अराजकता में डूबे बंगाल में नाउम्मीदी का अंधेरा

बंगाल में वक्फ कानून को लेकर हिंसा का सिलसिला जिस तरह तेज और सांप्रदायिक होता जा रहा है, जिस तरह से हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें मुर्शिदाबाद से पलायन को विवश किया जा रहा है, वह मुस्लिम तुष्टीकरण और दुष्प्रचार की खतरनाक राजनीति का प्रतिफल तो है ही, वह कुशासन एवं अराजकता की भी चरम पराकाष्ठा भी है। नए वक्फ कानून को लेकर कुछ राजनीतिक दल मुस्लिम समाज को विशेषतः किशोर बच्चों को हिंसा एवं तोड़फोड के लिये जानबूझकर सड़कों पर उतारने में लगे हुए हैं। वे उन्हें अराजकता एवं उन्माद के लिए उकसा भी रहे हैं और तरह-तरह से प्रोत्साहन दे रहे हैं। अराजकता फैलाने वाले किस तरह बेखौफ हैं, इसकी पुष्टि इससे होती है कि वे सरकारी-गैरसरकारी वाहनों को तोड़ने, जलाने के साथ पुलिस पर भी हमले कर रहे हैं।

बंगाल के विभिन्न जिलों में वक्फ कानून के विरोध के बहाने फैलाई जा रही अराजकता इसलिए भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं, क्योंकि खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस कानून के खिलाफ खड़ी होकर राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम कर रही हैं। पश्चिम बंगाल में हिंसा का बढ़ना, हिन्दुओं में डर पैदा होना, भय का वातावरण बनना, आम जनजीवन का अनहोनी होने की आशंकाओं से घिरा होना चिंताजनक भी है और राष्ट्रीय शर्म का विषय भी है।

यह बंगाल पुलिस के नाकारापन एवं ममता सरकार के मुस्लिम तुष्टिकरण का ही दुष्परिणाम है कि मुर्शिदाबाद के साथ ही अन्य शहरों में भी वक्फ कानून के विरोध की आड़ में हिंसा, तोड़फोड, आगजनी हो रही है। खतरनाक यह है कि इस दौरान हिंदुओं को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने वक्फ कानून विरोधियों की अराजकता से उपजे हालात का संज्ञान लिया। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है। इससे शर्मनाक एवं दर्दनाक और कुछ नहीं हो सकता कि मुर्शिदाबाद में 11 अप्रैल को हुई हिंसा के बाद करीब 500 हिंदू पलायन कर गए हैं। हिंदू परिवारों का आरोप है कि हिंसा के दौरान उनको चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। उनके पीने के पानी में जहर तक मिला दिया गया है। इस हिंसा की जांच एजेंसियों ने पोल खोल दी है, यह हिंसा पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी, जिसमें तुर्की से फंडिंग और स्थानीय मदरसों की मिलीभगत सामने आई है। हमलावरों को ट्रेनिंग दी गई और इनाम की व्यवस्था भी की गई थी। ममता बनर्जी एवं उनकी सरकार देश में एकमात्र ऐसी सत्तारुढ़ पार्टी एवं नेता बन गई है जिसका देश के संविधान, न्यायपालिका एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भरोसा नहीं रह गया है।

वक्फ कानून का विरोध करने सड़क पर उतरे तत्वों के दुस्साहस का पता इससे चलता है कि वे सीमा सुरक्षा बल के जवानों को भी निशाना बनाने से नहीं हिचक रहे हैं। उनके इसी दुस्साहस के चलते मुर्शिदाबाद के हिंदुओं ने खुद को असहाय पाया। बंगाल में कानून के शासन ने सुनियोजित हिंसा के दुष्चक्र के समक्ष एक बार फिर समर्पण कर दिया। बंगाल में इसके पहले भी ऐसा हो चुका है। मई 2021 में विधानसभा चुनावों के बाद वहां तृणमूल समर्थक तत्वों ने अपने राजनीतिक विरोधियों को इतना आतंकित किया था कि वे जान बचाने के लिए असम में शरण लेने को मजबूर हुए थे। तब भी वहां पुलिस मूकदर्शक बनी हुई थी। ताजा हिंसक हालातों में राज्य सरकार और उसके नेता यह झूठ देश के गले में उतारने में लगे हुए हैं कि बंगाल में स्थितियां नियंत्रण में हैं। यह कैसा नियंत्रण है? यह कैसी शासन-व्यवस्था है? यह कैसा दोगलापन है? जिसमें एक समुदाय खुलेआम दूसरे समुदाय को निशाना बना रहा है। खुलेआम सार्वजनिक मंचों पर राष्ट्र-विरोधी विचारों का जहर घोला जा रहा है।

