20 अक्टूबर दीपावली पर विशेष
भारत त्योहारों का देश है, और इन पर्वों में दीपावली का स्थान सबसे ऊँचा और विशिष्ट है। दीपों का यह त्योहार न केवल अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह मानव जीवन में सुख, समृद्धि, स्वच्छता, पवित्रता और सकारात्मकता के संदेश का वाहक भी है। दीपावली का आगमन होते ही पूरे देश में उल्लास और उमंग का वातावरण छा जाता है। घर-घर में सफाई, रंगाई-पुताई, साज-सज्जा और मिठाइयों की खुशबू से गलियां महक उठती हैं।
दीपावली की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता
दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और आत्मशुद्धि का पर्व है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार यह पर्व भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास और रावण पर विजय के बाद अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाया जाता है। उस दिन अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था, तभी से यह ज्योति पर्व (दीपोत्सव) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी, जो धन, वैभव और समृद्धि की देवी हैं, की विशेष पूजा की जाती है। लोकविश्वास है कि वे केवल उन घरों में प्रवेश करती हैं जो स्वच्छ, सुसज्जित और प्रकाश से आलोकित होते हैं। यही कारण है कि लोग दीपावली से पहले घर की गहराई तक सफाई करते हैं, पुराना कचरा, टूटी वस्तुएं और अनुपयोगी सामान निकालकर बाहर कर देते हैं। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है।

दीपावली हमें सिखाती है कि जहाँ स्वच्छता होती है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। यह त्योहार हमें बाहरी सफाई के साथ-साथ आंतरिक शुद्धता की प्रेरणा भी देता है — मन, विचार और कर्म में निर्मलता लाने की।
उत्तर भारत में तो दीपोत्सव से महीनों पूर्व ही लोग घरों की मरम्मत करवाते हैं, दीवारों की रंगाई-पुताई करते हैं। कुछ लोग घर की दीवारों पर देवी-देवताओं की चित्रकारी कराकर घर को कलात्मक रूप देते हैं। दीपावली के दिन घर-आंगन को गोबर और मिट्टी से लीपना, रंगोली बनाना और दीप सजाना एक सांस्कृतिक परंपरा है, जो आज भी ग्रामीण भारत में जीवंत रूप में देखी जा सकती है।
दीपावली से एक दिन पूर्व यम दीपदान की परंपरा भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन संध्या के समय महिलाएं गोबर से बने छोटे दीपों में सरसों का तेल और बाती डालकर उन्हें जलाती हैं और घर के बाहरी भाग में, विशेष रूप से किसी टीले पर रख देती हैं। ऐसा करने से यम देवता और उनके वंश प्रसन्न होते हैं और घर में अकाल मृत्यु या दुःख का प्रवेश नहीं होता। यह परंपरा दीपावली की धार्मिक गहराई को दर्शाती है।
दीपावली के दिन मिट्टी वाले फर्श की गोबर से लिपाई, आंगन में रंगोली, दरवाजों पर बंदनवार और तोरण — सब मिलकर घर को पवित्रता और सौंदर्य का संगम बना देते हैं। महिलाएं नए वस्त्र धारण कर घी के दीप सजाती हैं और उन्हें मंदिरों में अर्पित करती हैं। बांस की मढ़ाई पर दीपों को सजाकर जो दीपमालाएं बनती हैं, वे सौंदर्य की ऐसी झलक पेश करती हैं जो मन को मोह लेती है। इस दिन घर-आंगन में जलाए गए दीप अंधकार और नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक होते हैं।

