हम कब तक पालेंगे साम्प्रदायिकता का रोग

कांग्रेस और उसके नेता लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव आने से पहले अपनी राजनीति चमकाने के लिए समाज को धर्म और जाति के नाम पर बांटने का काम शुरु कर दिया हैं। लेकिन धार्मिक व जातीय आधार पर की जा रही इस तरह की जहर उगलने वाली राजनीति के चलते धार्मिक सौहार्द बिगड़ा रहा है। पार्टी के ही एक बुर्जुग नेता और पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी ने विदिशा के एक जलसे में शिरकत करते हुए सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने कड़वे बोल बोले है। क्या उनका भाषण कांग्रेस की विचारधारा को पोषित करने वाला है या पार्टी की उम्मीदों को पलीता लगाने वाला भी साबित हो सकता है। कुरैशी ने कहा कि ‘हिन्दुस्तान में 22 करोड़ मुसलमान हैं और एक-दो करोड़ मर भी जाएं तो कोई बात नहीं…।’ यह विडंबना ही है कि ऐसे वक्त पर, जब देश और समाज में सांप्रदायिक सौहार्द को बढावा देने के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के हजारों लोग सड़कों पर शांति-मार्च निकाल रहे हैं ऐसे वक्त में उनके नेता साम्प्रदायिक सौहार्द एवं सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुंचा रहे हैं।

एक तरफ कुरैशी उन्मादी भाषण दे रहे थे, तो दूसरी ओर उसी मध्यप्रदेश के सागर में अपनी चुनावी संभावनाओं को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बड़े वादे व दावे कर रहे थे। क्या यह कांग्रेस का दोगला चरित्र नहीं है? लगता तो यही है कि कुरैशी कांग्रेस की परम्परा एवं सोच को ही आगे बढ़ा रहे हैं। वरना पार्टी में ऐसी संकीर्ण एवं राष्ट्र-विरोधी सोच पर सख्त पहरेदारी होती तो क्या कुरैशी ऐसा दुस्साहस कर पाते।

निश्चित ही पार्टी ही साम्प्रदायिकता एवं जातीयता को बल देती है, तभी एक बुजुर्ग एवं जिम्मेदारी नेता कुरैशी का ‘मुसलमानों ने चूड़ियां नहीं पहन रखीं’ जैसे बयानों पर पार्टी मौन रह जाती है। ऐसे एक समुदाय विशेेष को उकसाने वाले बयान निश्चित ही राजनीतिक प्रेरित होते हैं। जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जायेगा, समुदायों को भड़काने वाले बयानों में तीव्रता एवं उग्रता देखने को मिलेगी। चुनावी छाया में लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सामाजिक समरसता को धोने की कुचेष्टाएं बढ़-चढ़ कर देखने को मिलेगी।

यह पहली बार बार नहीं है, जब अजीज कुरैशी ने कोई आपत्तिजनक बयान दिया है। गवर्नर पद पर रहते हुए भी वह भाषायी मर्यादाओं का उल्लंघन कर चुके हैं। लेकिन इस वक्त उनके बयान से उनकी ही पार्टी को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। मध्यप्रदेश में चुनावी प्रक्रिया भले न शुरू हुई हो, मगर दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियां- भाजपा और कांग्रेस जोर-शोर से प्रचार में जुट गई हैं। ऐसे में, अपने बड़बोलेपन एवं उच्छृंखलता से कुरैशी ने विरोधी दल के हाथों में धार्मिक धु्रर्वीकरण का एक मुद्दा तो थमा ही दिया है। वैसे इस तरह के उन्मादी एवं विषवमन करने वाले बयानों से कितनी राजनीतिक लाभ की रोटियां सिकती है, कहा नहीं जा सकता, लेकिन इनसे सामाजिक समरसता निश्चित ही धुंधलाती है। ऐसा नहीं कि कुरैशी इस हकीकत से अनभिज्ञ है, मगर सस्ती लोकप्रियता की चाह और तालियों की भूख सियासी लोगों को हमेशा जिम्मेदारी एवं राष्ट्र के प्रति वफादारी से दूर करती है।

भले ही कुछ लोग जाति, धर्म के नाम पर समाज में घृणा फैलाते हों पर इसी समाज में ऐसे लोग भी हैं जिनकी बदौलत देश और समाज में परस्पर प्रेमपूर्वक मिल-जुल कर रहने की भावना जिंदा है। जहां एक ओर देश में जाति और धर्म के नाम पर कुछ लोग नफरत फैला कर अपने कृत्यों से माहौल बिगाड़ रहे हैं, वहीं अनेक स्थानों पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के सदस्य भाईचारे और सद्भाव के अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहे हैं।

जहां हरियाणा के मेवात क्षेत्र का नूंह बजरंग दल-विहिप के जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा से दहल गया था, वही देश और समाज में सांप्रदायिक सौहार्द को बढावा देने के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के हजारों लोग सड़कों पर शांति-मार्च निकाल रहे हैं। बीते शुक्रवार को ही मुंब्रा कौसा के शांति-मार्च में हजारों मुस्लिमों ने शिरकत की थी। उससे पहले नूंह, मेवात में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद दोनों समुदायों के लोग हाथ में हाथ डालकर जिस तरह खड़े हुए, उससे देश के अमनपसंद लोगों का यह यकीन फिर बहाल हुआ कि चंद सिरफिरे लोग अपनी हरकतों से इस देश के सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट नहीं पहुंचा सकते। ऐसे में, कुरैशी के आपत्तिजनक बयान की निंदा ही नहीं, घोर भर्त्सना की जानी चाहिए।

