चन्द्र-विजय को भारत-विजय का घोष बनाये

असाधारण दबावों और चुनौतियों का सामना करते हुए इसरो ने चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को चंद्रमा की 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश रेखा के पास बिल्कुल सटीक तरीके से उतार कर भारत ने विलक्षण इतिहास तो रचा ही है, दुनिया में भारत विरोधी शक्तियों का मुंह भी बंद कर दिया है, अब भारत गरीबी भी दूर कर रहा है, अपनी समस्याओं के समाधान खुद के बल पर हल भी कर रहा है और दुनिया की बड़ी से बड़ी शक्ति से टक्कर लेने की स्थिति में भी पहुंच रहा है। आजादी के अमृतकाल में ऐसी ही अनेक उपलब्धियों की स्पष्ट आहट सुनाई दे रही है।  

इस विलक्षण, अनूठी एवं चमत्कारपूर्ण सफलता के लिये इसरो को, इस मिशन में लगी पूरी टीम को ही नहीं देश की पूरी वैज्ञानिक बिरादरी को जितनी बधाई दी जाए कम है लेकिन इन उत्सव एवं उमंग के क्षणों में भी राजनीति करने वालों पर तरस आता है, भगवान् उन्हें सद्बुद्धि दें। निश्चित ही भारत ने चांद को मुट्ठी में कर लिया है और यह जता दिया है कि कम साधनों एवं खर्चों में भी भारत बड़ी लकीरें खींच सकता है।

निश्चित ही भारत ने वह कर दिखाया, जो विश्व का कोई देश और यहां तक कि अमेरिका, चीन एवं रूस भी नहीं कर सका। इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने चंद्रयान-3 के लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रूव पर सफलतापूर्वक पहुंचाकर देश ही नहीं, दुनिया को चमत्कृत करने का काम किया। चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग एक ऐसा अविस्मरणीय और अद्भुत क्षण है, जो वर्षों तक भारतवासियों को प्रेरित करता रहेगा। यह एक अमिट आलेख है, शानदार उपलब्धि है, जो सचमुच स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी। इस उपलब्धि ने हम भारत के लोगों में जिस उत्साह और उमंग का संचार किया है, वह अकल्पनीय है। इन चमत्कृत करने वाले दृश्यों को भारत के करोड़ों लोगों ने देखा एवं समूचे देश को उत्सवमय बना दिया।

अंतरिक्ष में नये भारत की इस नई, असाधारण एवं ऐतिहासिक उड़ान से समूची दुनिया को लाभ मिलेगा। इस अभियान की अगली चुनौती लैंडिंग के चार-पांच घंटे गुजर जाने पर प्रज्ञान रोवर को चंद्र सतह पर चलाने और चौदह दिनों के एक चंद्र-दिन में लैंडर और रोवर के लिए निर्धारित सारे प्रयोग पूरे करने की है। जाहिर है, ये प्रयोग सिर्फ भारत के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए मायने रखते हैं। अब इस चन्द्रयान से मिलने वाली सूचनाओं से चन्द्रमा पर मानव जीवन की संभावनाओं को पंख लग सके तो कोई आश्चर्य नहीं है। वहां पर जल की उपलब्धता, तापमान, जमीन की स्थिति, उपलब्ध खनिज पदार्थों आदि की जानकारियां एवं टेक्टॉनिक हलचलों का पता चलेगा।

बहरहाल, इसरो का काम कितना पक्का, तीक्ष्ण एवं परिपक्व था, इसका अंदाजा लगाने के लिए चंद्रयान-3 की उतराई का लाइव ग्राफ देखना देश-दुनिया के लिए काफी रहा होगा। यह हर बिंदु पर ठीक वैसा ही रहा, जैसा इसके होने की उम्मीद थी। साइंस-टेक्नॉलजी के मामले में रूस की गति भारत से एक सदी आगे समझी जाती है। इसके बावजूद लूना-25 को पार्किंग ऑर्बिट से लैंडिंग ऑर्बिट में लाने वाले थ्रस्टर्स ने ऑटोमेटिक कमांड समझने में चूक कर दी और वह अस्थिर कक्षा में पहुंचकर नष्ट हो गया। लेकिन चंद्रयान-3 के एक-एक थ्रस्टर ने कमांड के मुताबिक काम किया। यकीनन इसमें बहुत बड़ी भूमिका चंद्रयान-2 से हासिल किए गए तजुर्बे की रही।

चंद्रयान-3 अभियान की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह ठीक ही कहा कि यह विकसित एवं नये भारत का जयघोष है और इससे देश को एक नई ऊर्जा और चेतना मिली है। उन्होंने चंद्रयान-3 की सफलता को जिस तरह नए भारत की नई उड़ान करार देते हुए इसे अमृतकाल की प्रथम प्रभा में अमृत वर्षा की संज्ञा दी, उससे इस यकीन को बल मिलता है कि वर्ष 2047 तक भारत विकसित राष्ट्र बनने के अपने सपने को वास्तव में साकार करने की दिशा में बढ़ रहा है। यह वास्तव में देश की उस वैज्ञानिक चेतना और सूक्ष्म दृष्टि का कमाल है, जो तमाम बाधाओं के बावजूद पिछले 61 साल पूर्व साइकिल से शुरु हुए हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। हमने पहले चांद पर पानी खोजा और अब चांद के दूसरे सिरे पर भी पहुंच गए।

