जीवन के लिये प्रकृति-वन्यजीवों का संरक्षण जरूरी

-विश्व वन्यजीव दिवस- 3 मार्च, 2025-

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कई प्रजाति के जीव-जंतु, प्राकृतिक स्रोत एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं, जिससे पृथ्वी असंतुलित हो रही है। विलुप्त होते जीव-जंतु और वनस्पति की रक्षा के लिये विश्व-समुदाय को जागरूक करने के लिये ही विश्व वन्यजीव दिवस को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया के लुप्त होते वन्य जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। जिसकी शुरुआत थाईलैंड द्वारा दुनिया के जंगली जीवों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मनाने के लिए प्रस्तावित किया गया था।। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वन्यजीवों के पारिस्थितिकी, आनुवांशिक, वैज्ञानिक, सौंदर्य सहित विभिन्न प्रकार से अध्ययन अध्यापन को बढ़ावा देने को प्रेरित किया। विभिन्न जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों के अस्तित्व की रक्षा भी इसका उद्देश्य कहा जा सकता है। साल 2025 की थीम है, “वन्यजीव संरक्षण वित्तः लोगों और ग्रह में निवेश”, यह थीम वन्यजीव संरक्षण के लिए नए वित्तीय समाधानों की खोज और उनका आदान-प्रदान करने के लिए बनाई गई है।

वन्यजीव प्रजातियों, उनके आवासों, पारिस्थितिकी तंत्रों का निरंतर नुकसान एवं वनों का दोहन पृथ्वी पर मनुष्यों सहित सभी जीवन को खतरे में डाल रहा है। दुनिया भर के लोग अपने जीवन के लिए प्रकृति पर निर्भर हैं। भारत एवं दुनिया में कई वन्य जीव लुप्त होने के कगार पर हैं। शेर, चीता, बाघ, सफ़ेद तेंदुआ, गैंडा, जंगली भैंसा, गंगीय डॉल्फ़िन, लाल पांडा, नीलगिरि लंगूर, कस्तूरी हिरन, संगाई हिरन, बारहसिंघा, कश्मीरी हिरन, जंगली गधा, एक सींग वाला गैंडा, तेंदुआ, अजगर, सियार, जरख, जंगली बिल्ली, भेड़िया, नेवला, सेंड ग्राउज़ झाऊ चूहा एवं गौरया आदि अनेक वन्यजीव प्रजातियां लुप्त हो रही है। कम मांस खाने और लुप्तप्राय जानवरों, जैसे हाथीदांत से निर्मित वस्तुओं से परहेज आदि वन्यजीवों को बचाने की मुहिम में कारगर है। यह दिवस महत्वपूर्ण रूप से लुप्तप्राय वन्य जीव प्रजातियों के भविष्य को संरक्षित करने, उनकी आदतों और पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्वास में सहायता करने और मानव जाति द्वारा इन जानवरों के सतत उपयोग को प्रोत्साहित करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करेगा।

आज चिन्तन का विषय न तो रूस-यूक्रेन युद्ध है और न मानव अधिकार, न कोई विश्व की राजनैतिक घटना और न ही किसी देश की रक्षा का मामला है। चिन्तन एवं चिन्ता का एक ही मामला है लगातार लुप्त होती वन्य जीव प्रजातियां, विकराल एवं भीषण आकार ले रही गर्मी, सिकुड़ रहे जलस्रोत, विनाश की ओर धकेली जा रही पृथ्वी एवं प्रकृति के विनाश के प्रयास। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता प्रदूषण, नष्ट होता पर्यावरण, दूषित गैसों से छिद्रित होती ओजोन की ढाल, प्रकृति एवं पर्यावरण का अत्यधिक दोहन- ये सब पृथ्वी एवं पृथ्वीवासियों के लिए सबसे बडे़ खतरे हैं और इन खतरों का अहसास करना ही विश्व वन्यजीव दिवस का ध्येय है। हमारा सुविधावादी नजरिया एवं जीवनशैली पृथ्वी, उसके पर्यावरण, प्रकृति और वन्य जीवों के लिये एक गंभीर खतरा बन कर प्रस्तुत हो रहा हैं।

लुप्तप्राय जंगली जानवरों और पौधों के संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत है। सूखे, नए रेगिस्तान, आग और बाढ़ की रोकथाम के लिए वन्यजीवों का संरक्षण आवश्यक है। जंगली जानवरों और पौधों का यह संरक्षण सुनिश्चित करता है कि मनुष्यों और वन्यजीवों की आने वाली पीढ़ियाँ प्रकृति से घिरी रहेंगी, तभी पृथ्वी का जीवन संभव होगा। जरूरत है हम वन्यजीवों एवं प्रकृति से प्यार करेे और वन्यजीवों के महत्व को समझें। भविष्य की आशा मानवीय कब्जे एवं दोहनके प्रभाव को रोकने में है – इसके लिए पहले ही बहुत देर हो चुकी है, बल्कि उस प्रभाव की सीमा के बारे में बेहतर समझ बनाने और उसके शासन के लिए एक नई नैतिकता बनाने में है। तभी मानव जीवन एवं वन्य जीवों की अन्योन्याश्रयता को देख पाएंगे, तभी प्रकृति को क्षमाशील, उदार और लचीला पाएंगे। तभी हम प्रकृति दोहन को मात दे सकेंगे तथा उसकी मिठास का स्वाद लेने और उसकी वरिष्ठता का सम्मान करने की पात्रता प्राप्त कर सकेंगे। इसके लिये यह दिवस वन्यजीवों और वनस्पतियों के विविध रूपों का जश्न मनाने और उनके संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने का दिन है। यह वन्यजीव अपराधों के खिलाफ़ लड़ाई को तेज करने का आह्वान करता है।

