विदेशी महिलाओं से दुष्कर्म से शर्मसार होता देश

– ललित गर्ग  –


अतिथि देवो भवः भारतीय संस्कार में मेहमान को भगवान का दर्जा दिया गया है, लेकिन आए दिन विदेशी मेहमानों के साथ हो रहे अपराध, यौन-दुराचार एवं व्यभिचार इसे धता बता रहे हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद विदेशियों के साथ होने वाले अपराध कम नहीं हो रहे, ऐसी ही दो विदेशी महिलाओं संग हुई दरिंदगी की घटनाओं को सुन भारतीय लोगों का दिल दहल गया। कर्नाटक के हंपी में इस्राइली पर्यटक समेत दो महिलाओं के साथ गैंगरेप की घटना का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि दिल्ली में एक ब्रिटिश पर्यटक से दुराचार का घृणित मामला सामने आया है। थोड़े-थोडे़ अन्तराल के बाद होने वाली ऐसी घटनाएं न केवल शर्मसार कर रही है बल्कि भारत के संस्कारों एवं अस्मिता पर भी दाग लगा रही है। हाल के दिनों में भारत में यौन अपराधों की बाढ़-सी आई हुई है। न केवल विदेशी बल्कि भारतीय महिलाओं के साथ घृणित यौन अपराधों की इन तमाम घटनाओं को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस नैतिक पराभव का कारण क्या है? कहीं न कहीं ये जीवन मूल्यों में क्षरण एवं विकृत होती मानसिकता का भी परिचायक है। दरअसल, इंटरनेट और कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री की बाढ़-सी आई हुई है। देश का युवा उसकी चपेट में आकर भटकाव की राह में बढ़ रहा है, जिसे नियंत्रित करना सरकार एवं प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए एवं सामाजिक जागृति का माहौल भी बनाया जाना चाहिए।


निश्चय ही विदेशी महिलाओं के साथ होने वाले ऐसे घिनौने एवं दुराचारी कृत्य देश की छवि को धूमिल करने वाले है। हंपी की घटना तो भयावह थी, जिसमें रात में कैंपिंग कर रहे तीन पर्यटकों को नहर में फेंक दिया गया और तीन अपराधियों ने इस्राइली महिला व एक भारतीय महिला से सामूहिक दुष्कर्म किया। दोनों महिलाओं को अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहीं नदी में फेंके गए एक पर्यटक की मौत हो गई, जिसका शव बरामद कर लिया गया। पर्यटकों में एक अमेरिकी व दो भारतीय थे। बदमाशों ने न केवल दुष्कर्म किया बल्कि मारपीट व लूटपाट भी की। हालांकि, तीनों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन देश की प्रतिष्ठा को जो आंच आई है, उसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं। इसने न सिर्फ समाज की छवि को धूमिल किया, बल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर भी प्रभाव डाला है। यह भारतीय पर्यटन कोे आहत कर सकता है, बहुत संभव है कि विदेशी सरकारें भारत आने वाले पर्यटकों को लेकर कोई नकारात्मक एडवाइजरी जारी करें।


समाज विज्ञानियों को आत्ममंथन करना होगा कि यौन अपराधों को लेकर सख्त कानून बनने के बावजूद इस आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? विदेशों में भारत की छवि यौन अपराधियों के चलते लगातार क्षत-विक्षत हो रही है। गाहे-बगाहे सुनसान पर्यटक स्थलों पर यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती हैं। लेकिन दिल्ली के एक होटल में एक ब्रिटिश पर्यटक के साथ दुष्कर्म का मामला अधिक चिन्ताजनक है। एक युवक ने सोशल मीडिया पर दोस्ती करके भारत घूमने आई ब्रिटिश महिला को दिल्ली बुलाया और एक होटल में दुष्कर्म किया। इस मामले में ब्रिटिश दूतावास ने संज्ञान लिया है। सवाल है कि जब ऐसी कोई आपराधिक घटना हो जाती है और जनाक्रोश उभरता तथा मामला तूल पकड़ लेता है, तभी सरकार, प्रशासन एवं पुलिस की नींद क्यों खुलती है? यही सक्रियता अगर सामान्य स्थितियों में भी कायम रहे, तो शायद आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के भीतर कानूनी कार्रवाई का डर बन सकता है और इस तरह ऐसे अपराधों को पहले ही रोका जा सकता है।
विदेशी महिलाओं के प्रति यह संवेदनहीनता एवं बर्बरता कब तक चलती रहेगी? भारत विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी कई हिस्सों में विदेशी महिलाओं को लेकर गलत धारणा एवं विकृत सोच कायम है जो भारत की गौरवपूर्ण संस्कृति को धुंधलाती है। देश की राजधानी दिल्ली में ब्रिटिश पर्यटक के साथ दुष्कर्म की घटना ने एक बार फिर हमें शर्मसार किया है, झकझोर दिया है। बड़ा सवाल यह है कि नारी अस्मिता को कुचलने की हिंसक मानसिकता का तोड़ हम अब भी क्यों नहीं तलाश पा रहे हैं? क्यों नये-नये एवं सख्त कानून बन जाने के बावजूद नारी की अस्मिता एवं अस्तित्व असुरक्षित है? क्यों हमारे शहरों को ‘रेप सिटी ऑफ द वर्ल्ड’ कहा जाने लगा है। आखिर कब तक महिलाओं के साथ ये दरिन्दगीभरी एवं त्रासद घटनाएं होती रहेंगी? नारी की अस्मत का सरेआम लूटा जाना एवं उन पर हिंसा – एक घिनौना और त्रासद कालापृष्ठ है और उसने आम भारतीय को भीतर तक झकझोर दिया।


