होली है नफरत को प्यार में बदलने का रंग-पर्व

ललित गर्ग
ललित गर्ग

बदलती युग-सोच एवं जीवनशैली से होली त्यौहार के रंग भले ही फीके पड़े हैं या मेरे-तेरे की भावना, भागदौड़, स्वार्थ एवं संकीर्णता से होली की परम्परा में धुंधलका आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है, फिर भी जिन्दगी जब मस्ती एवं खुशी को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है तब प्रकृति एवं परम्परा हमें होली जैसा रंगारंग त्योहार देती है। इस त्योहार की गौरवमय परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए हम एक उन्नत आत्मउन्नयन एवं सौहार्द का माहौल बनाएं, जहां हमारी संस्कृति एवं जीवन के रंग खिलखिलाते हुए देश ही नहीं दुनिया में अहिंसा, प्रेम, भाई-चारे, साम्प्रदायिक सौहार्द के रंग बिखेरे। पर्यावरण के प्रति उपेक्षा एवं प्रदूषित माहौल के बावजूद जीवन के सारे रंग फीके न पड़ पाए। होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक-आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं की रोशनी में होली के त्योहार का विराट् समायोजन बदलते परिवेश में विविधताओं का संगम बन गया है, दुनिया को जोड़ने का माध्यम बन गया है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है। होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता। पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को काम्य होती है और इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की विरासत का जुड़ाव होता है तो इस पर्व की महत्ता शतगुणित हो जाती है। प्रश्न है कि प्रसन्नता का यह आलम जो होली के दिनों में जुनून बन जाता है, कितना स्थायी है? डफली की धुन एवं डांडिया रास की झंकार में मदमस्त मानसिकता ने होली जैसे त्योहार की उपादेयता को मात्र इसी दायरे तक सीमित कर दिया, जिसे तात्कालिक खुशी कह सकते हैं, जबकि अपेक्षा है कि रंगों की इस परम्परा को दीर्घजीविता प्रदान करते हुए आत्मिक खुशी का जरिया भी बनाये।

होली रंगों का निराला एवं अनूठा पर्व है और हमारा जीवन ढेर सारे रंगों का एक पिटारा है। यहां हर रंग जुदा है तो दूसरों से मिला हुआ भी। एक रंग, दूसरे से मिलकर तेजी से नया ही रंग-रूप धर लेता है। किसी एक पर अटके रहकर काम चल ही नहीं सकता। यही जीवन लीला है। पर क्या दूसरों के रंगों को अपने में समा लेना आसान होता है? रंगों को कोई तो कैनवस चाहिए ही ना! संकल्प हो तो कितने रंग खिल सकते हैं? सच यह है कि ना ही दूसरों को अपना बनाना आसान है और ना ही दूसरों का होकर रह पाना। जीवन को हर रंग में जीने और स्वीकारने की कला सबको नहीं आती। उसके लिए जरूरत होती है, एक मस्तमौला नजरिए की। समुद्र से मिलने को तत्पर, मीलों बहती रहने वाली नदी की ऊर्जा की। ऊर्जा और आनंद के इसी मेल का प्रतीक है होली का त्यौहार, जो लगातार बदलते रहने के बावजूद बना रहता है, धु्रव है, सत्य है।

जितने रंग प्रकृति के हैं, उतने ही हमारे हैं और प्रकृति हर पल रंग बदलती है। पुरानी पत्तियां शाख छोड़ती नहीं हैं कि नई खिलनी शुरू हो जाती हैं। पतझड़ और बसंत साथ ही चलते रहते हैं। धरती के भीतर के घुप अंधेरों को चीर कर बाहर निकला बीज, फूल, शाख, पत्तियां और फल के रंग धर लेता है। उगने, डूबने, खिलने, फैलने, मिलने, सूखने, झड़ने, चढ़ने, उतरने और खत्म होने का हर रंग प्रकृति में है और है होली के मनभावन पर्व में। पर प्रकृति हो या होली इनसे उदासीन हम, कुछ ही रंगों में सिमट जाते हैं। गिले-शिकवों, उदासी, तेरे-मेरे, क्रोध और कुंठा में ही अटक जाते हैं। नतीजा, जिंदगी में तनाव और उदासी घिरने लगती है। अर्जेंटीना में तुलनात्मक साहित्य और दर्शन विषय की जानकार प्रो. मारिया ल्यूगोनस कहती हैं, ‘अच्छे अर्थो में, स्वीकारने का ही भाव है मस्ती। उसमें तमाम मूर्खताओं की भी जगह है। सही दिशा में खुद को और अपने माहौल को बनाने और बदलने का जोश ही जिंदगी है।’ लेकिन होली जैसे त्यौहारों के बावजूद  जीवन के सारे रंग फिके पड़ रहे हैं। न कहीं आपसी विश्वास रहा, न किसी का परस्पर प्यार, न सहयोग की उदात्त भावना रही, न संघर्ष में एकता का स्वर उठा। बिखराव की भीड़ में न किसी ने हाथ थामा, न किसी ने आग्रह की पकड़ छोड़ी। यूँ लगता है सब कुछ खोकर विभक्त मन अकेला खड़ा है फिर से सब कुछ पाने की आशा में। कितनी झूठी है यह प्रतीक्षा, कितनी अर्थ शून्य है यह अगवानी।
हम भी भविष्य की अनगिनत संभावनाओं को साथ लिए आओ फिर से एक सचेतन माहौल बनाएँ। उसमें सच्चाई का रंग भरने का प्राणवान संकल्प करें। होली के लिए माहौल भी चाहिए और मन भी चाहिए, ऐसा मन जहाँ हम सब एक हों और मन की गंदी परतों को उखाड़ फेकें ताकि अविभक्त मन के आइने में प्रतिबिम्बित सभी चेहरे हमें अपने लगें। कलाकार एमी ग्रेंट के अनुसार, ‘काला रंग गहराई देता है। इसे मिलाए बिना किसी वास्तविकता को रचा नहीं जा सकता।’ जीवन में सुख-दुख दोनों हैं। दोनों एक-दूसरे में बदलते रहते हैं। हमें सुख अच्छा लगता है और दुख में हम घबरा उठते हैं। सारी कोशिशें ही दुखों से बचने की होती हैं। होली का अवसर भी सारे दुःखों को भूलकर स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का अवसर है।