पृथ्वी पर प्रजातियों का विलुप्त होना स्वाभाविक रूप से होता है, लेकिन मनुष्यों की भागीदारी विलुप्त होने की दर को तेज करती है। विलुप्त होने के कुछ कारणों में निवास स्थान का नुकसान, जलवायु परिवर्तन, आक्रामक प्रजातियाँ, अत्यधिक मछली पकड़ना और शिकार शामिल हैं। वन्यजीव संरक्षण पर्यावरण में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और प्रजातियों को और अधिक विलुप्त होने से भी रोकता है, जो हमें हरित समृद्धि से समृद्ध जीवन बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। वन्य जीव एवं पर्यावरण के प्रति संवेदनशील एवं पृथ्वी के संरक्षण के लिये जागरूक अभियान जरूरी है। वन्य जीवों के प्रति उपेक्षा एवं लापरवाही ने न केवल इंसानों के जीवन को खतरे में डाला है बल्कि पृथ्वी, प्रकृति एवं पर्यावरण पर भी घातक असर डाला है। दुनिया में पृथ्वी के विनाश, प्रकृति प्रदूषण एवं जैविक संकट को लेकर काफी चर्चा हो रही है।

मनुष्य प्रकृति एवं वन्यजीवों के साथ अनेक वर्षाें से छेड़छाड़ कर रहा हैं, इसे देखने के लिए हमें ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। धरती पर बढ़ रही बंजर भूमि, फैलते रेगिस्तान, जंगलों का विनाश, लुप्त होते पेड़-पौधे और जीव जंतु, दूषित होता पानी, शहरों में प्रदूषित हवा और हर साल बढ़ते बाढ़ एवं सूखा, ग्लोबल वार्मिंग, वैश्विक तापमान वृद्धि, ग्लेशियर पिघलना, ओजोन का क्षतिग्रस्त होना आदि इस बात का सबूत हैं कि, हम वन्यजीवों, धरती और पर्यावरण की सही तरीकें से देखभाल नहीं कर रहें हैं। जिससे ग्लोबल वार्मिग एवं जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं आज हमारे सामने हैं। ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। जिस पृथ्वी को हम माँ का दर्जा देते हैं उसे हम खुद अपने ही हाथों दूषित एवं प्रताड़ित करने में कैसे लगे रहते हैं? अगर वन्यजीवों के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाए तो मानव जीवन कैसे सुरक्षित एवं संरक्षित रहेगा?

जल, जंगल और जमीन इन तीन तत्वों से पृथ्वी, वन्यजीवों और प्रकृति का निर्माण होता है। इनके बिना जीवन अधूरा है। विश्व में ज्यादातर समृद्ध देश वही माने जाते हैं जहां इन तीनों तत्वों का बाहुल्य है। बात अगर इन मूलभूत तत्व या संसाधनों की उपलब्धता तक सीमित नहीं है। आधुनिकीकरण के इस दौर में जब इनका अंधाधुन्ध दोहन हो रहा है तो ये भी खतरे में पड़ गए हैं। आप ही बताइये कि कहां खो गया वह आदमी जो स्वयं को कटवाकर भी वृक्षों को कटने से रोकता था? गोचरभूमि का एक टुकड़ा भी किसी को हथियाने नहीं देता था। जिसके लिये जल की एक बूंद भी जीवन जितनी कीमती थी। कत्लखानों में कटती गायों की निरीह आहें जिसे बेचैन कर देती थी। जो वन्य पशु-पक्षियों को खदेड़कर अपनी बस्तियों बनाने का बौना स्वार्थ नहीं पालता था। अब वही मनुष्य अपने स्वार्थ एवं सुविधावाद के लिये सही तरीके से प्रकृति का संरक्षण न कर पा रहा है और उसके कारण बार-बार प्राकृतिक आपदाएं कहर बरपा रही है।

रेगिस्तान में बाढ़ की बात अजीब है, लेकिन हमने राजस्थान में अनेक शहरों में बाढ़ की विकराल स्थिति को देखा हैं। जब मनुष्य प्रकृति एवं वन्यजीवों का संरक्षण नहीं कर पा रहा तो प्रकृति भी अपना गुस्सा कई प्राकृतिक आपदाओं के रूप में दिखा रही है। वह दिन दूर नहीं होगा, जब हमें शुद्ध पानी, शुद्ध हवा, उपजाऊ भूमि, शुद्ध वातावरण एवं शुद्ध वनस्पतियाँ नहीं मिल सकेंगी। इन सबके बिना हमारा जीवन जीना मुश्किल हो जायेगा। आवश्यक है-मानव स्वभाव का प्रकृति एवं वन्यजीवों के साथ तादात्म्य स्थापित हो। सहज रिश्ता कायम हो। जीवन शैली में बदलाव आये। हर क्षेत्र में संयम की सीमा बने। हमारे दिमागों में भी जो स्वार्थ एवं सुविधावाद का शैतान बैठा हुआ है, उस पर अंकुश लगे। सुख एवं सुविधावाद के प्रदूषण के अणु कितने विनाशकारी होते हैं, सहज ही विनाश का रूप ले रही प्रकृति एवं वन्यजीवों की विनाशलीला को देखकर कहा जा सकता है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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