कौन मानेगा कि यह वही दिल्ली है, जो करीब तीन दशक पहले निर्भया के साथ हुई निर्ममता पर इस कदर आन्दोलित हो गई थी कि उसे इंसाफ दिलाने सड़कों पर निकल आई थी। जाहिर है, समाज की विकृत सोच को बदलना ज्यादा जरूरी है। रेप, यौन-दुष्कर्म, व्यभिचार जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए रेपिस्टों एवं दुष्कर्मियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने और पुलिस व्यवस्था को और चाक-चौबंद करने की मांग के साथ समाज के मन-मिजाज को दुरुस्त करने का कठिन काम भी हाथ में लेना होगा। ये घटनाएं शिक्षित समाज के लिए बदनुमा दाग है। अगर ऐसी घटनाएं होती रहीं तो फिर कानून का खौफ किसी को नहीं रहेगा और अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी। कानून कितने भी क्यों न हों जब तक समाज स्वयं महिलाओं को सम्मान नहीं देगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। समाज तमाशबीन बना रहेगा तो फिर कौन रोकेगा हैवानियत, दरिन्दगी को, बलात्कार को।
जैसे-जैसे देश आधुनिकता की तरफ बढ़ता जा रहा है, नया भारत-सशक्त भारत-शिक्षित भारत बनाने की कवायद हो रही है, वैसे-वैसे महिलाओं पर हिंसा एवं यौनाचार के नये-नये तरीके और आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं। अवैध व्यापार, बदला लेने की नीयत से तेजाब डालने, साइबर अपराध, आनलाइन मित्रता और लिव इन रिलेशन के नाम पर यौन शोषण एवं हिंसा के तरीके हैं। पहले कहा जाता था कि ऐसे अपराध केवल निरक्षर और दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा होते हैं लेकिन आजकल शहरों और महानगरों में महिलाओं एवं विशेषतः विदेशी महिलाओं के साथ अन्याय एवं यौन-दुष्कर्म की खबरें देखने और पढ़ने को मिल जाती हैं। हम सभी कल्पना रामराज्य की करते हैं पर रच रहे हैं महाभारत। महाभारत भी ऐसा जहां न कृष्ण है, न युधिष्ठिर और न अर्जुन। न भीष्म पितामह हैं, न कर्ण। सब धृतराष्ट्र, दुर्योधन और शकुनि बने हुए हैं। न गीता सुनाने वाला है, न सुनने वाला। बस हर कोई द्रोपदी का चीरहरण कर रहा है। सारा देश चारित्रिक संकट में है। जब समाज की मानसिकता दुराग्रहित है तो दुष्कर्म एवं दुष्प्रवृत्तियां ही होती हैं। कोई आदर्श संदेश राष्ट्र को नहीं दिया जा सकता। जब कभी ऐसी किसी खौफनाक, त्रासद एवं डरावनी घटना की अनेक दावों के बावजूद पुनरावृत्ति होती है तो यह हमारी जबावदारी पर अनेक सवाल खड़े कर देती है।
प्रश्न है कि आखिर हम कब औरत की अस्मत को लुटने की घटना और हिंसक मानसिकता पर नियंत्रण कर पायेंगे? कब हम विदेशी लोगों को सुरक्षित एवं सम्मानजनक आतिथ्य प्रदान करने की पात्रता विकसित कर पायेंगे? अफसोसजनक यह है कि नये-नये नारों एवं उद्घोषों के साथ दुनियाभर के लोगों को भारत आने का आग्रह किया जाता है, मगर विदेश से भारत घूमने आने वाली महिलाओं के साथ ऐसी खौफनाक एवं डरावनी घटनाएं होना न केवल चिन्ताजनक बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण है। बड़ा सवाल है कि विदेशों में भारत की छवि पर दाग न लगे, इसके लिये सरकार को सख्त होना होगा। भारत में जिस ‘अतिथि देवो भव’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का हवाला दिया जाता रहा है, उसे सचमुच जमीन पर उतारना या सुनिश्चित करना सरकार एवं प्रशासन का ही दायित्व है। एक आदर्श-शासन-व्यवस्था, सृसंस्कृत एवं सभ्य देश एवं समाज के लिये ऐसी घटनाओं का बार-बार होना भी शर्मनाक ही कहा जायेगा। हर व्यक्ति एक न्यूनतम आचार संहिता से आबद्ध हो, अनुशासनबद्ध हो। जो व्यवस्था अनुशासन आधारित संहिता से नहीं बंधती, वह विघटन की सीढ़ियों से नीचे उतर जाती है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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