इसरो ने जो इतिहास रचा, वह यही रेखांकित कर रहा है कि नए भारत का निर्माण हो रहा है और वह महाशक्ति बनने की राह पर अग्रसर है। अब यह भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि विश्व पटल पर अपनी और गहरी छाप छोड़ने का भारत का समय आ चुका है। इसके साथ ही यही वक्त है जब इसरो को अपनी महत्वाकांक्षाओं को फिर से नापने की, उन्हें विस्तार देने और सरकार को इस काम में उसकी हर संभव मदद करने की जरूरत है। ताजा उपलब्धि से इसरो की राह में अवसरों की लाइन लगनी तय है।

इसरो के विज्ञानियों और तकनीकी विशेषज्ञों ने अपने लगन, जिजीविषा, तप, त्याग और संकल्प से बेहद कठिन माने जाने वाले कार्य को जिस कुशलता से संपन्न किया, उससे उन्होंने दुनिया में अपनी मेधा का लोहा मनवाया। वे वंदन और अभिनंदन के पात्र हैं। अब यह तय है कि पहले से ही भारत को एक उभरती शक्ति के रूप में देख रहा विश्व समुदाय भारत को और अधिक महत्व देगा। इसरो ने सफलता की जो गाथा लिखी, उससे हमारी अन्य संस्थाओं को भी प्रेरणा लेनी चाहिए और उन्हें भी अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट बनने का संकल्प लेना चाहिए।

इससे ही भारत को विकसित देश बनाने में आसानी होगी। इस ऐतिहासिक घटना से भारत के राजनीतिज्ञों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए कि वे स्वार्थों एवं संकीर्णताओं को त्याग कर देश को बनाने के लिये प्रतिबद्ध बने। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले इस देश की सरकार एक तरफ लोगों की आम जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है तो दूसरी तरफ कोरोना जैसे महासंकट में दुनिया के लिये सहयोगी बनी। वह आतंकवाद मुक्त दुनिया की संरचना करने में जुटी है तो न्यायपूर्ण विश्व-संरचना के उसके उद्घोष दुनिया को भा रहे हैं। खुद के देश में गरीबी का कलंक धोने की उसकी कोशिशें सफलता की सीढ़िया चढ़ रही है। देश में आतंकवाद एवं साम्प्रदायिक हिंसा को कम करने में भी सफलता मिली है। महिलाओं को सुरक्षा का भरोसा हो रहा है, तो बेरोजगारी पर भी काबू पाने के जतन किये जा रहे हैं।

वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करना मोदी के अभियान के प्रमुख संदेशों में से एक है। आर्थिक, कूटनीतिक और तकनीकी क्षेत्र में विकास ने नये भारत के संकल्प को बल दिया है। निश्चित ही चन्द्रयान-3 की सफलता का श्रेय इसरो एवं उसके वैज्ञानिकों को दिया जायेगा, लेकिन प्रधानमंत्री ने अपनी दूरगामी सोच एवं प्रोत्साहन से उनका हौसला बढ़ाया है। 2014 में मंगल मिशन के दौरान, 2019 में चंद्रयान-2 की लैंडिंग के वक्त मोदी खुद इसरो के मिशन कंट्रोल रूम में मौजूद थे, लेकिन चंद्रयान-3 की लैंडिंग के वक्त वे ब्रिक्स के सम्मेलन के लिए जोहानिसबर्ग में थे। उन्होंने वही से अपनी शुभकामनाएं दी एवं भारत पहुंचने के बाद साक्षात् मिलकर ऐसा करने का बोला है।

अब इन सकारात्मक स्थितियों में राजनीति करने की बजाय हमें चंद्रयान-3 की सफलता को लेकर कुछ-न-कुछ संकल्प लेने चाहिए कि अलग-अलग समुदायों के बीच भेदभाव मिटता हुआ दिखाई दे। ऐसा हुआ भी है कि मिशन की सफलता के लिए मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों में प्रार्थना सभाएं की गईं। बिना किसी साम्प्रदायिक एवं जातीय भेद सबने इन ऐतिहासिक क्षणों के साथ स्वयं को जोड़ा है। भारत के 140 करोड़ निवासी यानी 280 करोड़ मुट्ठियां अगर तन जाये तो भारत को दुनिया की महाशक्ति होने से कोई नहीं रोक पाये। जरूरत है उठ खड़े होने एवं जागने की है।

एक नये भारत का अभ्युदय होना निश्चित हैं। इसीलिये सारे वैज्ञानिक काम चन्द्रयान-3 की तरह जोश एवं होश के साथ होने लगे और उन्हें राष्ट्रीय भावना से जोड़ कर देखा जाने लगे तो क्या भारत में कोई नया रामानुजन, सीवी रमन, जगदीशचंद्र बोस एवं एपीजे अब्दूल कलाम खड़ा होने की श्रृंखला नहीं लग जाये? भ्भारतीय विज्ञान ही नहीं, बल्कि भारत का सुखद भविष्य सुनिश्चित है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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