि गन्ना रिसर्च के लिए आईसीएआर में अलग टीम बनेगी

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज कहा कि देश में गन्ने पर रिसर्च के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) में अलग टीम बनाई जाएगी। यह टीम देखेगी कि गन्ने की पॉलिसी कैसी होनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री देश में गन्ने की अर्थव्यवस्था पर आयोजित एक राष्ट्रीय परामर्श सत्र को संबोधित कर रहे थे। यह परामर्श सत्र आज नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा कैम्पस में मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस और नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के सहयोग से आयोजित किया गया है ।   

केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि गन्ने की 238 वैरायटी में चीनी की मात्रा अच्छी निकली है लेकिन इसमें रेड रॉट की समस्या आ रही है। हमें सोचना पड़ेगा कि एक वैरायटी कितने साल चलेगी। हमें साथ-साथ दूसरी वैरायटी पर भी काम करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण सवाल है रोगों का मुकाबला करना। नई वैरायटी आती है तो रोग भी आते हैं।  

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि मोनोक्रॉपिंग अनेक रोगों को निमंत्रण देती है। इससे नाइट्रोजन फिक्सेशन की समस्या भी उपजती है। एक फसल पोषक तत्वों को कम कर देती है। यह देखा जाना चाहिए कि मोनो क्रॉपिंग की जगह इंटरक्रॉपिंग कितनी व्यावहारिक है। उन्होंने कहा कि समस्याओं से हम परिचित हैं। हमें उत्पादन बढ़ाना है, मैकेनाइजेशन की जरूरत है। यह भी देखना है कि लागत कैसे घटाएं, चीनी की रिकवरी ज्यादा कैसे हो। पानी के इस्तेमाल का भी सवाल है। पानी की आवश्यकता को हम कैसे कम कर सकते हैं। इसके लिए ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ सोच का आधार होना चाहिए। इसके साथ यह भी देखना है कि किसान उतना खर्च करेगा कैसे, क्योंकि ड्रिप बिछाने के लिए पैसे चाहिए।

श्री चौहान ने कहा कि बायो प्रोडक्ट और कैसे उपयोगी हो सकते हैं इस पर विचार करना चाहिए। एथेनॉल का अपना महत्व है। मोलासेस की अपनी उपयोगिता है। कौन से अन्य प्रोडक्ट बन सकते हैं जिनसे किसानों का लाभ बढ़े। यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या प्राकृतिक खेती फर्टिलाइजर की समस्या में सहायक हो सकती है। वैल्यू चेन एक बड़ा सवाल है। इसे लेकर किसानों की शिकायत व्यवहारिक है। चीनी मिलों की अपनी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन किसानों को गन्ने के भुगतान में देरी होती है। मजदूरी की भी समस्या है। आजकल श्रमिक आसानी से नहीं मिलते है। यह देखना चाहिए कि क्या हम ट्रेनिंग देकर कैपेसिटी बिल्डिंग का काम कर सकते हैं। मैकेनाइजेशन डिवीजन भी इस पर सोचे कि कम मेहनत से कैसे गन्ने की कटाई की जा सकता है। श्री चौहान ने कहा कि आईसीएआर को मैं कहना चाहता हूं कि गन्ना रिसर्च के लिए अलग टीम बनाएं। वह टीम व्यावहारिक समस्याओं पर गौर करे। किसान और इंडस्ट्री की मांगों के अनुरूप की रिसर्च होनी चाहिए। जिस रिसर्च का किसान को फायदा नहीं, उसका कोई मतलब नहीं।

सेमिनार में आईसीएआर महानिदेशक और डेयर सचिव डॉ. एम.एल. जाट ने रिसर्च के लिए चार प्रमुख फोकस बताए- पहला, रिसर्च में क्या फोकस करना है, दूसरा, रिसर्च आगे ले जाने के लिए क्या डेवलपमेंटल मुद्दे हैं, तीसरा, इंडस्ट्री से संबंधित क्या मुद्दे हैं और चौथा, पॉलिसी से संबंधित क्या कदम उठाए जाने चाहिए। डॉ. जाट ने कहा कि गन्ने में पानी का काफी उपयोग होता है, फर्टिलाइजर का भी काफी इस्तेमाल होता है। पानी की समस्या दूर करने के लिए कई अनुसंधान हुए हैं। महाराष्ट्र की तरह अन्य जगहों पर भी गन्ने में माइक्रो इरिगेशन हो तो पानी की बचत होगी। जिस तरीके से फर्टिलाइजर का इस्तेमाल होता है वह ठीक नहीं है। उर्वरकों की एफिशिएंसी बढ़ाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि मोनोक्रॉपिंग दूर करने के लिए विविधीकरण आवश्यक है। गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग में दलहन और तिलहन का प्रयोग किया जा सकता है। देश में दलहन और तिलहन की पैदावार बढ़ाने की कोशिश भी चल रही है। इंटरक्रॉपिंग से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा मिलेगा।

कार्यक्रम में आईसीएआर में क्रॉप साइंस के उप महानिदेशक डॉ. देवेंद्र कुमार यादव व आईसीएआर में डीडीजी एक्सटेंशन डॉ. राजबीर सिंह उपस्थित रहे।

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