वक्फ कानून में संशोधन का विरोध विडम्बनापूर्ण होने के साथ देश में अराजकता फैलाने का माध्यम बना हुआ है। वक्फ कानून में संशोधन के तहत किसी मस्जिद, मदरसे आदि को लेकर किसी भी तरह के नुकसान, कब्जा करने या दखल की बात नहीं कही गयी है। इसके विरोधी चाहे जो तर्क दंे, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार का अड्डा बने हुए थे और सरकारी-निजी जमीनों पर मनमाने तरीके से दावा कर दिया करते थे। उनकी इस मनमानी का शिकार अनेक मुस्लिम भी थे। क्या वक्फ कानून के विरोधी यह बताने की स्थिति में हैं कि वक्फ बोर्डों ने अभी तक कितने गरीब मुसलमानों की सहायता की? यह पहली बार नहीं है, जब किसी कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरकर उपद्रव, हिंसा, आगजनी की जा रही हो। इसके पहले नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भी ऐसा ही किया गया था। तब यह झूठ फैलाया जा रहा था कि इस कानून के जरिये मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी। अब यह झूठ फैलाया जा रहा है कि नए वक्फ कानून के जरिये सरकार मस्जिदों और कब्रिस्तानों पर कब्जा करना चाहती है। यह निरा झूठ और शरारत ही है। वक्फ कानून के विरोधी भले ही लोकतंत्र और संविधान की दुहाई दे रहे हों, लेकिन ये उसकी धज्जियां ही उड़ा रहे हैं। वे वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करने के लिए तैयार नहीं।

मुर्शिदाबाद हिंसा के जरिए पूरे बंगाल में हिंसा फैलाने का प्लान तुर्की में बनाया गया था, इसके जरिए बंगाल के हालात भी ठीक बांग्लादेश की तरह करने की कोशिश थी। हिंसा को लेकर बाकायदा एक लिस्ट तैयार की गई थी कि कौन कहां नुकसान करेगा और लूटपाट मचाएगा। इसके साथ ही इनाम देने को लेकर योजनाएं बनाई गयी। हिंसा के दौरान इस बात का खास ध्यान देने का अलर्ट किया गया कि रेल और नॉर्मल ट्रांसपोर्ट न चल पाए। मौका मिलने पर हिंदुओं की हत्या करना भी टारगेट था। कुछ हिन्दुओं को मारा भी गया है। हिंदुओं के घरों के साथ मंदिरों पर हमले किए गए, घर जलाए गए, आजीविका नष्ट की गई, बलात्कार की धमकियां दी गयी, उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि नए वक्फ कानून का विरोध करने वाले न केवल सांप्रदायिक घृणा में डूबे हैं, अराजकता एवं उन्माद पर सवार है, आतंकी माहौल बनाकर हिन्दुओं को भयभीय-आतंकित करना चाहते है। क्योंकि उन्हें यह भरोसा है कि ममता बनर्जी की सरकार और उनकी पुलिस उनके खिलाफ कुछ नहीं करने वाली।

ज्यादा चिन्ताजनक तो यह है कि अराजक लोग चाहते हैं पलायन करने के लिए मजबूर लोग फिर कभी अपने घरों को न लौट पाएं। इन जटिल एवं अनियंत्रित होते अराजक हालातों में शांति, सौहार्द एवं सामान्य हालातों को निर्मित करने के लिये आवश्यक है कि केंद्र सरकार बंगाल में हस्तक्षेप करने के लिए आगे आए, बल्कि यह भी अपेक्षित है कि सुप्रीम कोर्ट वहां के हालात का स्वतः संज्ञान ले। उसे वक्फ कानून विरोधी हिंसक तत्वों के उपद्रव के लिए ममता सरकार को जवाबदेह बनाना ही होगा।
ममता वोट बैंक की राजनीति के लिये कानून एवं सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां बार-बार उड़ाती रही है। ममता ने देश की एकता-अखंडता और सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को नजरअंदाज किया है, कानून से खिलवाड़ जितना पश्चिमी बंगाल में हुआ है उतना शायद ही देश के किसी दूसरे राज्यों में हुआ हो। ममता अपने बलबूते चुनाव जीतने का माद्दा रखती है तो फिर हिंसा का सहारा क्यों लेती है? अराजकता फैलाकर अपने ही शासन को क्यों दागदार बनाती है?

क्यों अपने प्रांत की जनता को डराती है, भयभीत करती है? क्या ये प्रश्न ममता की राजनीतिक छवि पर दाग नहीं है? ममता एवं तृणमूल कांग्रेस का एकतरफा रवैया हमेशा से समाज को दो वर्गों में बांटता रहा है एवं सामाजिक असंतुलन तथा रोष का कारण रहा है। ताजा हिंसक हालात इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि किसी भी एक वर्ग की अनदेखी कर कोई भी दल राजसत्ता का आनंद नहीं उठा सकता। राज्य में शीर्ष संवैधानिक पद पर रहते हुए भी ममता बनर्जी ने अलोकतांत्रिक, गैर-कानूनी एवं राष्ट्र-विरोधी कार्यों को अंजाम दिया है। बंगाल में तो भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता के जबड़े फैलाए, हिंसा की जीभ निकाले, मगरमच्छ सब कुछ निगल रहा है। ममता अपनी जातियों, ग्रुपों और वोट बैंक को मजबूत कर रही हैं– देश को नहीं।

ललित गर्ग
ललित गर्ग

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