देश आज चांद पर अपने यान उतारने के जश्न की तैयारी में जुटा है, दिल्ली में जी-20 का विश्व हस्तियों का आयोजन हो रहा है तब किसी संकीर्ण साम्प्रदायिकता को पंख फैलाने से रोकना जरूरी है। मगर जिस तरह से कुरैशी ने देश में अल्पसंख्यकों की उपेक्षा का हवाला देते हुए विषवमन किया, उसको सहजता में नहीं लिया जा सकता। कुरैशी जैसे संकीर्णतावादी लोगों को यह याद दिलाने की जरूरत है कि भारत की तरक्की में सभी समुदायों के होनहार-समर्पित, अमन परस्ती लोगों का योगदान है लेकिन कुरैशी जैसे तथाकथित अवसरवादी एवं साम्प्रदायिकतावादी अपने राजनीतिक लाभ के लिये देश तोड़क बातों से अपने-अपने समुदायों का ही नुकसान करते हैं। भारत को अपनी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से लड़ने के लिए सामाजिक भाईचारे की आज पहले से कहीं ज्यादा आवश्यकता है।

आज भारत आगे बढ़ रहा है, तरक्की कर रहा है, गरीबी दूर हो रही है, शिक्षा का विस्तार हो रहा है, विकास की नयी गाथाएं लिखी जा रही है, जिसका लाभ सभी को मिलेगा, मुस्लिम समुदाय भी उसमें बराबर का हिस्सेदार होगा। बावजूद इससे यह वाकई अफसोसजनक है कि उम्र के जिस पड़ाव पर कुरैशी आज खड़े हैं, उन्हें अपने अनुभवों से अपनी समुदाय के लिए सौहार्द एवं सद्भावना की नई खिड़कियां खोलनी चाहिए थी, मगर वह उकसाने वाली बोली बोल रहे हैं। हालांकि, यह एक मजहब या बिरादरी की बात नहीं है, सभी धर्मों और बिरादरियों में ऐसे ख्याल के लोग मौजूद हैं। जरूरत उन्हें आईना दिखाते रहने की हैं कि तरक्की एवं अमन का रास्ता खून-खराबे से नहीं, भाईचारे, सौहार्द और साझेदारी से होकर ही नये दरवाजे खोलता है। हर जगह साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने में अपना हित साधने वालोें की भी कमी नहीं होती।

बाइस करोड़ में बाइस सौ भी कुरैशी जैसे संकीर्ण लोग नहीं होगे, इनमें भी राजनेताओं से लेकर वे लोग भी शामिल होते हैं जो खुद को धर्म का ठेकेदार कहलाना पसंद करते हैं। इन चंद लोगों से ही पूरी कौम की बदनामी होने से बचाना होगा। सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रत्येक देशवासी को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि प्रेम से प्रेम, द्वेष से द्वेष, नफरत से नफरत, घृणा से घृणा और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। हमें सोचना चाहिए कि हम अच्छे हिंदू, मुसलमान, सिक्ख या ईसाई अथवा किसी अन्य संप्रदाय के सदस्य होने के साथ-साथ अच्छे भारतवासी भी हैं। हमें यह जानना चाहिए कि सभी धर्म आत्मिक शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन अपनाते हैं। सभी धर्मों में छोटे-बड़े का भेद अनुचित ही माना गया है। सभी धर्म और उनके प्रवर्तक सत्य, अहिंसा, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते रहे हैं इसलिए सच्चे धर्म के मूल में भेद नहीं है। फिर कुरैशी जैसे लोग क्यों इंसान से इंसान को बांटने की कुचेष्टा करते हैं।

आमजन की जागरूकता एवं सहयोग से ही सांप्रदायिक अपराध एवं उन्माद को रोका जा सकता है। सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली घटनाओं को प्रशासनिक स्तर पर सख्ती के साथ दबाया जाना चाहिए। सोशल मीडिया इस में आग में घी डालने जैसा कार्य करता है। आपत्तिजनक कंटेंट पर निगरानी रखना आवश्यक है। साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म वॉट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर किसी भी तरह के तथ्यहीन, भ्रामक, झूठे एवं हिंसक, आपत्तिजनक, भड़काऊ मैसेज व वीडियो पोस्ट न करें और न ही अफवाहों को प्रसारित करने में अपना योगदान दें। कुरैशी जैसे लोगों की कट्टरतावादी सोच, उन्मादी बोल एवं कपोलकल्पित बातों से सावधान रहना चाहिए।

अपने विवेक का सही इस्तेमाल करते हुए घटनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में समझना लोगों के लिए आवश्यक है। यदि हम अपने राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधना चाहते हैं, दुनिया की एक महाशक्ति बनाना चाहते है तो इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी भारतीयों को अपना भाई समझे, चाहे वे किसी भी धर्म या मत को मानते हों। वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र उद्घोषित करने वाले राष्ट्र में “हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आपस में सब भाई-भाई” का नारा ही हमारी राष्ट्रीय अखंडता को बलशाली बना सकेगा।

ललित गर्ग
ललित गर्ग

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