आज की युवा पीढ़ी, जो मोबाइल और पश्चिमी जीवन शैली में उलझी हुई है, वह अक्सर ‘सनातन धर्म’ को ‘पुराना’ या ‘पाखंडी’ मान लेती है। डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक सनातन संस्कृति की धरोहर जिसके लेखक गोपाल शर्मा है। यह पुस्तक उनके लिए संवाद का माध्यम बनकर उन्हें आत्म-परिचय की ओर प्रेरित करती है। सनातन धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं है, बल्कि “जीवन जीने की वैज्ञानिक और समग्र दृष्टि” है। इसका कोई आरंभ या अंत नहीं है, यह अनंत है। यही कारण है कि श्री अरबिंदो ने भी कहा था कि “सनातन धर्म विश्वास का नहीं, बल्कि जीवन का धर्म है।”
गोपाल शर्मा द्वारा लिखित “सनातन संस्कृति की धरोहर – युवा पीढ़ी के लिए आत्म-परिचय की यात्रा” केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और दर्शन के विविध आयामों को समझने का गहन प्रयास है। यह पुस्तक विशेष रूप से आधुनिक युवा पीढ़ी को ध्यान में रखकर लिखी गई है, जो आज के तेज़-रफ़्तार और तकनीकी जीवन में अपनी जड़ों से कटती जा रही है। लेखक ने तर्क, जिज्ञासा और संवाद की शैली में उन प्रश्नों को उठाया है, जो हर जागरूक पाठक के मन में कभी न कभी आते हैं–“मैं कौन हूँ?”, “मेरा धर्म क्या है?”, “पूजा-पद्धतियों के पीछे क्या तर्क है?” और “सनातन संस्कृति क्यों शाश्वत है?” भारत एकमात्र ऐसी सभ्यता है, जो कांस्य युग से भी पहले से आज तक जीवित है। यूनान, मिस्र और रोम जैसी प्राचीन सभ्यताएँ इतिहास के पन्नों और संग्रहालयों तक सीमित हो गईं, जबकि भारतीय संस्कृति निरंतर प्रवाहमान रही।

भारतीय संस्कृति केवल परंपरा नहीं है, बल्कि अनुभव, ज्ञान और आत्मचेतना की जीवंत धरोहर है। हमारे पूर्वजों ने आक्रमणों और विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी ‘मर्यादा’ और ‘धर्म’ की रक्षा की। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि धर्म की लौ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रहे। इस संदर्भ में पुस्तक पाठक को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभा रहे हैं? पुस्तक में बार-बार यह प्रश्न उठाया गया है कि–पूजा क्यों की जाती है? तिलक लगाने का क्या महत्व है? मंदिर जाने का क्या उद्देश्य है? गाय, गंगा, तुलसी और पीपल को पूजनीय क्यों माना गया है? लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि यह सब केवल रूढ़ियाँ नहीं, बल्कि गहरे वैज्ञानिक और दार्शनिक आधार पर खड़े विचार हैं। वेदों और गीता को लेखक ने केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानवता के मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत किया है। दीप जलाना केवल अंधकार हटाना नहीं, बल्कि आंतरिक ऊर्जा को जगाना है। इस प्रकार पुस्तक पाठक को उपदेश नहीं देती, बल्कि सोचने और प्रश्न करने की प्रेरणा देती है।
यह पुस्तक छह खंडों में विभाजित है –
- हमारा धर्म – इसमें सनातन धर्म, बहु-देव पूजा, मूर्ति पूजा, दशावतार और धर्म-विज्ञान संबंधी विमर्श है।
- हमारा सांस्कृतिक राष्ट्र – इसमें भारत की पहचान, इंडिया बनाम भारत की बहस और भारत को हिंदू राष्ट्र मानने पर विचार प्रस्तुत हैं।
- हमारी धरोहर : रीति-रिवाज, परंपराएं और जीवन शैली – इसमें सोलह संस्कार, त्यौहार, उपनयन, पूजा-पद्धतियां और सामाजिक आचरण का विवरण है।
- हमारी धरोहर : धर्म ग्रंथ – इसमें वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक और शास्त्रार्थ की परंपरा पर चर्चा है।
- हमारे धार्मिक आख्यान – इसमें मनु, सप्तऋषि, समुद्र मंथन और पौराणिक प्रसंगों का विवेचन है।
- सनातन प्रश्न – यह खंड युवाओं की जिज्ञासा पर आधारित है, जहाँ जीवन, पुनर्जन्म, कर्म और धर्म की व्याख्या प्रश्नोत्तर शैली में की गई है।
पुस्तक में लेखक ने एक साधारण हिंदू परिवार के उदाहरण से यह बताया है कि हिंदू होने का अर्थ किसी संहिता का पालन करना नहीं, बल्कि जीवन की निरंतर परंपरा का अनुभव करना है। घर के कोने में छोटा सा मंदिर, आरती की ध्वनि, धूप की सुगंध, दादी से सुनी कहानियाँ–यही हिंदू संस्कृति की जड़ें हैं। इस अनुभवजन्य दृष्टिकोण से पाठक आसानी से जुड़ाव महसूस करता है।
पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह किसी प्रकार का कट्टर उपदेश नहीं देती। नास्तिक, आस्तिक और जिज्ञासु–तीनों के लिए यह समान रूप से उपयोगी है। नास्तिक को यह समझने का अवसर मिलता है कि आस्था और अंधविश्वास में क्या फर्क है; आस्तिक को यह अनुभव होता है कि उसकी भक्ति में गहराई आ सकती है; और जिज्ञासु को यह अपने प्रश्नों की पहली सीढ़ी लगती है।
लेखक की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और संवादात्मक है। कहीं-कहीं दार्शनिक गहराई है, तो कहीं सरल उदाहरण। यह संतुलन पुस्तक को न तो केवल विद्वानों के लिए और न ही केवल सामान्य पाठकों के लिए सीमित करता है, बल्कि दोनों को जोड़ता है। आज जब हमारी युवा पीढ़ी पश्चिमी प्रभाव में अपनी जड़ों से दूर जा रही है, यह पुस्तक उन्हें अपनी संस्कृति पर नए दृष्टिकोण से सोचने को प्रेरित करती है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि “सनातन संस्कृति आंख मूंदकर मानने का आग्रह नहीं करती, बल्कि तर्क और जिज्ञासा के साथ आत्म-अन्वेषण का रास्ता खोलती है।” “सनातन संस्कृति की धरोहर” केवल धार्मिक आख्यानों का संग्रह नहीं है, बल्कि आत्म-परिचय की यात्रा है। यह पुस्तक युवाओं को अपनी संस्कृति के वास्तविक स्वरूप से परिचित कराती है और उन्हें यह समझने में मदद करती है कि धर्म कोई मजहब या संकीर्णता नहीं, बल्कि जीवन का समग्र दर्शन है।
यह पुस्तक उन सभी के लिए उपयोगी है जो अपनी जड़ों को जानना चाहते हैं, चाहे वे आस्तिक हों, नास्तिक हों या जिज्ञासु। लेखक ने सनातन संस्कृति को एक जीवंत, वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टि से प्रस्तुत किया है, जो आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक और आवश्यक है। कुल मिलाकर, यह पुस्तक भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन का संक्षिप्त किन्तु गहन परिचय है, जो हर युवा के पुस्तकालय में अवश्य होना चाहिए।
पुस्तक : सनातन संस्कृति की धरोहर
लेखक : गोपाल शर्मा
प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स


