यौन अत्याचारों के बढ़ने की त्रासदी पर लगाम लगे

-यौन शोषण के विरुद्ध संघर्ष का विश्व दिवस -4 मार्च, 2025-

यौन शोषण दुनिया के लिए बड़ी समस्या है, जो दुनिया भर में है। हालांकि कुछ देशों में महिलाएं अधिक असुरक्षित एवं यौन उत्पीड़न, शोषण एवं हिंसा की शिकार हैं, इनमें दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी यूरोप और कुछ लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों शामिल हैं, भारत की स्थिति भी बहुत ज्यादा अच्छी नहीं कहीं जा सकती। वेश्यावृत्ति के उद्देश्यों के लिए इन क्षेत्रों की तस्करी वाली महिलाओं को आम तौर पर तथाकथित विकसित दुनिया के देशों में ले जाया जाता है। महिलाओं को इसी त्रासदी से मुक्ति दिलाने के लिये ही दुनियाभर में 4 मार्च को यौन शोषण के विरुद्ध संघर्ष का विश्व दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य महिलाओं को यौन शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित करना है। दुनियाभर में महिलाओं और बच्चों के साथ रोजाना कई प्रकार के यौन शोषण के मामले सामने आते रहते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि हर दिन औसतन आठ महिलाएं, लड़कियां और अक्सर युवा लड़कों का यौन शोषण किया जाता है।

यौन उत्पीड़न किसी भी प्रकार का अवांछित यौन प्रस्ताव, यौन पक्ष के लिए अनुरोध, यौन प्रकृति का मौखिक या शारीरिक आचरण या इशारा, या यौन प्रकृति का कोई अन्य व्यवहार है, जिसकी उचित रूप से अपेक्षा की जा सकती है या जिसे किसी अन्य के लिए अपमान या अपमान का कारण माना जा सकता है, जब ऐसा आचरण काम में बाधा डालता है, जो सहायता कर्मियों द्वारा साथी सहायता कर्मियों के विरुद्ध किया जाता है। यूनिसेफ ऐसे सभी प्रकार के यौन दुराचार, यौन उत्पीडन, अत्याचार और यौन हिंसा से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है। संयुक्त राष्ट्र यौन शोषण और यौन दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के बीच अंतर करता है। यौन शोषण एक यौन प्रकृति का वास्तविक या धमकी भरा शारीरिक अतिक्रमण है, चाहे बलपूर्वक या असमान या बलपूर्वक परिस्थितियों में, सहायता कार्यकर्ताओं द्वारा उन बच्चों और परिवारों के खिलाफ किया जाता है जिनकी हम सेवा करते हैं।

यौन उत्पीड़न समाज में हर जगह पसरा है, कार्यस्थल, शैक्षणिक संस्थान और घर से लेकर धार्मिक स्थलों में महिलाएं एवं बालिकाएं असुरक्षित है। ग्रामीण इलाकों में 26 प्रतिशत महिलाएं, शहरी इलाकों में 21 प्रतिशत और उपनगरीय इलाकों में 18 प्रतिशत महिलाएं यौन उत्पीड़न की शिकार होती हैं। जो महिलाएं अपनी आय का मुख्य स्रोत टिप पर निर्भर रहती हैं, उनके यौन उत्पीड़न की संभावना दोगुनी होती है। कॉलेज के दो-तिहाई छात्र यौन उत्पीड़न का अनुभव करते हैं। 12-17 साल की उम्र के 1.6 प्रतिशत बच्चे बलात्कार या यौन उत्पीड़न के शिकार होते हैं। यौन उत्पीड़न का शिकार हुई चार किशोर बालिकाओं एवं बच्चों में से लगभग तीन यानी 74 प्रतिशत कोई ऐसी बालिका या बच्चे अपने ही किसी परिचित से हुए, जिसे वे अच्छी तरह से जानती थे। यौन शोषण कई तरह से किया जाता है, जैसे अवांछित यौन स्पर्श 49 प्रतिशत, साइबर यौन उत्पीड़न 40 प्रतिशत, अवांछित जननांग प्रदर्शन 30 प्रतिशत, शारीरिक रूप से पीछा किया जाना 27 प्रतिशत और यौन उत्पीड़न 23 प्रतिशत है।

यह दिवस देश एवं दुनिया में महिलाओं और बालिकाओं के साथ हो रहे यौन शोषण के मामलों पर लगाम लगाने के लिये जागरूकता की मुहिम है। इसका मुख्य उद्देश्य यौन शोषण और वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं को बचाकर उन्हें सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित करना भी है। महिलाओं एवं बालिकाओं पर बढ़ते यौन अत्याचारों को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि इक्कीसवीं सदी का सफर करते हुए तमाम तरह के विकास के वायदे खोखले साबित हो रहे हैं। भारत के लिये निश्चित रूप से यह चिंताजनक है और हमारी विकास-नीतियों पर सवाल भी उठाती है। बड़ा सवाल तो तब खड़ा हुआ जब सुप्रीम कोर्ट में पेश आंकड़ों के मुताबिक 2016 में ही देश भर में करीब एक लाख बच्चे यौन अपराधों के शिकार हुए।

