ब्रिटिश हुकूमत को  खुली चुनौती देने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया

-23 मार्च डॉ. राम मनोहर लोहिया जयंती पर विशेष-

भारतीयों में समाजवाद का प्रचार प्रसार हो सभी एक दूसरे के साथ समता पूर्वक रहें। जिसमें जांत पांत ऊंचनीच धर्म का कोई इस्तक्षेप ना हो ऐसे “सर्वजन समभाव” वाले एक सूत्रीय जीवन पद्धति वालें भारत का सपना डॉ. राम मनोहर लोहिया ने देखा थ। डा. लोहिर्या देश के उन गिने चुने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से रहे हैं जिन्होने ब्रिटिश हुकूमत के सामने पूरे हठ और अधिकार से निर्भिकता पूर्वक अपनी बातं रखी।

डा. लोहिया का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर करने के शहजादपुर मोहल्ले में 23 मार्च 1908 को हुआ। उन्होंने 1916 में प्राथमिक शिक्षा टंडन पाठशाला अकबरपुर में तथा माध्यमिक शिक्षा विश्वेश्वर नाथ हाई स्कूल अकबरपुर से प्राप्त की। युवावस्था में ही उन्होंने देश की परतंत्रतता में अपने आप को जकड़ा हुआ पाया उन्हें उनकी मन और आत्मा से देश की गुलामी से छुटकारा पाने के लिए प्ररेणा मिलती रही। उसी प्रेरणा से उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।

डा. राम मनोहर लोहिया ने ब्रिटिश सरकार की बढ़ती हिंसा और अत्याचार के खिलाफ लार्ड लिनलिथगों को फटकार भरा एक लंबा पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने बेलाग उन्हें उनके काले कारनामों का खुलासा करते हुए चुनौती दी यी कि (जैसा कि लार्ड लिनलिथगो का कहना था कि उन्होंने हजार से भी कम देश भक्तों को मारा है।) सध्चाई वह है कि पचास हजार से अधिक देशभक्तों की आपने जानें ली हैं और कई गुना लोगों को शारीरिक क्षति पहुंची है। मुझे केवल आप दो सप्ताह तक बिना पुलिस हस्तक्षेप के यदि देशभर में घूमने का मौका दें तो आपको ऐसे दस हजार से भी अधिक लोगों के मान – पते दे सकता हूं। बाकी नामों को एकत्रित करना कठिन होगा। शायद यह मेरे देश के आजाद होने पर ही संभव होगा। 

 डा. लोहिया ने अपने पत्र में आगे और लिखा था गत छह महीनों से और देश भर में कई जलियांवाला बाग काण्ड घटित हुये हैं। लेकिन एक परिवर्तन आया है। आपकी व्यवस्था काफी खूनी रही है किन्तु हमारी भीड़ अब घिरी हुई नहीं हैं। निहत्थे आम हिन्दुस्तानियों ने गोलियों का सामना करने में दैहिक साहस का परिचय दिया है और आगे बढ़ते रहे हैं। हम तो लगभग सफल ही हो गये थे। देश के 15 प्रतिशत क्षेत्र में से अधिक आपके प्रशासन को उखाड़ दिया गया था। आपकी सेना ने हमारे स्वतंत्र इलाके को दुबारा जीत लिया क्या ऐसा मानते हैं कि आप ऐसा कर पाते वदि हमारे लोग भी हिंसक हो जाते? आपकी सेना दो स्वाभाविक खेमों में बंट जाती भारतीय और अंग्रेजों में।

श्रीमान् लिनलिथयों, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि यदि हमने सशस्त्र बगावत की योजना बनाई होती, लोगो से हिंसा अपनाने के लिये कहा होता तो आज गांधी जी स्वतंत्र जनता और उसकी सरकार से आपके प्राणदण्ड को रुकवाने के लिय कोशिश कर रहे होते। देश की गुलामी के दिनों में ब्रिटिश हुकूमत के एक प्रमुख व्यक्ति को खुले आम चुनौती के लिये ललकारता और तो और उसके प्राणदण्ड की सजा भी मुकर्रर कर उसे भेजना बड़े दिल गुर्दे की बात थी। डा. लोहिवा का स्वतंत्र भारत का स्वप्न था फिर उस आजाद भारत में सार्वजनिक एकता अखण्डता स्थापित होने पर ही उनको देर बो स्पान की पूर्णता थी राष्ट्रीय चरित्र के बहुत से निर्माता कर्म, उदारता के गुणों पर ब हुत जोर देते हैं पर ऐसे चरित्र की नींव नहीं डाल पाते जैसा कि लोहिया में सेवाएं किया।

देश के ऐसे महान सपूत की भला किसे वाद आती है। डा. लोरिया के जन्म स्थान वाले मूल मकान का है। पता नहीं है अब उनकी जन्मभूषि पर ले देकर उनकी एक आदमकद प्रतिमा है बस! लोहिया के स्वानीव अकुडावियों का कहना है कि वर्षों के कड़े संघद्र के बाद ही 26 अक्टूबर 1919 को वह प्रतिमा शह जादपुर चौक में स्थापित हो पावी थी। जान परेशानियों के बाद लगी इस प्रतिषा को डा. लोहिया की जन्मस्थली होने के कारणন্স वहां पूरा सम्मान मिलना चाहिये था। लेकिन प्रतिमा के आसपास काली अतिक्रमण है। इसके धारो तरफ आज भी कूड़े कचरे का अम्बार लगा हुआ है। क्वां हम अपने देश के उन कर्णधारों को जिन्होंने अपनी एक एक बूंद रक्त के होम से देश को स्वतंत्र कराया है, ऐसी ही श्रद्धांजलि देंगे?

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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