होली दिलों से जुड़ी भावनाओं का पर्व है। यह मन और मस्तिष्क को परिष्कृत करता है। न्यूरोबायोलिस्ट और रिसर्चर सेमिर जैक कहते हैं, ‘मस्तिष्क में प्यार और नफरत को जनरेट करने वाली वायरिंग एक ही होती है।’ इस भावना की कुछ अलग तरह से व्याख्या करते हैं लेखक और समाजशास्त्री पेजिल पामरोज, ‘प्रेम आत्मा के स्तर पर होता है और नफरत भावना के स्तर पर।’ होली प्रेम एवं संवेदनाओं को जीवंतता देने का दुर्लभ अवसर है। यह नफरत को प्यार में बदल देता है। यह पर्व बाहरी दुनिया में मौज-मस्ती का अवसर ही नहीं देता, बल्कि भीतरी दुनिया का साक्षात्कार भी कराता है। महान् दार्शनिक संत आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान के माध्यम से विभिन्न रंगों की साधना कराते हुए आत्मा को उजालने एवं भीतरी दुनिया को उन्नत बनाने की विधि प्रदत्त की है। रोमन सम्राट व चिंतक मार्क्स ऑरेलियस ने कहा भी है, ‘मन के विचारों में रंगी होती है आत्मा।’ जैन दर्शन भी कहता है कि जैसे विचार होते हैं, वैसे ही कर्म परमाणु आत्मा से चिपक जाते हैं। आत्मा के तमाम रंगों तक पहुंचने की हमारी यात्रा मन से होकर गुजरती है। हमें अपने विचारों को सही रखना होता है। उसमें दूसरों के लिए जगह छोड़नी होती है। नकारात्मक ऊर्जा के नुकसान से बचने के लिए होली के रंगों में सराबोर होना, रंगों का ध्यान करना, अपनी पर्वमय संस्कृति से रू-ब-रू होना फायदेमंद साबित होता है। पेजिल पामरोज इसका उपाय बताते हुए कहते हैं, ‘अपने आप से प्यार करना सीखें। आप जो हैं, आपसे अच्छा और कोई नहीं जानता। अपने आपसे मोहब्बत करेंगे तो यह भी जान पाएंगे कि जो आपको चाहते हैं, उनके प्यार में कितनी गहराई है।’

होली की परम्पराएँ श्रीकृष्ण की लीलाओं से सम्बद्ध हैं और भक्त हृदय में विशेष महत्व रखती हैं। श्रीकृष्ण की भक्ति में सराबोर होकर होली का रंगभरा और रंगीनीभरा त्यौहार मनाना एक विलक्षण अनुभव है। मंदिरों की नगरी वृन्दावन में फाल्गुन शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन यहाँ होली के रंग खेलना परम्परागत रूप में प्रारम्भ हो जाता है। मंदिरों में होली की मस्ती और भक्ति दोनों ही अपनी अनुपम छटा बिखेरती है। होली जैसे त्यौहार में जब अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ब्राह्मण-शूद्र आदि सब का भेद मिट जाता है, तब ऐसी भावना करनी चाहिए कि होली की अग्नि में हमारी समस्त पीड़ाएँ दुःख, चिंताएँ, द्वेष-भाव आदि जल जाएँ तथा जीवन में प्रसन्नता, हर्षोल्लास तथा आनंद का रंग बिखर जाए। होली का कोई-न-कोई संकल्प हो और यह संकल्प हो सकता है कि हम स्वयं शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन जीये और सभी के लिये शांतिपूर्ण एवं निरोगी जीवन की कामना करें। ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच होली को सार्थक बना सकते हैं।

आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »