अभद्रता की हदें लांघ रही जिम्मेदार लोगों की भूलें

दिल्ली के एक नर्सिंग कॉलेज में दो छात्राओं के साथ हो या पंजाब पुलिस द्वारा टाइम्स नाऊ- नवभारत टाइम्स की पत्रकार भावना किशोर को बदले की भावना से हिरासत में लेने की अवांछित घटनाएं नारी अस्मिता एवं अस्तिव को कुचलने की शर्मसार करने वाली घटनाएं हैं। ये दोनों घटनाएं ऊंचे ओहदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा न सिर्फ नाहक आपा खोकर की गई अमानवीय हरकत है, बल्कि यह कानूनन अपराध के दायरे में भी आता है। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के द्वारा ऐसी नारी से अभद्र एवं अपमान करने एवं अमानवीय घटनाओं का होना प्रशासनिक ढ़ांचे एवं उसकी संरचना पर अनेक सवाल खड़े करता है। प्रश्न है कि क्यों भूल रहे हैं ऐसे लोग अपनी मर्यादाएं। नये भारत एवं सशक्त भारत को निर्मित करते हुए समाज में ऐसी नारी अपमान एवं अत्याचार की घटनाओं का कायम रहना दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण है।

दिल्ली के जिस नर्सिंग कॉलेज में चोरी करने का आरोप लगाते हुए दो छात्राओं के साथ अवांछित व्यवहार की क्रूर एवं आपत्तिजनक घटना सामने आई है, वह बेहद चिन्ताजनक है। इससे पता चलता है कि किसी संस्थान में जिम्मेदारी वाले पद पर होने के बावजूद कोई व्यक्ति कैसे अपनी मर्यादाओं एवं जिम्मेदारियों को भूल जाता है और इस क्रम में वह किसी महिला के सम्मान को गहरी चोट पहुंचाता है। हालांकि दोनों के पास से कोई पैसा नहीं मिला। सवाल है कि पैसा चोरी होने के बाद अगर वार्डन को कोई शक था भी, तो उसे खुद कानून हाथ में लेने का क्या अधिकार था? फिर, जैसा बर्ताव छात्राओं के साथ किया गया, क्या वह किसी भी रूप में शक को दूर करने की कोशिश लगती है? निश्चित रूप से यह न केवल स्त्री की गरिमा के विरुद्ध है, बल्कि ऐसे व्यक्ति के उस सामंती ढांचे को भी दर्शाता है, जो पद की अकड़ में किसी के खिलाफ अवांछित व्यवहार कर बैठता है। जो हमारे समूचे परिवेश एवं सांस्कृतिक सोच पर एक बदनुमा दाग है।


  अगर चोरी हुई भी, तो इसकी शिकायत पुलिस के पास की जा सकती थी। लेकिन वार्डन ने स्वयं को सर्वेसर्वा मानकर जो बर्ताव किया, वह कानून को तो ताक पर रखता ही है, हमारी मर्यादा, शालीनता, संस्कार एवं महिलाओं के प्रति सम्मानजनक नजरिये की धज्जियां भी उड़ाता है। इस तरह की घटनाओं की रह-रह की पुनरावृत्ति होना गंभीर चिन्ता का विषय है। भले ही घटना हो जाने के बाद पीड़ित छात्राएं और उनके अभिभावकों की शिकायत के बाद इस मसले पर वार्डन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और अब उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी, लेकिन एक बड़ा प्रश्न है कि ऐसी घटनाएं कब तक समाज की गरिमा को क्षत-विक्षित करती रहेगी। हैरानी की बात है कि समाज के जिस तबके के बारे में शिक्षित होने और किसी संस्थान को सभ्य आचार संहिता से संचालित होने की उम्मीद की जाती है, अक्सर उसी की ओर से ऐसी हरकतें सामने आती हैं, जिसमें आज भी सामंती मूल्य एवं पुरुषवादी संकीर्ण सोच बनी हुई हैं और उसे कानून की परवाह नहीं है।


सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. मृदुला सिन्हा ने महिलाओं की असुरक्षा एवं अवांछित बर्ताव के संदर्भ में एक कटु सत्य को रेखांकित किया है- ‘अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी महिलाएं ऐसे हादसों का प्रतिकार करती हैं, किन्तु पढ़ी-लिखी लड़कियां मौन रह जाती हैं।’ सचमुच यह एक चौंका देनेवाला सत्य है। पढ़ी-लिखी महिला इस प्रकार के किसी हादसे का शिकार होने के बाद यह चिंतन करती है कि प्रतिकार करने से उसकी बदनामी होगी, उसके पारिवारिक रिश्तों पर असर पड़ेगा, उसका कैरियर चौपट हो जाएगा, आगे जाकर उसको कोई विशेष अवसर नहीं मिल सकेगा, उसके लिए विकास का द्वार बंद हो जाएगा। वस्तुतः एक महिला प्रकृति से तो कमजोर है ही, शक्ति से भी इतनी कमजोर है कि वह अपनी मानसिक सोच को भी उसी के अनुरूप ढाल लेती है। भले ही नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं ने शिकायत दर्ज कर साहस का परिचय दिया है। महिलाओं के जागने से ज्यादा जरूरी है इस तरह की विकृत सोच एवं अवांछितों व्यवहार पर स्वतः नियंत्रित होने की।


दिल्ली की यह घटना इस तरह का कोई अकेला उदाहरण नहीं है। आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिसमें कहीं चोरी के आरोप में तो कभी परीक्षा में नकल रोकने के नाम पर कपड़े उतरवा कर लड़कियों की तलाशी ली जाती है। आम आदमी पार्टी के राजनेता उनके भ्रष्टाचार को उजागर करने वाली टाइम्स नाऊ की महिला पत्रकार को ही झूठा मामला बनाकर बिना महिला पुलिसकर्मी के सात घंटे तक हिरासत में रखा और अवांछित तरीके से परेशान किया। ऑपरेशन शीशमहल में केजरीवाल के 45 करोड़ खर्च के मामलें को उठाने वाली महिला पत्रकारों से बदसलूकी की गयी है। पहले उन्हें पीटा गया, उनके रास्ते रोके गए और अब एक पत्रकार को बीच रास्ते में हिरासत में ले लिया गया। ऐसी हरकतें करने वाले लोगों या संस्थानों को क्या इस बात का अंदाजा भी होता है कि ऐसे व्यवहार की शिकार लड़कियों के मन-मस्तिष्क पर क्या असर पड़ता है? करीब सात महीने पहले झारखण्ड से एक खबर आई थी, जिसमें नकल के शक में कपड़े उतरवा कर एक छात्रा की तलाशी लेने का आरोप था। इससे बेहद आहत और अपमानित महसूस करने के बाद छात्रा ने घर जाकर खुद को आग लगा ली थी। यह समझना मुश्किल है कि ऐसा करके किसी गड़बड़ी को रोकने की कोशिश की जाती है या एक नई गड़बड़ी को अंजाम दिया जाता है। अगर किसी संस्थान या व्यक्ति को चोरी या नकल का शक है तो क्या इससे निपटने का यही तरीका बचा है कि किसी लड़की को इस तरह अपमानित किया जाए?


आजीवन शोषण, दमन, अत्याचार, अवांछित बर्ताव और अपमान की शिकार रही भारतीय नारी को अब और नये-नये तरीकों से कब तक जहर के घूंट पीने को विवश होना होगा। अत्यंत विवशता और निरीहता से देख रही है वह यह क्रूर अपमान, यह वीभत्स अनादर, यह दूषित व्यवहार। उसके उपेक्षित कौन से पक्ष में टूटेगी हमारी यह चुप्पी? कब टूटेगी हमारी यह मूर्च्छा? कब बदलेगी हमारी सोच। यह सब हमारे बदलने पर निर्भर करता है। हमें एक बात बहुत ईमानदारी से स्वीकारनी है कि गलत रास्तों पर चलकर कभी सही नहीं हुआ जा सकता। यदि हम सच में नारी के अस्तित्व एवं अस्मिता को सम्मान देना चाहते हैं तो! ईमानदार स्वीकारोक्ति और पड़ताल के बिना हमारी दुनिया में न कोई क्रांति संभव है, न प्रतिक्रांति।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »