भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में आयोजित संवाद सत्र अनस्क्रिप्टेड – फिल्म निर्माण की कला और भावना ने कला अकादमी के सभागार को एक जीवंत फिल्म सेट में बदल दिया। इस सत्र में प्रसिद्ध फिल्मकार और निर्माता विधु विनोद चोपड़ा तथा चर्चित पटकथा लेखक अभिजात जोशी ने अपने अनुभवों, दृष्टिकोण और रचनात्मकता पर खुले दिल से बात की। दर्शकों की ऊर्जा, हंसी और भावनाओं से भरे इस संवाद ने आईएफएफआई-2025 के प्रमुख आकर्षणों में अपनी विशेष जगह सुनिश्चित की।

गरिमापूर्ण शुरुआत और सम्मान
कार्यक्रम की शुरुआत संयुक्त सचिव (फिल्म) डॉ. अजय नागभूषण एमएन द्वारा दोनों अतिथियों के स्वागत और सम्मान के साथ हुई। इसके बाद, फिल्म निर्माता रवि कोट्टाराक्कारा ने चोपड़ा और जोशी को शॉल भेंट किए। डॉ. नागभूषण ने कहा कि नई पीढ़ी के फिल्मकारों को प्रेरणा देने में चोपड़ा की ईमानदारी और स्पष्टवादिता की महत्वपूर्ण भूमिका है। रवि ने चोपड़ा की फिल्म परिंदा को भारतीय सिनेमा की दिशा बदलने वाली कृति बताया।
एक फिल्मकार जो भीतर की सच्चाई से सृजन करता है
संवाद सत्र की शुरुआत अभिजात जोशी ने अपने और चोपड़ा के पहली मुलाकात के प्रसंग को याद करते हुए की। यह वही मुलाकात थी जिसने आगे चलकर लगे रहो मुन्ना भाई, 3 इडियट्स और कई यादगार फिल्मों की नींव रखी। जब जोशी ने चोपड़ा से पूछा कि क्या उनकी शैली वर्षों में बदली है, तो उनका उत्तर सरल, ईमानदार और आत्ममंथन से भरा था।
चोपड़ा ने कहा, हर फिल्म मेरे व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है। उन्होंने बताया कि परिंदा के समय वे भीतर से आक्रोशित थे, इसीलिए फिल्म का स्वरूप भी तीखा था। वहीं 12वीं फेल उनके शांत, परिपक्व और सामाजिक परिवर्तन की आकांक्षा रखने वाले व्यक्तित्व की झलक है। उन्होंने कहा कि इस फिल्म के माध्यम से वे यह संदेश देना चाहते थे कि ईमानदारी स्वयं में परिवर्तन की शुरुआत है।
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि 1942: अ लव स्टोरी को उसके नए 8के संस्करण में देखकर वे भावुक हो उठे, और यह वह फिल्म है जिसे अब वे शायद वैसे नहीं बना सकते, क्योंकि वे बदल चुके हैं।
दृढ़ विश्वास और सिनेमा की आत्मा
अभिजात जोशी ने चोपड़ा की कला के सबसे बड़े गुण का उल्लेख किया कि वे व्यावसायिकता से अधिक फिल्म की आत्मा और कलात्मकता को महत्व देते हैं। बातचीत में परिंदा, 1942: अ लव स्टोरी और 12वीं फेल जैसी फिल्मों की रचनात्मक प्रक्रियाओं पर विस्तृत चर्चा हुई।
चोपड़ा ने तैयारी, सत्यता, दृश्यों के चयन और भावनात्मक गहराई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को अनेक प्रसंगों के साथ साझा किया। उन्होंने 1942: अ लव स्टोरी के एक प्रसिद्ध दृश्य का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने पहाड़ की चोटी पर वास्तविक पक्षियों को उड़ने के लिए ब्रेड बिखेरकर वह दृश्य साकार किया। उनका कथन था कि 8के में पुनर्निर्मित दृश्य देखकर उन्हें अनुपम संतोष मिला।
हास्य, अनुभव और यादों से भरा सत्र
संवाद के दौरान कई रोचक और मनोवेगपूर्ण किस्से सामने आए। चोपड़ा ने बताया कि उन्होंने खामोश की पटकथा एक छोटे से फ्लैट में लिखी थी, जहां रचनात्मक उत्साह में डायलॉग बोलने और कट चिल्लाने की वजह से पड़ोसी चौंक जाते थे। जोशी ने इस बात की पुष्टि की कि चोपड़ा किसी नई फिल्म की परिकल्पना करते हुए बच्चों की तरह उत्साहित हो जाते हैं।
अभिनेता जैकी श्रॉफ का गलत अपार्टमेंट में पहुंच जाना और डरी हुई महिला को फूल दे देना, ऐसा किस्सा था जिस पर सभागार ठहाकों से गूंज उठा। चोपड़ा ने हंसते हुए कहा कि वह महिला बाद में सबको बताती रही कि उसने सपना देखा था कि जैकी श्रॉफ उससे मिलने आए थे।
संगीत, साहस और सृजन की जिद
चोपड़ा ने 1942: अ लव स्टोरी के संगीत के निर्माण से जुड़े अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने आर.डी. बर्मन से शुरुआती धुनों को अस्वीकार कर दिया और उनसे एस.डी. बर्मन की आत्मा को उभारने की मांग की। कुछ हफ्तों बाद जब कुछ ना कहो की धुन बनी, तो उन्होंने महसूस किया कि वह जादू पूरा हो गया। मंच पर चोपड़ा द्वारा इस धुन को गुनगुनाने पर सभागार में तालियां गूंज उठीं।
राष्ट्रीय पुरस्कार से संबंधित उनका पुराना किस्सा, जिसमें उन्हें नकद राशि की जगह डाक बांड मिला था, भी हास्यपूर्ण अंदाज में सुनाया गया। बाद में उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के सहयोग को भी सराहा, जिन्होंने ऑस्कर यात्रा में सहायता की थी।
क्लासिक्स के पीछे की रचनात्मक शख्सियतें
सत्र में एक भावनात्मक क्षण तब आया जब 1942: अ लव स्टोरी की 92 वर्षीय लेखिका और चोपड़ा की सास कामना चंद्रा भी बातचीत में शामिल हुईं। उन्होंने कहा कि फिल्म के पुनर्निर्मित संस्करण को देखकर उन्हें जीवन की सार्थकता का अनुभव हुआ।
फिल्म के निर्माता योगेश ईश्वर ने इटली में 8के रेस्टोरेशन की पूरी प्रक्रिया का विस्तृत विवरण दिया। चोपड़ा ने कहा कि यह संस्करण उनके कल्पित स्वरूप के बिल्कुल अनुरूप है।
सिनेमा प्रेमियों के लिए भावपूर्ण अनुभव
कार्यक्रम का समापन एक प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जहां दर्शकों ने चोपड़ा और जोशी से अनेक प्रश्न पूछे। लेकिन इससे पहले ही सत्र दर्शकों को दशकों की सिनेमाई यात्रा करा चुका था। यह संवाद फिल्म निर्माण के आनंद, संघर्ष, जुनून और जादू को अनुभव कराने वाला था।