कितनी विडम्बना है कि देश में हम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा बुलन्द करते हुए एक जोरदार मुहिम चला रहे हैं उस देश में लगातार बालिकाएं यौन शोषण का शिकार हो रही है। यह दाग ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प पर भी लगा है और यह दाग हमारे द्वारा नारी को पूजने की परम्परा पर भी लगा है। लेकिन प्रश्न है कि हम कब बेदाग होंगे? अच्छे भविष्य के लिए हम बेटियों की पढ़ाई से ही सबसे ज्यादा उम्मीदें बांधते हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे हमारे संकल्प को बताते हैं, हमारी सदिच्छा को दिखाते हैं, भविष्य को लेकर हमारी सोच को जाहिर करते हैं, लेकिन वर्तमान की हकीकत इससे उलट है। वे पढ़ाई में अपने झंडे भले ही गाड़ दें, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने से रोकने की क्रूरताएं कई तरह की हैं। उसका मुख्य कारण है सदियों से चली आ रही कुरीतियाँ, अंधविश्वास व बालिकओ को भोग्या समझने की विकृत मानसिकता।

बालिकाओं के साथ होने वाली त्रासद एवं अमानवीय घटनाएं -निर्भया कांड, नितीश कटारा हत्याकांड, प्रियदर्शनी मट्टू बलात्कार व हत्याकांड, जेसिका लाल हत्याकांड, रुचिका मेहरोत्रा आत्महत्या कांड, आरुषि मर्डर मिस्ट्री की घटनाओं में पिछले कुछ सालों में इंडिया ने कुछ और ऐसे मौके दिए जब अहसास हुआ कि भू्रण में किसी तरह नारी अस्तित्व बच भी जाए तो दुनिया के पास उनके साथ और भी बहुत कुछ है बुरा करने के लिए। बहशी एवं दरिन्दे लोग ही बालिकाओं को नहीं नोचते, समाज के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वाले लोग और पंचायतंे, तथाकथित राम-रहीम जैसे धर्मगुरु भी बालिकाओं की स्वतंत्रता एवं अस्मिता को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं, स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी यौन उत्पीड़न एवं हिंसक की त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है।

यौन शोषण के विरुद्ध संघर्ष का विश्व दिवस का यह अवसर इन त्रासद एवं क्रूर स्थितियों पर आत्म-मंथन करने का है, क्योंकि बालिकाओं एवं महिलाओं के समावेश, न्याय व सुरक्षा की स्थिति को बताने वाले वैश्विक शांति व सुरक्षा सूचकांक के 177 देशों में भारत का 128वां स्थान है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के विरूद्ध अपराध में राष्ट्रीय औसत 66.4 प्रतिशत है। राजधानी दिल्ली का स्थान 144.4 अंकों के साथ सर्वाेच्च है। माना जाता है कि 90 प्रतिशत यौन उत्पीड़न जान-पहचान के व्यक्ति ही करते हैं। यानी बालिकाएं अपने ही घर या परिचितों के बीच सबसे ज्यादा असुरक्षित है।

बालिकाओं एवं महिलाओं के खि़लाफ़ हो रहे अपराध, ख़ासतौर पर यौन अपराध के ज्यादातर मामले सामने नहीं आ पाते, विशेषतः बालिकाएं समझ ही नहीं पाती कि उनके साथ कुछ गलत हो रहा है। अगर वे समझती भी हैं तो डांट के डर से अभिभावकों से इस बारे में बात नहीं करती हैं। महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय के अध्ययन में भी यही बात सामने आई है। बालिकाओं पर बढ़ रहे यौन अपराधों पर नियंत्रण पाने के लिये व्यापक प्रयत्नों की अपेक्षा है। बालिकाओं एवं बच्चों से खुलकर बात करें। उनकी बात सुने और समझें। अगर बालिकाओं एवं बच्चे कुछ ऐसा बताते है तो उसे गंभीरता से लें। इस समस्या को हल करने की कोशिश करें। पुलिस में बेझिझक शिकायत करें। बालिकाओं एवं बच्चों को ’गुड टच-बैड टच’ के बारे में बताएं- बालिकाओं एवं बच्चों को बताएं कि किस तरह किसी का उनको छूना ग़लत है।

बालिकाओं के आस-पास काम करने वाले लोगों की पुलिस वेरिफिकेशन होनी चाहिए। जब कोई अपराध करता हुआ पकड़ा जाता है तो उसे फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के ज़रिए जल्द से जल्द सज़ा मिलनी चाहिए। अपराधियों को जल्द सज़ा समाज में सख्त संदेश देती है कि ऐसा अपराध करने वाले बच नहीं सकते। बालिका एवं बच्चों के यौन अपराधियों को सज़ा देने के लिए खास कानून है- पॉक्सो यानि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस। इस कानून का मकसद बालिकाओं एवं बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों को जल्द से जल्द सजा दिलाना है, इस कानून का सही परिप्रेक्ष्य में तत्परता से पालन होना चाहिए।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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